लखनऊ। राजा महेंद्र प्रताप सिंह की 139 वी जयंती पर भारतीय जाट सभा लखनऊ द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया.उक्त कार्यक्रम के अध्यक्ष कप्तान सिंह ने अपने वक्तव्य में उनके जीवन पर बृहद प्रकाश डालते हुए कहा राजा साहब भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम पंक्ति के सेनानायक, महान चिंतक व विचारक,दार्शनिक लेखक, शिक्षाविद तथा समाज सुधारक थे.उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारत की आजादी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बलिदान कर दिया राजा महेंद्र प्रताप का जन्म 1 दिसंबर 1886 को मुरसान अलीगढ़ के राज परिवार में हुआ उन्हें हाथरस के राजा हरनारायण सिंह के द्वारा तीन वर्ष की आयु में अपने उत्तराधिकारी के रूप में गोद ले लिया गया.राजा साहब का सामाजिक व राजनीतिक जीवन वर्ष 1907 से ही प्रारंभ हो गया था. उन्होंने न केवल भारतवर्ष की यात्रा की वरन कई यूरोपीय देशों की यात्रा भी की इन यात्राओं के समय उन्होंने भारत की दुर्दशा देखी तथा विदेशी यात्राओं के अनुभवों के बाद उनका यह दृढ़ मत बन गया कि भारत को स्वतंत्र कराये बिना इसका ऊधार नहीं हो सकता. इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु वे जीवन पर्यायंत प्रयासत रहे. उनके प्रमुख प्रयासों में से ’तकनीकी शिक्षण संस्थान की स्थापना.राजा साहब का मत था कि भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समक्ष लाने के लिए तकनीकी शिक्षा का प्रसार करना होगा इसके लिए उन्होंने वर्ष 1909 में वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की इसका समस्त खर्चा स्वयं वहन किया।
देश को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से राजा साहब अपने परिवार को छोड़कर 1914 में विदेश चले गए, ताकि भारत की स्वतंत्रता के प्रति सहानुभूति रखने वाले विभिन्न देशों से सहयोग लेकर संघर्ष किया जाए, जर्मनी इत्यादिकाई देश के द्वारा उनके संकल्प का स्वागत किया गया. 2 अक्टूबर 1915 में काबुल पधारे जहां अफगान सरकार ने अपना आथितय प्रदान किया.
देश के बाहर भारत की प्रथम अस्थाई सरकार का गठन’ राजा साहब ने 1 दिसंबर 1915 को काबुल में भारत की प्रथम अस्थाई सरकार का की स्थापना की.इस सरकार को संसार के छह महत्वपूर्ण देशों के द्वारा मान्यता प्रदान की गई. राजा साहब ने यहां पर सेना का भी गठन किया परंतु देसी रियासतों के द्वारा सहायता प्रदान न करने तथा प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार की विजय से राजा साहब को अपने प्रयास में सफलता न मिल सकी,परंतु उन्होंने हार नहीं मानी तथा निरंतर विभिन्न देशों से संपर्क स्थापित करते रहे.
द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर राजा साहब ने पुनः एक शक्तिशाली आंदोलन का सूत्रपात किया. भारत को यथाशीघ्र स्वतंत्र करने के लिए अनेक संगठनों में तालमेल बैठाने के लिए इन्होंने टोक्यो जापान में अधिशासी बोर्ड का गठन किया. इसी प्रयासों के फलस्वरूप बाद में आजाद हिंद फौज का गठन हुआ था.संसार सघंकी परिकल्पना राजा साहब ने अनुभव किया कि लीग आफ नेशंस प्रभावहीन रही है.अतः उन्होंने वर्ष 1929 में बर्लिन में संसार संघ वर्ल्डकी स्थापना की.इसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग, शांति,उपनिवेशक सक्रियता विरोधी संस्कृति को प्रोत्साहित करना था. ’प्रेम धर्म की परिकल्पना’राजा साहब ने प्रेम धर्म की रूपरेखा सामने रखी इसका उद्देश्य जाति, पंथ तथा धर्मो की विभिन्नताओं से ऊपर उठकर मानवीय धर्म को अपनाना था.
अपनी कल्पना के अनुसार स्थापित उपरोक्त उपरोक्त संस्थाओं का समुचित विकास की दृष्टि से राजा साहब ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में घोर चिंतन व अन्वेषण किया और नव विचार विधान के रूप में संसार के सामने रखा.इस बारे में उन्होंने कई पुस्तक भी लिखी थी. राजा साहब का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित.
वर्ष 1932 में राजा साहब को उनके अंतरराष्ट्रीय सहयोग तथा उपनिवेशक सक्रियता विरोधी प्रयासों के आधार पर नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. दुर्भाग्यवस उस वर्ष इस पुरस्कार का वितरण नहीं हुआ.
32 वर्षों के लंबे अंतराल पश्चात राजा साहब वर्ष 1946 में भारत लौटे. वर्ष 1957 में वह मथुरा से सांसद चुने गए जीवन पर्यंत वह राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को प्रथम मानते हुए राष्ट्रभक्त होने के कारण सदैव राष्ट्र के हित के लिये कार्य करते रहे.
आज की बैठक में अध्यक्ष कप्तान सिंह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष रामराज सिंह एडवोकेट, सचिव धर्मेंद्र कुमार, राजेंद्र सिंह सूचना आयुक्त उत्तर प्रदेश, डॉक्टर संदीप बालियान, रविकांत सिंह,डॉक्टर सुरेश कुमार, आलोक चैधरी, विकास कुमार,यशवीर सिंह चेयरमेन, एवं मीडिया प्रभारी भारतीय जाट सभा लखनऊ चैधरी मुकेश सिंह उपस्थित रहे. कार्यक्रम के अंत में सचिव धर्मेंद्र कुमार के द्वारा सभी आए हुए आगंतुक अतिथियों का हृदय से आभार व्यक्त किया.
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