पीलीभीत। सेंट्रल एकेडमी ऑफ स्टेट फॉरेस्ट सर्विस देहरादून के 45 अधिकारियों का अध्ययन दल एक सप्ताह के पीलीभीत भ्रमण के बाद देहरादून के लिए रवाना हो गया। इस भ्रमण के अंतिम सत्र में अधिकारियों ने मंगलवार रात पीलीभीत की सांस्कृतिक पहचान कृ बांसुरी निर्माण और वादन की विशिष्ट परंपरा कृ को करीब से जाना और सराहा।समापन सत्र चूका में आयोजित किया गया, जिसके मुख्य अतिथि पीलीभीत टाइगर रिजर्व के प्रभागीय वनाधिकारी मनीष सिंह थे। कार्यक्रम की शुरुआत वन्यजीव जैव विविधता संरक्षण समिति के महासचिव डॉ. अमिताभ अग्निहोत्री के संबोधन से हुई। उन्होंने पीलीभीत की तीन ऐतिहासिक पहचानों कृ बासमती, बांसुरी और बान कृ की चर्चा की। उन्होंने बताया कि अब बान (वन) की जगह बाघ ने पीलीभीत की प्रमुख पहचान ले ली है। उन्होंने यह भी बताया कि अयोध्या के लिए विश्व की सबसे बड़ी 21.3 फीट लंबी बांसुरी भी यहीं से बनाई गई थी।
कार्यक्रम में प्रसिद्ध बांसुरी निर्माता शमशाद नवी ने राज्य वन सेवा के अधिकारियों को बांसुरी निर्माण की बारीकियों से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि पीलीभीत में बांसुरी एक पारंपरिक घरेलू हस्तशिल्प है और राज्य सरकार ने इसे “एक जिला एक उत्पाद” (ओडीओपी)के तहत चयनित किया है।
इसके उपरांत युवा बांसुरी वादक विशेष वाजपेयी ने राग मल्हार और राग दरबारी सहित अनेक शास्त्रीय रचनाओं की प्रस्तुति देकर समा बांध दिया। उन्होंने कुछ शास्त्रीय गीतों का गायन भी किया, जिसे अधिकारियों ने खूब सराहा।
प्रभागीय वनाधिकारी मनीष सिंह ने सभी अधिकारियों से फीडबैक प्राप्त किया और कहा कि इतने बड़े स्तर पर अधिकारियों का आगमन उनके लिए भी एक अनुभव रहा है, जिससे स्थानीय व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाने की प्रेरणा मिली है। उन्होंने सभी अधिकारियों से परिवार सहित पुनः पीलीभीत आने का आग्रह किया।
कार्यक्रम के अंत में राज्य वन सेवा के अधिकारियों ने मनीष सिंह, शमशाद नवी, विशेष वाजपेयी, महोफ के रेंजर सहेंद्र यादव और बायोलॉजिस्ट आलोक कुमार को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। शमशाद नवी ने अध्ययन दल प्रमुख, भारतीय वन सेवा के अधिकारी (महाराष्ट्र कैडर) अमलेंदु पाठक और प्रभागीय वनाधिकारी मनीष सिंह को बांसुरी भेंट की।यह अध्ययन भ्रमण सांस्कृतिक और व्यावसायिक दृष्टिकोण से अधिकारियों के लिए ज्ञानवर्धक और प्रेरणास्पद रहा।