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पीलीभीतः राजनीतिक चुप्पी के बीच बरखेड़ा विधायक की सक्रियता बनी उम्मीद! दहशत के दौर में नेतृत्व का परिचय! बरखेड़ा विधायक की पहलः बाघ-बाघिन का खौफ- सवाल उठते हैं, जिम्मेदारी किसकी?


पीलीभीत। जनपद में इस समय सबसे बड़ा और भयावह सवाल मानव जीवन की सुरक्षा से जुड़ा हैं। बाघ और बाघिन का खौफ। हालात इतने भयावह हो चले हैं कि ग्रामीण इलाकों में शाम ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है, रात को लोग अपने घरों से बाहर निकलने में भी डरने लगे हैं। टांडा कॉलोनी, करनापुर, डंडियाकैमा जैसे इलाके हाल के दिनों में ऐसे भयावह अनुभवों से गुजर चुके हैं, जहां वन्य जीवों ने सीधे घरों और खेतों तक दस्तक दे दी।

हाल ही में टांडा कॉलोनी में एक बाघिन आधी रात को एक परिवार के आंगन तक पहुंच गई। ग्रामीणों की नींद दहशत में तब्दील हो गई। करनापुर गांव में खेतों के पास बाघ को टहलते देखा गया, जिससे लोगों में भगदड़ मच गई। वहीं, डंडियाकैमा गांव के पास भी बाघ देखे जाने की सूचना से गांव में तनाव का माहौल बन गया।

इन सब घटनाओं के बीच एक नाम बार-बार सामने आ रहा हैं। महामंडलेश्वर एवं बरखेड़ा विधायक स्वामी प्रवक्तानंद महाराज। चाहे करनापुर हो या डंडियाकैमा, हर बार सबसे पहले मौके पर पहुंचने और वन विभाग से संवाद कर रणनीति बनाने का कार्य उन्होंने ही किया है। उन्होंने स्वयं ग्रामीणों से संवाद कर उन्हें न केवल भरोसा दिलाया, बल्कि प्रशासन पर दबाव भी बनाया कि निगरानी और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हों।

पर सवाल यह है कि क्या पूरे जनपद की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ एक विधायक की है? आखिर जनता द्वारा चुने गए अन्य जनप्रतिनिधि, राज्य मंत्री, सांसद इस संकट में कहां हैं? वे क्यों चुप हैं? क्या केवल बाघ के हमला करने या किसी की मृत्यु होने के बाद ही इन जिम्मेदारियों को निभाया जाएगा?

वन विभाग अपनी ओर से गश्त, पिंजरे और ड्रोन कैमरों जैसे इंतजामों की बात करता है, लेकिन ये सब केवल कागजों पर तो नहीं रह जाएं, यह सुनिश्चित करना भी प्रशासनिक और राजनैतिक नेतृत्व का काम है। क्योंकि जब जनता बाघों के डर से खेती छोड़ने लगे, बच्चे स्कूल न जा सकें और महिलाएं अकेली बाहर न निकल सकें, तो यह सिर्फ वन्यजीव संकट नहीं बल्कि एक मानवीय आपातकाल बन जाता है।जनता का सबसे बड़ा सवाल यही है कि जनप्रतिनिधि आखिर कब अपनी संवेदनशीलता दिखाएंगे? कब वह सामूहिक रूप से इस मुद्दे को लेकर कोई व्यापक रणनीति बनाएंगे? और सबसे बड़ा सवाल आखिर कब लोग बाघ-बाघिन के ख्वाबों से आजादी पाएंगे?

अब वक्त आ गया है कि यह मुद्दा सिर्फ वन विभाग की जिम्मेदारी न रहकर राजनीतिक और प्रशासनिक प्राथमिकता बने। नहीं तो हर अगली सुबह किसी नए गांव से बाघ के पदचिह्न या हमला होने की खबर, और किसी नये परिवार के डर और दहशत की कहानी बनती जाएगी।

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