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अमेठीः आदिशक्ति मां कालिका धाम में भक्तों की अपार आस्था



अमेठी। माता रानी अमृत कुंड निवासिनी श्री कालिका जी के संग्रामपुर अमेठी उत्तर प्रदेश में प्रकटोत्सव के कारण महर्षि चमन मुनि सदा से भक्तों के आस्था के केंद्र बन चुके हैं । अपने भक्तों को कष्ट से उबारने के लिए आदिशक्ति मां अमृत कुंड़वासिनी कालिकन धाम अमेठी की आस्था क्षेत्र ही नहीं बल्कि आसपास के प्रत्येक जिलों के भक्तों में हैं आस्था का केंद्र बन चुका मां कालिका धाम में प्रत्येक सोमवार को सुबह 3रू00 बजे से ही दर्शनार्थियों का आगमन शुरू हो जाता है तथा सूर्योदय तक भीड़ बढ़ने पर स्थानीय प्रशासन मंदिर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी सहयोग करता है भक्तों में मां के प्रति ऐसी आस्था है कि मां उनके सभी कष्टों को हर कर मनोवांछित फल देती है मां कालिका धाम के पीठाधीश्वर श्री महाराज तथा मां कालिका के अनन्य भक्त अजय कुमार पांडेय ने बताया की मां का निवास यहां सतयुग से ही है जिसका पूरा इतिहास इस तरह से हैं। महर्षि चमन मुनि का इतिहास वेद सहित अठारह पुराणों में देवी भागवत में विभिन्न धार्मिक ग्रंथों सहित सुखसागर आदि में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है । महर्षि का जीवन त्याग तपस्या विश्वकल्याण धर्म रक्षा की धुरी के रूप में सदा स्मरणीय रहेगा। चमन मुनि महर्षि भृगु की पत्नी पुलोमा के गर्भ में जिस समय थे । उसी समय इनके पिता हिमालय परी क्षेत्र में तपस्या में लीन थे । प्रलोमा नाम का दैत्य इनकी माता के रूप माधुरी को देख कर आसक्त हो गया और सतीत्व भंग करने के लिए पकड़ लिया । पुलोमा माताजी ने विचार किया । यदि पति का स्मरण करती हूं तो प्रभु के श्री चरणों से ध्यान भंग हो जाएगा । यदि प्रभु का स्मरण करती हूं तो मेरे पति के ह्रदय से निकल कर,, मेरी मदद के लिए दौड़ पड़ेंगे । इसलिए ना मैं पति को बुला सकती हूं ना परमेश्वर को ।। अपनी माता की विवशता को देख कर चमन मुनि समय से पहले मां के गर्भ से निकल कर अपने दिव्य तेज से दैत्य को भस्मीभूत कर दिया ।। उसी क्षण माता पुलोमा ने ऋषि राज को आशीर्वाद दिया कि आप मातृशक्ति की रक्षा के लिए गर्भ से निकल पड़े हो तो आदिशक्ति मां कालिका जी की उपासना करके उनका प्रकटोत्सव कराओ । यही मेरा आदेश है । और विश्व कल्याण करने का उत्तम साधन भी। यह घटना सतयुग के प्रथम चरण की है । महर्षि चमन मुनि इसी परिक्षेत्र में घनघोर तपस्या करने लगे । तपस्या करते करते उनकी शरीर पर दीमक की बांबी बन गयी । जिसमें केवल उनकी आंखें चमकती हुयी दिखायी पड़ रही थी । अयोध्या नरेश महाराज सरयाति अपनी विशाल सेना के साथ इकलौती पुत्री सुकन्या को लेकर इस परिक्षेत्र में पधारे । अपनी सहेलियों के साथ सुकन्या जी वन भ्रमण के लिए निकल पड़ी बांवी के पास पहुंच कर विल से निकलने वाले दिव्य प्रकाश को देख कर कौतूहल बस उसमें एक डंडी डाल दी । ऋषिराज की दोनों आंखें फूट गयी । महात्मा की आंखों से रक्त की धारा बहती देखकर सुकन्या डर से कांपने लगी । अयोध्या नरेश सूचना पाकर आये,, विधिवत चमन मुनि का पूजन करके बारंबार क्षमा याचना मांगते हुए अपनी पुत्री को पत्नी के रूप में अंगीकार करने की प्रार्थना की । महर्षि जी के द्वारा सुकन्या का वरण किया गया । कालांतर में अश्वनी कुमार पधारे उनके द्वारा चवनप्राश जैसे आंवलेह को प्रथम बार तैयार किया गया । महर्षि को दिव्य औषधि मिश्रित सरोवर में स्नान करने के लिए कहा गया । स्नान के बाद ऋषि राज तरुण हो गये । अश्विनी कुमारों को यज्ञ में भाग दिलाने का घोष करते हुए देवताओं के विरुद्ध एक नयी चुनौती चमन मुनि ने प्रस्तुत कर दी । महर्षि जी के द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया । जिसमें देवराज इंद्र ने बज्र का प्रहार चमन मुनि को मार डालने के लिए,, करना चाहा । लेकिन महान तपस्वी के शरीर से एक दिव्य तेज प्रकट हुआ । जिसने देवराज इंद्र के हाथों का स्तंभन कर दिया । चारों तरफ हाहाकार मच गया । त्रिदेव की उपस्थिति में देवराज इंद्र को ऋषि द्वारा कष्ट मुक्त कराया गया ,, और अश्विनी कुमारों को यज्ञ भाग दिलाय गया ।। द्वापर के समापन के समय इसी भूमि से महर्षि चमन मुनि वशिष्ठ जी अत्रि महर्षि केये साथ जब परीक्षित जी को जव श्राप लगा था कि सातवें दिन तक्षक के डसने से राजन तेरी मृत्यु होगी । परीक्षित जी के सम्मुख आपने जय घोष कर दिया कि जिसकी रक्षा संत करेंगे । उसकी रक्षा में भगवंत अवश्य पधारेंगे । परीक्षित तेरी मृत्यु अकाल नहीं होगी । तेरी मृत्यु को संवारने के लिए स्वयं द्वारिकाधीश पधारकर तुझे गोलोक में दिव्य स्थान प्रदान करेंगे । कालिकन धाम के पावन स्थान पर मुनिराज ने सतयुग में घनघोर तपस्या करके माता रानी प्रसन्न कर,, माता रानी का दिव्य दर्शन किया । माता जी ने कहां पुत्र वर मांगो। महर्षि चमन ने माता रानी के चरणों पर गिरकर ,,अविचल इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की तथा कहा,, जिस तरह आपने मुझ दास पर कृपा की है । इसी तरह अनादिकाल तक यहां पर विराजमान होकर भक्तों के लिए बांझा कल्पतरू होकर सदा विश्व का कल्याण करो।। माता रानी ने एवमस्तु कर जहां भक्तराज चमन मुनि को निहाल किया वहीं इस क्षेत्र के सभी भक्तों के लिए वरदान देने वाली देवी मां कालिका जी के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुयीं । बाद में देवताओं एवं असुरों के द्वारा जव समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त किया गया तो,, उसकी रक्षा का भार आपके श्री चरणों में समर्पित किया गया ।। उसी समय से अमृत कलश पर विराजमान होने के कारण आपका नाम अमृत कुंड निवासिनी के रूप में प्रसिद्ध हुआ। सतयुग कालीन कालिकन धाम के मंदिर और माता रानी के प्रकटोत्सव होने के परम कारण माता रानी सुकन्या और महामुनि चमन जी हैं । सृष्टि के सृजन से संघार तक जब तक यह मंदिर विद्यमान रहेगा । तब तक परम कल्याणकारी माता रानी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी श्री कालिका जी के साथ महामुनि का नाम भक्तों के द्वारा हृदय की गहराइयों से लिया जाता रहेगा ।। आप ना होते तो माता रानी का दरबार इस परिक्षेत्र में ना होता ।


राघवेंद्र पांडेय Verified Badge

Reported by: Senior Journalist

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