बाराबंकी। गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर अनुसंधान केंद्र में कोशा 19231 और 17451 गन्ना की किस्में विकसित की गई हैं, जिन्हें लाहिड़ी और कृष्णा के नाम से जाना जाएगा। ये प्रजातियां सामान्य गन्ना बीज से बेहतर हैं। इसमें चीनी की मात्र डेढ़ गुणा होने के साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ने की भी उम्मीद है। कोशा 19231 की प्रजाति को काकोरी कांड के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में बलदानी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और 17451 किस्म को वरिष्ठ विज्ञानी डा. कृष्णानंद के नाम जाना जाएगा।
गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर की ओर से शासन को नई गन्ना किस्म कोशा 19231 एवं कोशा 17451 के उपज एवं गन्ने में शर्करा के आंकड़ें प्रस्तुत किए थे, जिसे मंजूरी मिल गई है। जिला गन्ना अधिकारी डा. दुष्यंत कुमार ने बताया कि नई गन्ना किस्म 19231 पूर्व में प्रचलित गन्ना किस्म 95422 के पालीक्रास कर शाहजहांपुर संस्थान में विकसित की गई है। आंकड़ों के अनुसार पौधा गन्ना की औसत उपज 92.05 टन प्रति हेक्टेयर है। शर्करा 17.85 प्रतिशत एवं गन्ने में रस 13.20 प्रतिशत पाई गई है। प्रति हेक्टेयर चीनी का अनुमानित उत्पादन 12.23 टन प्रति हेक्टेयर दर्ज किया गया है। जबकि अन्य किस्मों में 79 से 80 टन प्रति हेक्टेयर गन्ना उपज और रस करीब 11 से 12 प्रतिशत ही निकलता है। शर्करापन भी तीन से चार प्रतिशत कम रहता है। यह किस्म अब किसानों के जीवन में खुशहाली लाने का काम करेगा और गन्ना उत्पादन में क्रांति लाएगी।
यह दोनों अगेती गन्ना किस्मों का गन्ना मध्यम मोटा, ठोस, पोरी लंबी होती है। 19231 में गूदे के मध्य बारीक छिद्र तथा अगोला पर हल्के रोएं पाए जाते हैं। यह लाल सड़न रोग के प्रति मध्यम रोगरोधी है।
गन्ना किस्म कोशा 19231 को काकोरी कांड के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में बलदानी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के नाम पर इस किस्म को ‘लाहिड़ी’नाम दिया गया। वहीं, 17451 को विकसित करने वाले विज्ञानी डा. कृष्णानंद की सड़क दुर्घटना में असामयिक निधन के कारण उनके नाम पर इस किस्म को ‘कृष्णा’ नाम दिया गया है।
गन्ना किसानों के लिए दो गुणा आय बढ़ाने में सहायक सीओ 0238 ‘द वंडर केन’ का अस्तित्व समाप्त हो गया था, जिसके कारण प्रतिबंध लगा था। अब तक ऐसी कोई प्रजाति नहीं थी, जो ‘द वंडर केन’ को टक्कर दे सके। अब टक्कर देने के लिए ‘कृष्णा’ और ‘लाहिड़ी’ किस्में लाई गई हैं। इस प्रजाति को विकसित और रिसर्च करने में विज्ञानियों को तीन वर्ष लग गए।
0238 किस्म 15 वर्ष पहले गन्ना क्रांति के जनक कहे जाने वाले वरिष्ठ विज्ञानी डा. बक्शी राम ने वर्ष 2009 में गन्ना की नई प्रजाति सीओ 0238 विकसित की थी। गन्ना किसानों के जीवन में नई ऊर्जा का संचार हो गया। उत्पादन दो गुणा होने लगा था। प्रजाति का नाम ‘द वंडर केन’ दिया गया था। पूरे देश में सर्वाधिक बोई जाने वाली प्रजाति थी। इसमें 13 से 14 प्रतिशत रस, 17 प्रतिशत चीनी निकलती थी। उत्पादन एक हजार क्विंटल से अधिक था। सीओ 0238 प्रजाति गन्ने क्षेत्र की क्रांति में अद्भुत किस्म थी, लेकिन चार वर्ष पहले 0238 को पोक्का बोइंग रोग, लाल सड़न रोग, टापर बोरर रोग ने जकड़ लिया था, जिससे इस किस्म पर सरकार को प्रतिबंध लगाना पड़ा था।
डा. दुष्यंत कुमार, जिला गन्ना अधिकारी ने कहा कि अब रिसर्च में पता चला कि कि शाहजहांपुर में विकसित 19231 व 17451 प्रजातियां 0238 से बेहतर हैं। सरकार ने इन दोनों किस्मों की बोआई के लिए अनुमति दे दी है।