उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से हलाल प्रमाणित उत्पादों पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दायर किया, जिसमें ट्रस्ट ने केंद्र सरकार के आरोपों पर कड़ी आपत्ति जताई है. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि सीमेंट, सरिया समेत विभिन्न उत्पादों के लिए हलाल सर्टिफिकेट जारी करके लाखों करोड़ रुपये इकट्ठे किए जा रहे हैं.
केंद्र के आरोप का जवाब देते हुए ट्रस्ट ने कहा कि उसने कभी भी सीमेंट और सरिया को सर्टिफिकेट नहीं दिया था. उसने शीर्ष अदालत से अपील करते हुए कहा कि केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा जाए कि उसने किस आधार पर ये बयान दिया था. इसके अलावा ट्रस्ट ने अपनी कमाई बताते हुए कहा कि उसने बीते एक साल में केवल 2.1 करोड़ रुपये इकट्ठे किए हैं, जिसमें से 59.2 लाख रुपये टैक्स के रूप में जमा कराए हैं. ट्रस्ट ने लिपिस्टिक, तुलसी पानी, बिस्किट और पानी की बोतल आदि के लिए हलाल सर्टिफिकेट को उचित ठहराते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि उनके निर्माण में जानवरों की चर्बी, हड्डियों या किसी अन्य चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रस्ट ने अपने एफिडेविट में 20 जनवरी को अदालत की सुनवाई का जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र का बयान पूरी तरह से गलत, परेशान करने वाला, निंदनीय और आधारहीन है. सरकार के निर्देश अधिकारी ने सॉलिसिटर जनरल को ऐसे बयान देने का निर्देश देते समय गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार दिखाया है. यह अदालत सरकार को इस तथ्य के खुलासे के लिए निर्देश दे सकती है कि किस बारे में अधिकारी ने एसजी को इस अदालत के समक्ष ऐसा बयान देने का निर्देश दिया क्योंकि इन बयानों ने हलाल की अवधारणा पर गंभीर पूर्वाग्रह पैदा किया है, जिसे हमारे देश के एक बहुत बड़े समुदाय के व्यवहार और जीवनशैली की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक माना जाता है.
केंद्र ने अदालत को बताया था कि 'हलाल' प्रमाणन केवल खाद्य पदार्थों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी प्रकार के उत्पादों के लिए किया जाता है, यहां तक कि सीमेंट और सरिया को भी हलाल-प्रमाणित करना पड़ता है. आरोपों का जवाब देते हुए ट्रस्ट ने कहा कि हमने कभी सीमेंट और सरिया के लिए हलाल सर्टिफिकेट जारी नहीं किया है.