रामनगर/ बाराबंकी। जहां एक ओर मानसून के दौरान बाढ़ की आशंका से लोग डरे-सहमे हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय जल आयोग भारत सरकार के रामनगर स्थित कार्यालय लापरवाही की मिसाल बन गया है। संजय सेतु के पास स्थित इस अत्यंत संवेदनशील कार्यालय पर मंगलवार को जब विधान केसरी के संवाददाता कृष्ण कुमार शुक्ला पहुचे, तो वहां ताला लटकता मिला। कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था न निगरानी, न जवाबदेही, सिर्फ सन्नाटा और चुप्पी।
यह हालात तब हैं जब सरयू नदी के जलस्तर पर 24 घंटे निगरानी रखने का स्पष्ट निर्देश है। जल आयोग के नियमों के अनुसार हर आठ घंटे पर कर्मचारी की ड्यूटी बदलती है, और मानसून सत्र में किसी को अवकाश नहीं मिलना चाहिए। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है।स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, कर्मचारी महज 10 मिनट पहले ताला लगाकर चले गए। मौके पर मौजूद किसी ने यह तक बताया कि अब तो हम ही नदी देखें, सरकार तो ताला लटकाकर जा चुकी है।सूत्रों ने पुष्टि की कि कार्यालय में पांच कर्मचारी ,विवेक कुमार सिंह, दुर्गा प्रसाद, शेष चंद्र, पवन कुमार और शिवानंद तैनात हैं। मंगलवार को विवेक कुमार सिंह की ड्यूटी शाम 3 बजे थी, लेकिन न तो वह दिखे और न ही उनका फोन उठा। यह उस लापरवाह व्यवस्था का परिचायक है, जो प्राकृतिक आपदा जैसे गंभीर मुद्दे को भी गंभीरता से नहीं ले रही।जब इस बारे में जूनियर इंजीनियर मुस्तकीम से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि कर्मचारी चाय पीने गया होगा। जांच कराएंगे, दोषियों पर कार्रवाई होगी।लेकिन सवाल यह है कि चाय के बहाने कितनी बार जिम्मेदारियाँ टाली जाएंगी ।जब नदी का स्तर बढ़ता है, तो खतरा सिर्फ पानी का नहीं होता ,खतरा उस लापरवाही का होता है जो समय रहते चेतावनी तक नहीं पहुंचने देती।रामनगर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां हर घंटे की निगरानी जनजीवन को राहत दे सकती है, वहां पर ताले में बंद सरकारी व्यवस्था लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है।क्या अब भी जिम्मेदार जागेंगे या फिर अगली बाढ़ की खबर के बाद ही कोई कुर्सी हिलेगी?।