उन्नाव। मोहर्रम के मौके पर शहर में अकीदतमंदी और गम का माहौल देखने को मिला। 10 मोहर्रम के दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में ककरहा बाग से आशूरा का जुलूस निकाला गया। शिया मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस दौरान कर्बला के शहीदों को याद करते हुए कमा और जंजीर से मातम किया। जुलूस के दौरान माहौल गमगीन था और हर तरफ “या हुसैन” की सदाएं गूंज रही थीं।
शिया समुदाय के प्रमुख अंजुमनों ने नारे-ए-तकबीर के साथ मातमी धुनों पर कर्बला की यादें ताजा कीं। मातम कर रहे लोगों ने खुद को जंजीर और कमा से लहूलुहान कर दिया। इस मौके पर कई युवाओं ने इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हुए रक्तदान भी किया। खास बात यह रही कि ब्लड डोनेशन में हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और एकता की मिसाल पेश की।गांव सैयद छपरा में भी अंजुमन यादगारे हुसैनी की ओर से जुलूस निकाला गया। यहां पारंपरिक जुलजुना (घोड़ा) भी शामिल किया गया। मौलाना आबिद अब्बास ने बताया कि कर्बला की जंग में हजरत इमाम हुसैन ने जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई थी। तीन दिन की प्यास और भूख के बाद भी उन्होंने अन्याय के सामने झुकना कबूल नहीं किया। उनके छह महीने के मासूम बेटे को भी यजीदी फौज ने बेरहमी से शहीद कर दिया था। मौलाना ने कहा कि यह मातम सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि जुल्म के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई की याद है। आज के दौर में यह संदेश देना बेहद जरूरी है कि अन्याय के खिलाफ हमेशा आवाज उठानी चाहिए।
जहीर अब्बास, मातमदार ने बताया “हर साल की तरह इस साल भी हमने मातम करके इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद किया है। ब्लड डोनेशन के जरिए हम एकता का संदेश देना चाहते हैं।