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तेलंगाना में पंचायत चुनाव में देरी पर हाईकोर्ट सख्त


तेलंगाना में लंबित स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने सरकार को इस महीने की 24 तारीख तक चुनावों की तारीखों की घोषणा करने का स्पष्ट आदेश दिया है, जिससे राज्य के राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया है. हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 243-ई का हवाला देते हुए कहा कि पंचायतों का कार्यकाल खत्म होने के 6 महीने के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य है और इसमें किसी भी तरह की देरी असंवैधानिक है.

इस दौरान सरकार की ओर से दलील दी गई कि उनकी आपत्ति केवल पिछड़ा वर्ग (बीसी) आरक्षण के मुद्दे पर है, चुनाव कराने के खिलाफ नहीं. राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) ने एक प्रस्ताव रखा था कि बीसी आरक्षित ग्राम पंचायतों को छोड़कर बाकी गांवों में पहले चुनाव कराए जाएं. हालांकि, हाईकोर्ट ने इस चरणबद्ध चुनाव कराने के विचार को खारिज कर दिया और कहा कि इस तरह से चुनावों को विभाजित करना संवैधानिक रूप से गलत है. अदालत ने साफ कर दिया है कि आरक्षण का मुद्दा अलग से निपटाया जा सकता है, लेकिन चुनाव में देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

तेलंगाना हाई कोर्ट के बार-बार दिए गए निर्देशों और उनके द्वारा निर्धारित समय-सीमा की अवहेलना करते हुए राज्य सरकार स्थानीय निकायों के चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए टालने पर अड़ियल रुख अपनाए हुए है. उच्च न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग को लंबित चुनावों की अधिसूचना जारी करने और प्रक्रिया को पूरा करने के लिए एक निश्चित समय-सीमा तय की थी, जो अब लंबे समय से बीत चुकी है.


सरकार का दृढ़ रुख है कि वह पिछड़ा वर्ग (BC) को 42 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के अपने ऐतिहासिक फैसले को व्यवहार में लागू किए बिना चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं है. यह आरक्षण विधेयक हाल ही में राज्य विधानसभा में धूमधाम से पारित किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य राज्य की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में पिछड़ा वर्ग की एक मजबूत और प्रभावशाली हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है. मुख्यमंत्री ने इसे सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता करार देते हुए स्पष्ट किया है कि आरक्षण के बिना चुनाव कराना पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय होगा.


इस गतिरोध के कारण, ग्राम पंचायतों, मंडल परिषदों और नगर निकायों जैसे लोकतांत्रिक संस्थान महीनों से जनप्रतिनिधियों के अभाव में विशेष अधिकारियों के माध्यम से चलाए जा रहे हैं. इस स्थिति का विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया है. उनका आरोप है कि सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोकतंत्र की मूल संरचना को कमजोर कर रही है और न्यायपालिका के आदेशों की खुली अवहेलना कर रही है.

अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या उच्च न्यायालय इस मामले में सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही जैसा कदम उठाएगा या सफिर सरकार अपने राजनीतिक एजेंडे को प्राथमिकता देते हुए आगे बढ़ेगी. यह विवाद राज्य की राजनीति, प्रशासन और न्यायपालिका के बीच एक गंभीर टकराव को दर्शाता है.

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