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करवा चौथ पर अगर नहीं पढ़ी ये कथा तो अधूरा रह जाएगा व्रत


करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। इस दिन महिलाएं शाम में करवा चौथ की कथा जरूर सुनती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो महिला करवा चौथ के दिन व्रत तो रखती है लेकिन अगर इसकी कथा नहीं सुनती तो उसका व्रत पूरा नहीं माना जाता। इसलिए इस व्रत में कथा का विशेष महत्व होता है। इस साल करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ने का शुभ मुहूर्त शाम 05:57 से 07:11 बजे तक रहेगा। चलिए आपको बताते हैं करवा चौथ की इस पावन कथा के बारे में विस्तार से यहां।

कथा के अनुसार एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सभी का विवाह हो चुका था। एक बार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा। रात में जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने के लिए बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन करने के लिए कहा। लेकिन बहन ने तो व्रत रखा था। बहन ने अपने भाई से कहा अभी चांद नहीं निकला है। मैं चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही भोजन करूंगी।

चूंकि साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, इसलिए उनसें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देखा नहीं जा रहा था। तब साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां पर उन्होंने एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा कि देखों चांद आ गया है। अब तुम अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से भी कहा चांद को अर्घ्य देने का कहा लेकिन ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

लेकिन साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों की बात को अनसुनी कर दिया और उसने भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इससे उसका करवा चौथ का व्रत भंग हो गया। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और उसके घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी को सही करने में लग गया।

साहूकार की बेटी को जब अपने दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा मांगी और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने व्रत के दौरान उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा भाव को देखकर भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हुए और उसके पति को उन्होंने जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।

कहते हैं इस प्रकार जो भी मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर भक्तिभाव से चतुर्थी का व्रत करता है, तो वह सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

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