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पीलीभीतः गन्ने के साथ दलहन-तिलहन की सहफसली खेती से बढ़ रही किसानों की आय! सुधर रही मिट्टी की सेहत और खुशहाल किसान


पीलीभीत। सहकारी गन्ना विकास समिति बीसलपुर के ग्राम मलुआ में वैज्ञानिक खेती और सहफसली प्रणाली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गन्ना किसानों का एक विशेष भ्रमण आयोजित किया गया। इस दौरान ग्राम मलुआ के प्रगतिशील गन्ना किसान  अरुण मिश्रा के फार्म का निरीक्षण किया गया। श्री मिश्रा ने उपस्थित अधिकारियों और किसानों को अपने फार्म पर गन्ने के साथ दलहनी और तिलहनी फसलों की सहफसली खेती के लाभ और तकनीकी पहलुओं से अवगत कराया। अरुण मिश्रा ने बताया कि वे सहकारी गन्ना विकास समिति बीसलपुर के विधिक सदस्य हैं और अपनी गन्ना फसल बरेली जनपद स्थित द्वारिकेश चीनी मिल को आपूर्ति करते हैं। उन्होंने यह भी साझा किया कि वे गन्ने के साथ मसूर, राजमा, चना, सरसों और मटर की सहफसली खेती अपनाते हैं। उनके अनुसार इस सहफसली प्रणाली से गन्ने की मुख्य फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि सीमित लागत में अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त होता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।विशेषज्ञों के अनुसार, दलहनी फसलों की सहफसली खेती से मृदा में नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार होता है। तिलहनी फसलें खेतों में कीट और खरपतवार नियंत्रण में भी मदद करती हैं, जिससे किसानों की रासायनिक उर्वरक पर निर्भरता कम होती है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होती है बल्कि खेतों की लंबी अवधि में मिट्टी की सेहत भी बेहतर होती है। गन्ना विकास विभाग  द्वारा जिले के किसानों को लगातार इस वैज्ञानिक सहफसली खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। विभाग के अधिकारियों का मानना है कि सहफसली खेती किसानों के लिए आय में वृद्धि का एक स्थायी और प्रभावी उपाय है। जिले में चालू पेराई सत्र के दौरान अब तक लगभग 8000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने के साथ विभिन्न फसलों की सहफसली खेती की जा चुकी है, जो इस तकनीक की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाती है।इस अवसर पर गन्ना अधिकारी खुशीराम भार्गव, सहकारी गन्ना विकास समिति बीसलपुर के सचिव  राजेश कुमार, ज्येष्ठ गन्ना विकास निरीक्षक  मनोज साहू और अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित थे। अधिकारियों ने किसानों को सहफसली खेती के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी लाभों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वे अधिक से अधिक क्षेत्रफल में इस सहफसली तकनीक को अपनाएं ताकि न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो बल्कि मिट्टी की दीर्घकालीन उर्वरता भी बनी रहे।किसान समुदाय ने भी इस पहल को सराहा और कहा कि सहफसली खेती ने उन्हें सीमित संसाधनों में अधिक लाभ कमाने का अवसर प्रदान किया है। किसानों के अनुसार, यह तकनीक उनके लिए आर्थिक सुरक्षा का माध्यम बन रही है और साथ ही यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में भी सहायक है।

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