पीलीभीत । शहर में चर्चित बदनाम लस्सी प्रतिष्ठान पर हुई जीएसटी विभाग की कार्रवाई ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश में अब टैक्स चोरी किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं। चाहे व्यक्ति साधारण व्यापारी हो या किसी बड़े संगठन का पदाधिकारीकृकानून के दायरे से कोई भी बाहर नहीं।
प्रदेश के उद्योग व्यापार मंडल के मंडल उपाध्यक्ष डालचंद सक्सेना के प्रतिष्ठान पर 17.50 लाख रुपये की टैक्स चोरी का खुलासा सिर्फ एक वित्तीय अनियमितता का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था को चुनौती देने की कोशिश का प्रतीक भी है। बीते वर्षों की बिक्री डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक होने के बावजूद मात्र 50 हजार रुपये टैक्स जमा करना और आईटीसी का फर्जी लाभ उठाना, यह दर्शाता है कि एक योजनाबद्ध ढंग से राजस्व को क्षति पहुंचाई जा रही थी। यह स्थिति किसी एक प्रतिष्ठान की नहीं, बल्कि उन सभी व्यापारिक संस्थानों के लिए चेतावनी है, जो नियमों के प्रति लापरवाही बरतते हैं।
छापेमारी के दौरान स्टॉक का रिकॉर्ड न मिलना, ग्राहकों को बिल न देना और क्रय-विक्रय के दस्तावेज प्रस्तुत न कर पानाकृये सभी बातें साफ तौर पर यह साबित करती हैं कि अनियमितताएं लंबे समय से जारी थीं। मौके पर दो लाख रुपये जमा कर देने से आरोप हल्के नहीं हो जाते, बल्कि यह स्वीकारोक्ति बन जाती है कि कहीं न कहीं नियमों की अनदेखी हुई है।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि छापेमारी के दौरान व्यापार मंडल के पदाधिकारियों द्वारा दबाव बनाने की कोशिश की गई। यह प्रवृत्ति व्यापार जगत और संगठनों की साख पर प्रश्नचिह्न लगाती है। ऐसे मामलों में संगठन के पदाधिकारियों का दायित्व जनता के प्रति अधिक होता है, न कि गलतियों को ढकने का।
जीएसटी टीम ने न केवल स्टॉक सील किया, बल्कि आगे की जांच का संकेत भी दिया हैकृजो आवश्यक है। यह कार्रवाई उन सभी व्यापारियों के लिए संदेश है, जो आज भी बिल न देने, फर्जी आईटीसी क्लेम करने और टैक्स चोरी जैसे हथकंडों के सहारे अपने कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं।
यह समझना होगा कि टैक्स चोरी सिर्फ सरकार को नहीं, बल्कि समाज के हर नागरिक को नुकसान पहुंचाती है।
यही राजस्व सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं में खर्च होता है। जब कोई व्यापारी करोड़ों का कारोबार कर टैक्स न दे, तो उसका सीधा असर आम जनता की सुविधाओं पर पड़ता है।
इस कार्रवाई की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने व्यापार समुदाय में हलचल पैदा की है। अब अन्य प्रतिष्ठानों पर भी सख्त नजर है और यह भय जरूरी भी हैकृक्योंकि कानून तभी प्रभावी माना जाता है, जब उसका पालन करवाने वाले दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाएं।
जीएसटी विभाग की यह कार्रवाई सराहनीय है और भविष्य के लिए मार्गदर्शक भी। ऐसे मामलों में किसी भी तरह की राजनीतिक या संगठनात्मक ढाल को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
व्यवस्था तभी मजबूत बनेगी, जब व्यापार जगत में पारदर्शिता, ईमानदारी और जवाबदेही की संस्कृति स्थापित होगी।
इस छापेमारी ने यही संदेश दिया हैं। “कानून सबके लिए बराबर है, और टैक्स चोरी किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं।”
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