सुप्रीम कोर्ट में फिर उठा 2016 कॉर्बेट बाघ शिकार कांड
November 16, 2025
2016 में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुए बाघों के शिकार का संवेदनशील मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर कर CBI जांच पर लगी रोक हटाने की मांग की है. उनका आरोप है कि आठ साल से लंबित यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और अधिकारियों द्वारा किए गए कथित कवर-अप के कारण ठंडे बस्ते में चला गया है.
यह मामला दिसंबर 2015 में तब सामने आया, जब नेपाल के सुनसरी जिले में एक बाघ की खाल बरामद हुई. इस मामले में हरियाणा के दो तस्कर गिरफ्तार हुए. जांच में पता चला कि बाघ कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मारा गया था और उसकी खाल नेपाल तस्करी की गई. इसके बाद 14 मार्च 2016 को हरिद्वार STF ने पंजाब के राम चंद्र को गिरफ्तार कर पांच बाघों की खाल और 125 किलो हड्डियां बरामद कीं.
NTCA के अनुसार, इतनी हड्डियां 7 से 8 बाघों के शिकार का संकेत देती हैं. वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने पुष्टि की, कि बरामद 5 में से 4 खालें कॉर्बेट के बाघों की थीं. इस मामले ने 2018 में कानूनी मोड़ लिया. 10 जनवरी 2018 को NGO टाइगर आई की याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किए. इसके बाद IFS अधिकारी जया राज को जांच सौंपी गई. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीएस खाती, पूर्व कॉर्बेट निदेशक समीर सिन्हा और अन्य अधिकारियों को गंभीर प्रशासनिक चूक का जिम्मेदार ठहराया. हाईकोर्ट ने 4 सितंबर 2018 को CBI जांच के आदेश दिए.
डीएस खाती ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर कहा कि उन्हें सुना नहीं गया. 22 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने CBI जांच पर अंतरिम रोक लगा दी. CBI ने शुरुआती जांच में कई वन अधिकारियों की संलिप्तता के संकेत पाए थे. जुलाई 2023 में CBI ने रोक हटाने की मांग की, लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी. अतुल सती की ओर से वकील गोविंद ने कोर्ट में दलील दी कि हाईकोर्ट ने WII और WCCB की विस्तृत वैज्ञानिक रिपोर्टों के आधार पर ही CBI जांच के निर्देश दिए थे.
उनका आरोप है कि खाती ने सुप्रीम कोर्ट में गलत जानकारी देकर वैज्ञानिक तथ्यों को छिपाया, जिससे अदालत के सामने अधूरी तस्वीर पेश हुई. उन्होंने यह भी कहा कि हाल में महाराष्ट्र में पकड़े गए एक शिकार गिरोह के धागे उत्तराखंड से जुड़े पाए गए हैं, इसलिए स्वतंत्र जांच बेहद जरूरी है. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय लेता है ये देखने वाली बात होगी.
