गाजीपुर: कामरेड इकबाल अहमद जीवन भर गरीबों मजदूरों के हक के लिए संघर्ष किया
October 06, 2025
कासिमाबाद( गाजीपुर) । सोनबरसा गांव निवासी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता कामरेड इकबाल अहमद का 76 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी और इलाज के दौरान वाराणसी ले जाते समय रास्ते में ही मौत हो गई थी उनकी मौत की खबर मिलते ही क्षेत्र में अशोक की लहर दौड़ गई उनके आवास पर श्रद्धांजलि देने वालों का ताता लगा रहा था बड़े पुत्र इरशाद अहमद की देखरेख में उनकी मिट्टी कुतुबपुर पैत्रिक कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक की गई थी।इकबाल अहमद ने अपना पूरा जीवन गरीबो को इंसाफ दिलाने में लगा दिया।उनके अंदर ऐसा करने का जूनून स्वतंत्रता सेनानी पूर्व सांसद सरजू पांडे के खेतीहर मजदूरों व किसानों के लिए संघर्ष करते देखकर जागा था।पूर्व सांसद के साथ किया गया कार्य अब जूनून बन चुका था।इसी जूनून के चलते कोतवाली क्षेत्र के रेंगा गांव की जंगल की 110 बीघा जमीन को संघर्ष करते हुए 1970 में गरीबो में बटवा दिया था।राजनिति में सरजू पान्डेय को नेता मानकर 1957 में भाकपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद कभी पिछे मुड़कर नहीं देखा उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राथमिक पाठशाला में पूरी हुई थी हाई स्कूल नेशनल इंटर कॉलेज कासिमाबाद से पास किया था किसने और मजदूरों के सवाल को लेकर लगभग एक माह तक जिला कारागार गाजीपुर में बंद रहे 1980 के दशक के प्रदेश व्यापी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं खेत मजदूर यूनियन की तरफ से आयोजित आंदोलन में उत्तर प्रदेश विधानसभा के सामने सन 1977 में उनको घोड़े से पुलिस ने रौंद दिया था इस आंदोलन में वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे इस आंदोलन से पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गए थे। पूर्वांचल सहकारी कताई मिलकर उद्घाटन के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को काला झंडा दिखाकर अपने दर्जनों साथियों के साथ विरोध दर्ज कराते हुए किसानों की भूमि को मुक्त करने की मांग की थी। अंत तोगत्वासंघर्षों के दौरान ही 11 अक्टूबर 2019 को उनका इंतकाल हो गया जाटव रहे कि वह सांसद विधायक तो नहीं बन पाए लेकिन क्षेत्र में लोकप्रियता का जो ग्राफ हासिल किया वह किसी सांसद से कम नहीं था यही कारण है कि उनके इंतकाल के समय जनाजे में जो भीड़ उमड़ी थी वह आज तक किसी के जनाजे में देखने को नहीं मिली। अपना संपूर्ण जीवन गरीबों के लिए समर्पित करने वाले नेताजी के नाम से मशहूर हो गए इकबाल अहमद सन 1985 में पूर्वांचल सहकारी कताई मिल बड़ौदा बहादुरगंज के 1200 मजदूरों के अध्यक्ष बन गए उनके लिए लड़ाई शुरू की और उनके अधिकार के लिए एक महीने तक जिला कारागार में बंद रहे मजदूरों के लिए इस आंदोलन ने उनकी ख्याति और बढ़ा दी थी। सन 1980 में 29 सितंबर को रामलीला मैदान में रामलीला हो रही थी की उनका बड़ा पुत्र इश्तियाक अहमद जो कक्षा 5 का छात्र था बिजली की जद में आने से चल बसा था डीएम एसपी मुकदमा लिखने के लिए तैयार थे किंतु उन्होंने बड़ा त्याग कर मुकदमा नहीं लिखते दिया और हिंदू मुस्लिम भाईचारे का संदेश कायम रखा जो इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है।
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