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जगदीशपुर: अन्नदाता खेती की रखवाली करने को मजबूर, फिर भी नहीं बचा पा रहे फसल


जगदीशपुर/अमेठी।
नीलगाय व छूटटा जानवर के आंतक अन्नदाता बेहाल झूंड के झूंड कर रहे हमला । विकासखंड क्षेत्र के अंतर्गत स्थित परवेजपुर, मोहबतपुर, बूबूपुर, खैरतपुर,पूरे गौहर,पाहड पुर,मंगौली, गोराडीह, देवकली, गडारियाडीह ,आलम पुर, निसूरा, हरपाल पुर, असरफ पुर, आदि गांवों में कड़ाके की ठंड और शीतलहर के बीच खेतों में खून जमा देने  वाली रातें किसान जाग कर काट रहे लेकिन तमाम कोशिशों के बाद उनकी मेहनत पर नीलगाय व छूटटा जानवर पानी फेर रहे हैं क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में जानवरों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि झुंड के झुंड खेतों में घूसकर देखते ही देखते एक से दो बीघा फसल साफ कर दे रहे हैं। गेहूं,चना,सरसो,मटर सहित रवी की अधिकांश फसलें जानवरों से बर्बाद हो रही है किसानों का कहना है कि दिनभर खेतों में मेहनत करने के बाद रात में भी अलाव जलाकर पहरा देना उनकी मजबूरी बन गई है ठंड सेठ उड़ते हुए किसान टॉर्च व डंडा पटाखा और शोर शराबी के सहारे नीलगाय व छुट्टा जानवर को भगाने की कोशिश करते रहते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद वही झुंड फिर वापस आ जाता है। कई बार तो संख्या इतनी ज्यादा होती है। कि किसान असहाय होकर तमाशबीन बन जाते हैं। ग्रामीण किसानों के अनुसार नीलगाय व छुट्टा जानवर अब केवल जंगल या परती जमीन तक सीमित नहीं रही। बल्कि आबादी और खेतों के बीच बेखौफ घूम रहे हैं। खेतों के मेड़ बांध और तार इनके आगे वेअसर साबित हो रहे हैं। एक किसान महीनों की मेहनत कुछ ही मिनट में जानवरों के झुंड के द्वारा तबाह कर दी जाती है। जिससे किसान आर्थिक संकट की ओर धकेले जा रहे हैं। किसानों ने बताया पहले यह समस्या सीमित थी लेकिन बीते हुए वर्षों में जानवरों की संख्या तेजी से बढ़ोतरी हुई है। फसल नुकसान के बाद मुआवजे की प्रक्रिया जटिल और धीमी होने से किसानों में आक्रोश है।कई किसानों का कहना है कि नुकसान का सही आकलन तक नहीं हो पाता जिससे उन्हें अपेक्षित सहायता नहीं मिलती। किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि नीलगाय व छुट्टा जानवरों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण के लिए ठोस स्थाई समाधान निकाला जाए खेतों की सुरक्षा के लिए सोलर फेसिंग सामुदायिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में विशेष अभियान और फसल छति का त्वरित मुआवजा देने की व्यवस्था की जाए साथ ही वन विभाग व कृषि विभाग की संयुक्त प्रयास से इस समस्या का स्थाई हल निकाला जाए जिससे अन्नदाता भीषण ठंड मेंचैन की नींद सो सके।

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