बदायूं । डहरपुर क्षेत्र में स्थित छछऊ धाम से कछला गंगा घाट तक बुधवार को एक भव्य नारियल विसर्जन यात्रा निकाली गई, जिसमें महंत मुकेश पुजारी ने स्वयं 9001 नारियल गंगा में विसर्जित किए। इस आयोजन में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पावन भाव से शामिल हुए और प्रशासन ने शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित आयोजन सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई।
सुबह से ही छछऊ धाम से यात्रा की शुरुआत हुई। महंत मुकेश पुजारी सहित संघचालक व अन्य धार्मिक गण आगे-आगे चल रहे थे। श्रद्धालुओं ने हाथों में नारियल, दीपक, फूल तथा पवित्र जल लिए धारा प्रवाह करते हुए घाट की ओर कदम बढ़ाए। हर मोड़ पर भक्ति गीत, धार्मिक वाक्य और मंत्रोच्चारण का माहौल था।
कछला घाट पर पहुँचने पर, महंत ने विधिपूर्वक पूजा-अर्चना के बाद 9001 नारियल गंगा तट पर समर्पित किए। नारियल को पवित्र प्रतीक माना जाता है और पूजा के बाद इसका विसर्जन करना धार्मिक रीति है। (नारियल विसर्जन को हिंदू धर्म में शुद्धता एवं बलिदान‑भाव का प्रतीक माना जाता है) इस अनूठी संख्या का चयन विशेष शुभ संकेत एवं धर्मार्थ भावना से किया गया।
जय यात्रा में आम श्रद्धालुओं से लेकर आसपास के गांवों के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों ने भी श्रद्धापूर्वक भाग लिया। घाट तक मार्ग पर व्यवस्था के लिए पुलिस अधिकारियों, स्थानीय प्रशासन और आयोजकों के बीच समन्वय देखा गया। उन्हें श्रद्धालुओं की सुरक्षा, मार्ग नियंत्रण, मेडिकल सहायता और भीड़ प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभानी पड़ी। आयोजन स्थल पर सायरन, ध्वनि व्यवस्था, वाटर स्टेशन और प्राथमिक चिकित्सा सुविधा रखी गई।
प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारीयों ने बताया कि इस तरह के धार्मिक आयोजन में सार्वजनिक शांति बनाए रखना प्राथमिकता होती है। संवेदनशील मार्गों पर अतिरिक्त पुलिसबल, यातायात नियंत्रण और आवश्यक सहायता वाहन तैनात किए गए। उनके अनुसार, “हमने पहले से सुरक्षा व मार्ग योजना तैयार की थी, ताकि श्रद्धालु सहजता से यात्रा कर सकें।”
इस आयोजन ने न केवल भक्ति-भाव प्रकट किया, बल्कि समाज में आपसी सौहार्द और संयोजन की शक्ति भी दिखलाई। जिस तरह से प्रशासन, धर्मगुरु और आम श्रद्धालु एक साथ मिलकर कार्यक्रम सफल बनाए, वह अनुकरणीय उदाहरण बन गया। यह भी दिखाया कि धर्म-संस्कार और राज्य व्यवस्था हाथ में हाथ देकर सहज रूप से साथ चल सकते हैं। तो, छछऊ धाम से कछला घाट तक की यह नारियल विसर्जन यात्रा न केवल भक्ति की अभिव्यक्ति थी, बल्कि सामूहिक श्रद्धा, शांति व्यवस्था और संगठन की मिसाल बनी।
