पीलीभीत। जनपद में दबंगई, पुलिस की कार्यप्रणाली और कथित राजनीतिक प्रभाव का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। थाना कोतवाली क्षेत्र के गनेशगंज गोटिया गांव में एक महिला की बेरहमी से पिटाई के बाद हुई मौत के बावजूद पुलिस द्वारा हत्या की धारा न लगाए जाने से पीड़ित परिवार न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है।पीड़ित पक्ष के अनुसार, 16 नवंबर को आरोपी हरप्रसाद पुत्र खेमकरन और उसकी पत्नी सोनी ने मिलकर घर में घुसकर प्रार्थी की मां पर जानलेवा हमला किया। आरोप है कि आरोपियों ने महिला को बाल पकड़कर जमीन पर पटक दिया और सिर को बार-बार जमीन पर मारा, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गईं। महिला मौके पर ही बेहोश हो गईं। हालत नाजुक होने पर उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
मामले में पुलिस ने मृतका का पंचायतनामा भरकर पोस्टमार्टम तो कराया, लेकिन परिजनों का आरोप है कि शुरुआत से ही घटना को हल्का दिखाने का प्रयास किया गया। मृतका की मृत्यु से पूर्व थाना कोतवाली में मु0अ0सं0 388ध्2025 के तहत धारा 324(4), 333, 115(2), 109, 351(3) बीएनएस में मुकदमा दर्ज किया गया था, लेकिन महिला की मौत के बाद भी धारा 103 बीएनएस (हत्या) नहीं जोड़ी गई, जो पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करता है।परिजनों का कहना है कि घटना का वीडियो साक्ष्य विवेचक को उपलब्ध कराया गया है, जिसमें मारपीट साफ दिखाई दे रही है, इसके बावजूद आरोपी अब तक खुलेआम घूम रहे हैं। आरोप है कि मुख्य आरोपी हरप्रसाद राजनीतिक रूप से प्रभावशाली और धनाढ्य है, जिसके चलते पुलिस और विवेचक उस पर मेहरबान बने हुए हैं।इतना ही नहीं, आरोप है कि 23 नवंबर के बाद पुलिस ने मामले की दिशा बदलते हुए मु0अ0सं0 1622ध्2025 में धारा 170, 126, 135 बीएनएस के तहत शांति भंग के नाम पर चालान कर मामले को दबाने की कोशिश की, जिससे आरोपियों को अप्रत्यक्ष संरक्षण मिल गया।पीड़ित परिवार का यह भी आरोप है कि उक्त हमला मृतका के परिवार के घर पर जबरन कब्जा करने की नीयत से किया गया था। न्याय न मिलने से आहत प्रार्थी और उसका परिवार पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर अनशन और भूख हड़ताल करने को विवश हो गया है। पीड़ित ने मुख्यमंत्री पोर्टल और मुख्यमंत्री आवास, लखनऊ जाकर भी न्याय की गुहार लगाई है।पीड़ित परिवार ने पुलिस अधीक्षक से मांग की है कि मामले में तत्काल जोड़ते हुए सभी आरोपियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए तथा थाना कोतवाली पुलिस की भूमिका की निष्पक्ष जांच कराई जाए। यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि क्या प्रभावशाली आरोपियों के सामने कानून बेबस हो चुका है? और क्या एक महिला की जान की कीमत केवल कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रह गई है?।
