फतेहपुर /बाराबंकी। आधुनिकता और विकास की अंधी दौड़ में योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन की जगह सब कुछ राम भरोसे छोड़ दिया गया। इसका सबसे बड़ा खामियाजा कल्याणी नदी को भुगतना पड़ रहा है। मलमूत्र, घरेलू कचरा, झाड़ियां, जलकुंभी और अन्य अवशिष्टों ने नदी को पूरी तरह तबाह कर दिया है। नदी के जलसंग्रहण क्षेत्र में जहां-तहां मनमाने कब्जे कर लिए गए हैं। नतीजा यह है कि कभी जीवनदायिनी रही कल्याणी नदी आज अपने वजूद के लिए तरस रही है।नदी के सिकुड़ने का सीधा असर भूजल स्तर पर भी पड़ा है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि गर्मी के दिनों में नलकूपों की सांसें फूलने लगती हैं और किसानों व आम लोगों को पानी के लिए जूझना पड़ता है।बाराबंकी और सीतापुर की सीमा पर स्थित धन्नगा सरोवर से निकलकर अयोध्या तक लगभग 173 किलोमीटर लंबी कल्याणी नदी आज कई स्थानों पर दम तोड़ती नजर आ रही है। हालांकि करीब पांच वर्ष पूर्व बाराबंकी प्रशासन ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत महज 2.6 किलोमीटर क्षेत्र में नदी के कायाकल्प का प्रयास किया था, लेकिन वह प्रयास सीमित दायरे से आगे नहीं बढ़ सका।विशेषज्ञ मानते हैं कि सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है, लेकिन मौजूदा दौर में विकास के नाम पर सबसे पहला हमला नदियों पर ही किया जा रहा है। एक ओर नदियों को खुलेआम प्रदूषित किया जा रहा है, तो दूसरी ओर अतिक्रमण के चलते कई नदियां या तो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई हैं। शुद्धीकरण और पुनर्जीवन के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद धरातल पर वांछित परिणाम नहीं दिख रहे।कल्याणी नदी पर आज भी सैकड़ों स्थानों पर अतिक्रमण बना हुआ है। निंदूरा, अटहरा, भड़ार, बजगहनी, देवरा, लिलोली सहित कई गांवों में नदी को पाटकर खेती की जा रही है। फतेहपुर के विशुनपुर से रामसनेहीघाट तक कई स्थानों पर नदी रेत और गंदगी से पटी हुई है। नदी के प्राकृतिक सोते बंद हो चुके हैं, जिससे उसका प्रवाह लगातार कमजोर होता जा रहा है।लखनऊदृमहमूदाबाद मार्ग पर कुर्सी के निकट औद्योगिक क्षेत्र में रेठ नदी को पाटकर पक्का नाला बना दिया गया है, जिससे वहां की जलधारा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है और जीव-जंतु विलुप्त हो गए हैं। बैना टिकरहार, पीलहेटी, उमरा और अमरसंडा जैसे क्षेत्रों में भी नदी पर अतिक्रमण की स्थिति गंभीर बनी हुई है।
निंदूरा ब्लॉक क्षेत्र के निंदूरा, लिलोली, चंद्रपुरी, बड्डूपुर, कातूरीकला, पहाड़पुर, देवरा, गंगियामऊ सहित कई स्थानों पर वर्षों से फैली जलकुंभी ने नदी को अपने आगोश में जकड़ रखा है। इससे न केवल नदी का प्रवाह बाधित हो रहा है, बल्कि उसका अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि समय रहते अतिक्रमण हटाकर नियमित सफाई और पुनर्जीवन की ठोस योजना पर काम नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में कल्याणी नदी केवल नक्शों और कागजों तक ही सिमट कर रह जाएगी।
