प्रतापगढ। जिले में जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार शर्मा ने शनिवार को बताया है कि रबी मौसम में आलू की अगेती फसल किसानों के लिए मुनाफे का सौंदा होती है, लेकिन जरा से लापरवाही होने पर आर्थिक नुकसान पड़ जाता है। जिन किसानों ने आलू की खेती की है, उन्हें इस समय ठंड बढ़ने के साथ-साथ पाला एवं झुलसा रोग का खतरा सताने लगता है। ऐसे में किसान भाईयों को समय रहते जरूरी बचाव करते हुए फसल का उपचार करने की आवश्यकता है।
जिला उद्यान अधिकारी ने जिले के किसानों को सलाह दी है कि ठंड के मौसम में कई दिनों तक बादलयुक्त मौसम होने के कारण वातावरण में नमी की मात्र बढ़ जाती है। वातावरण में 80 प्रतिशत से अधिक नमी एवं 10 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच तापक्रम में होने पर आलू में झुलसा रोग का खतरा बढ़ जाता है। यदि समय से इसका उपचार न किया जाय तो पूरी फसल खेत में ही झुलस जाती है। इससे उत्पादन में 80 से 90 प्रतिशत तक कमी आ जाती है तथा साथ में इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है। आलू की फसल में यह रोग फाइटोब्योरा नामक फफूंद से होता है। इस रोग में पौधों की पत्तियां सिरे से झुलसने लगती है। प्रभावित पत्तियों पर भूरे एवं काले रंग के धब्बे बनते है जो तीव्र गति से ऊपर की ओर फैलते जाते है। इसमें 3 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है।
रोग के प्रभाव से आलू के कन्दों का आकार छोटा रह जाता है। आलू की अच्छी पैदावार लेने के लिए अगेती व पिछेती झुलसा का नियन्त्रण करना बेहद जरूरी है। रोग के नियन्त्रण के लिए किसान भाई मेटालाक्सिल 4 प्रतिशत तथा मैंकोजेब 64 प्रतिशत या कारवेन्डाजिम 12 प्रतिशत तथा मैंकोजेब 63 प्रतिशत को 600 ग्राम तथा इमिडाक्लोरोपिड़ 17.8 प्रतिशत 150 मिली लीटर दवा को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से 10-12 दिनों के अन्तराल पर दो छिड़काव करें। साथ ही फसल को पाले से बचाव हेतु खेत में यथा सम्भव नमी बनाए रखें, जिसके लिए नियमित अन्तराल पर हल्की सिंचाई करते रहे या खेत के चारों तरफ धुंआ करें।
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