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बीसलपुरः बंद हो कोयले का उतार तब जीवन का हो उद्धारः कोयले की राख से मकानों की रंगत बिगड़ी, बीमार पड़ रहे हैं लोग


बीसलपुर। कोयला डिपो हटाये जाने की मांग को लेकर शहर के लोग लम्बे समय से आन्दोलित हैं। रेलवे स्टेशन के प्लोटफार्म 4 पर बनाया गया कोयला डिपो लोगों के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है। कोयला की उड़ती राख से घरों की रंगत बिगड़ती जा रही है तो वहीं लोगों में दमा, खांसी जैसी खतरनाक बीमारियां फैल रही हैं। कई बार कोयला डिपो हटाये जाने के प्रयास किये गये लेकिन सफलता नहीं मिल सकी।

बीसलपुर में इस समय आमजन की प्रमुख समस्या कोयला का डिपो बनी हुई है। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नं0 4 पर मालगाड़ी से आने वाला कोयला डंपरों से ले जाया जाता है। कोयला की राख उड़कर डाक बंगला कालोनी, रामनगर कालोनी सहित कई मोहल्लों में उड़कर जाती है। राख से मकान जहां काले हो गये हैं वहीं सुबह जब लोग सोकर उठते हैं तो उनके चेहरों व शरीर पर कोयले की राख जमी दिखाई देती है। तेज हवा चलने पर यह राख घरों में रहना मुश्किल कर रही है। कोयले से उड़ती राख से लोग बीमार पड़ते जा रहे हैं। गांधी नगर, रामनगर कालोनी, डाक बंगला कालोली, शास्त्री नगर कालोनी सहित कई मोहल्लों के लोग कई बार धरना दे चुके हैं। कोयला डिपो हटाये जाने की मांग को लेकर पूर्व मंत्री रामसरन वर्मा ने भी धरना दिया। पिछले वर्ष कोयला डिपो हटाये जाने की मांग को लेकर भाजपा नेता तेजबहादुर गौतम की अगुबाई में कई दिनों तक धरना चला। मौके पर पहुंचे राज्यमंत्री संजय गंगवार ने डिपो हटवाये जाने का अश्वासन देकर धरना समाप्त करा दिया। कुछ दिनों के लिए कोयले का उतार बंद रहा और फिर से कोयले का उतार शुरु कर दिया गया। जनप्रतिनिधियों ने भी इस ज्वलंत समस्या के निदान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये। यही कारण है कि कोयला लोगों की जिंदगी को भी काला कर रहा है। पेंड़ पौधे भी कोयले की राख से ढक जाते हैं और हरियाली को भी नुक्शान हो रहा है।

पिछले वर्ष पूर्वमंत्री रामसरन वर्मा ने शासन स्तर पर कोयला डिपो हटाये जाने की मांग की थी। रेल के अधिकारियों व बजाज शुगर मिल मकसूदापुर, बरखेड़ा के अधिकारियों के बीच बैठक हुई थी और डिपो को हटाये जाने का अश्वासन दिया गया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हो सकी।

बीसलपुर में कोयला उतार के लोकर जन आन्दोलन बढ़ता देख तत्कालीन डीएम पुलकित खरे ने रेलवे के अधिकारियों को पत्र भेजा था। रेलवे स्टेशन पर जिस जगह पर कोयले का उतार किया जा रहा है हालांकि वहां पर पानी के फुब्बारा तो लगा दिये गये और टीन सेड लगाये गये ताकि राख न उड सके लेकिन राख उडने से बंद नहीं हो रही है।

बीसलपुर में जब कोयले का उतार बंद नहीं किया गया। रेलवे के उच्चाधिकारियों ने भी इस ज्वलंत समस्या पर गौर नहीं किया तब पूर्व मंत्री रामसरन वर्मा व भाजपा नेता तेजबहादुर गौतम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। जिसकी सुनवाई चल रही है। तेजबहादुर गौतम कहते हैं कि रेलवे के अधिकारियों से लेकर डीएम, कमिश्नर व शासन स्तर पर भी कई बार शिकायत की गयी लेकिन किसी अधिकारी ने कोई ध्यान नहीं दिया। आन्दोलन भी किये गये हजारों लोग आन्दोलन में शामिल हुए। अधिकारी आन्दोलन खत्म कराने आते रहे लेकिन समस्या का हल नहीं किया गया। कोयला डिपो हटाना बेहद जरुरी है।

प्रेमशंकर कहते हैं कि कोयला का उतार घनी बस्ती में नहीं किया जाना चाहिए डिपो शहर के बाहर किसी अन्य स्टेशन पर बनाया जाये ताकि कोयले से हो रहे भारी नुक्शान से लोगों को निजात मिल सके। मिल मालिक व रेलवे के अधिकारी मिले हुए हैं। यही कारण है कि कोयले का उतार बंद नहीं हो रहा।

आलोक गौतम कहते हैं कि उनका मकान रेलवे स्टेशन के निकट है पूरे मकान की हालत खराब है। सुबह को रोजाना बड़ी तादाद में कोयले की राख मकान से बाहर फेकनी पड़ती है। खाना भी खराब हो जाता है। ऐसे में पानी भी शुद्ध नहीं मिल पा रहा। हैंडपंपों में भी कोयले की राख पहुंचती है। लोग आन्दोलन कर रहे हैं। सरकार ध्यान नहीं दे रही है।

मंगलसिंह कहते हैं कि कोयला इस समय लोगों की जिंदगी को भी काला कर रहा है। मकानों में लाखों रुपये लगाकर बनाया गया लेकिन कोयले की राख से मकान का प्रत्येक कोना काला हो गया है। सुबह को जब झाड़ू लगती है तो कोयले की राख पूरे मकान में दिखाई देती है। जनप्रतिनिधि इसे गंभीरता से लें।

राहुल श्रीवास्तव कहते हैं कि रेलवे स्टेशन की बेंचों पर कोयले की राख पड़ती है और जब कोई यात्री बैठता है तो उसके कपड़े खराब हो जाते हैं। कोयले के कारण स्टेशन की सुंदरता भी बेकार हो गयी है। पीने का पानी भी शुद्ध नहीं मिल पा रहा है। कपड़े, विस्तर सभी काले होते जा रहे हैं। अधिकारी सुनने को तैयार नहीं हैं।

महेश शर्मा कहते हैं कि कई दिनों तक लोग धरने पर बैठे रहे। कुछ संगठनों ने समर्थन भी किया। अधिकारी लालीपाप देकर धरना समाप्त कराते रहे। बीच बीच में कुछ दिनों के लिए कोयले का उतार बंद कर दिया गया लेकिन बाद में फिर से शुरु होता रहा। कोयला उतार की समस्या सबसे ज्बलंत समस्या है इसका निदान होना चाहिए।

अमित शुक्ला कहते हैं कि जब तेज हवा चलती है तो कोयले की राख सभी मकानों में सीधे पहुंचती है और मकानों में रहना भी घुटन जैसा महसूस होता है। लोकतंत्र में आन्दोलन के माध्यम से अपनी बात रखी जाती है और समस्या का निदान भी होता है लेकिन लबे समय से चल रहे आन्दोलन के बाद भी समस्या का कोई निदान नहीं किया गया।

रामकिशोर श्रीास्तव कहते हैं कि शहर से बाहर मिघौना, शेरगंज स्टेशनों पर काफी जगह है। जहां से गांव भी दूर हैं। इन स्थानों पर कोयले का उतार किया जाना चाहिए ताकि जनहानि न हो सके लेकिन मिल के अधिकारी व रेलवे के अधिकारी मिली भगत कर गैर कानूनी तरीके से कोयले का उतार कर रहे हैं। कोई सुनने को तैयार नहीं है।

प्रभाशंकर शुक्ला कहते हैं कि कोयले का उतार बंद होना चाहिए क्योंकि यह सबसे बड़ी समस्या है। सरकार को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कोयले के उतार से कई मोहल्लों के लोग प्रभावित हैं। कुछ लोगांें ने तो अपने मकानों में ताले डाल दिये हैं और गांव में जाकर रहने लगे हैं कहीं ऐसा न हो कि अन्य लोगों को भी मकानों से पलायन करना पड़े।

हर्षबर्धन कहते हैं कि कोयले की राख के कारण बुजुर्गों का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। दमा खांसी, हार्ट जैसी जानलेवा बीमारियां तेजी के साथ बढ़ रही हैं। पानी का निकास भी नहीं किया गया है। बरसात होने पर इस बार हालात खराब हो जायेंगे। जन प्रतिनिधियों को यह समस्या प्रमुखता से शासन स्तर पर उठानी चाहिए ताकि लोगों को बीमारियों से बचाया जा सके।

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