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जज कैशकांड: जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं की सुनवाई


जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस ने जांच कमेटी की रिपोर्ट राष्ट्रपति और पीएम को भेजी है. याचिकाकर्ता चाहे तो कार्रवाई के लिए उन्हें ज्ञापन दे सकता है.

वकील मैथ्यूज नेदुंपरा की याचिका में कहा गया था कि जज के घर पर बड़ी मात्रा में पैसा मिलना एक गंभीर मामला है. अब तीन जजों की जांच कमेटी ने भी आरोपों को सही पाया है. ऐसे में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज होना चाहिए. ऐसा न होना संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार के खिलाफ है. जज को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता.

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि मामले की जांच के लिए इन हाउस कमेटी बनाई गई थी. उसकी रिपोर्ट आने के बाद चीफ जस्टिस ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी है. आप कार्रवाई के लिए पहले उन्हें ज्ञापन दें. आप नहीं जानते कि रिपोर्ट में क्या लिखा है. हम भी नहीं जानते. अगर सरकार संतोषजनक कार्रवाई नहीं करती तो आप दोबारा याचिका दाखिल कर सकते हैं.

याचिकाकर्ता ने जजों पर एफआईआर के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सहमति अनिवार्य बनाने वाले फैसले का भी विरोध किया था. 1991 में वीरास्वामी मामले में आए संविधान पीठ के फैसले में व्यवस्था दी गई थी कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ एफआईआर चीफ जस्टिस की सहमति से ही हो सकती है, लेकिन जजों ने इस पहलू पर अभी विचार को गैरजरूरी बताया.

वकील ने बार-बार आम आदमी के भरोसे को बनाए रखने की बात कही. इस पर जज ने कहा, 'हम समझ गए कि आप आम आदमी की आवाज उठाना चाहते हैं, लेकिन मौजूदा व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों से बनी है. उसके पीछे की मंशा को आम लोग भी समझ सकते हैं.'

सुनवाई के अंत मे याचिकाकर्ता ने जजों के खिलाफ जांच के लिए 2010 में ज्यूडिशियल स्टैंडर्ड्स एंड अकाउंटेबिलिटी बिल के संसद में पास न हो पाने की चर्चा की. उन्होंने कहा कि इस तरह का कानून बनाया जाना चाहिए. इस पर जजों ने कहा कि वह संसद को कोई निर्देश नहीं दे सकते.

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