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बाराबंकी: ढाई बीघा में लहराई समृद्धि रूरामपाल की जैविक सहफसली खेती बनी प्रेरणा


रसायनों से दूर, मुनाफे के पास किसान रामपाल ने जैविक खेती से खोले आमदनी के नए रास्ते, एक खेत में उगा रहे छह सब्जियां
दरियाबाद/बाराबंकी। खेती सिर्फ मेहनत नहीं, समझदारी भी मांगती है ।यह कहावत दरियाबाद विकास खंड के मल्लू लालपुर गांव के किसान रामपाल ने अपने जज्बे और नवाचार से सच कर दिखाई है। जहां एक ओर परंपरागत खेती में बढ़ती लागत और घटते मुनाफे ने किसानों को चिंता में डाल रखा है, वहीं रामपाल ने अपनी ढाई बीघा जमीन को सहफसली जैविक खेती का मॉडल बना दिया है।

रामपाल ने खीरा, परवल, बैगन, टमाटर, करैला और लोबिया इन छह सब्जियों की खेती एक साथ कर यह दिखा दिया है कि सीमित संसाधनों में भी समृद्धि हासिल की जा सकती है। खास बात यह है कि उन्होंने किसी भी रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया। गौमूत्र, नीम की पत्ती, दही और गुड़ से तैयार प्राकृतिक खाद और कीटनाशक से उन्होंने परवल और खीरे की ऑर्गेनिक खेती की है।

रामपाल बताते हैं कि इस खेती को शुरू करने में लगभग 50 हजार रुपये की लागत आई थी, लेकिन कुछ ही हफ्तों में बैगन, टमाटर और खीरे की बिक्री से ही यह लागत निकल गई। उन्होंने बाँस और रस्सी से मचान बनाकर बेल वाली फसलों को ऊपर चढ़ाया, जबकि नीचे की जमीन में टमाटर और बैगन की फसल लहलहा रही है। यह तकनीक जमीन के हर इंच का बेहतर उपयोग कर 60 प्रतिशत तक लागत घटाती है।

कभी आरएसएस में गौ सेवा प्रशिक्षण के जिला प्रमुख रहे रामपाल अब खेती को सेवा का माध्यम मानते हैं। उन्होंने बताया कि आज जब खेती संकट के दौर से गुजर रही है, ऐसे में जैविक और सहफसली खेती ही किसानों को आत्मनिर्भर बना सकती है।

रामपाल की यह अनूठी पहल सिर्फ मुनाफे की नहीं, एक संदेश की भी है कि बदलते दौर में नई सोच और प्राकृतिक विधियों से खेती को फिर से लाभ का सौदा बनाया जा सकता है। उनकी यह कहानी जिले के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रही है। कहते है जहाँ इच्छाशक्ति हो, वहाँ जमीन भी चमत्कार करने लगती है।

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