Type Here to Get Search Results !
BREAKING NEWS

चुनावी एक्सपर्ट अमिताभ तिवारी की चौंकाने वाली भविष्यवाणी! बिहार में कौन सी पार्टी मजबूत


बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्म हो चुकी है. विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और राज्य में माहौल चुनावी रंग में रंग चुका है. पोस्टर, भाषण और रैलियों के बीच अब चर्चा सिर्फ एक सवाल की है कि इस बार कौन बनेगा बिहार का किंग और कौन रहेगा रेस से बाहर? इसी बीच, राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने एक ऐसा अध्ययन पेश किया है, जिसने पूरे चुनावी समीकरण को नए सिरे से समझने का मौका दिया है. उन्होंने पिछले छह से सात चुनावों तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के परिणामों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए बताया है कि कौन सी पार्टी कहां मजबूत है और किसकी जमीन खिसक रही है.

जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू की स्थिति बिहार में इस बार संतुलन से ज़्यादा अस्थिर दिख रही है. अमिताभ तिवारी के विश्लेषण के अनुसार, जेडीयू की लगभग 17 सीटें ऐसी हैं, जिन्हें बहुत मजबूत श्रेणी में रखा गया है, लेकिन इनमें से पार्टी ने केवल 6 से 7 पर ही जीत दर्ज की है. वहीं मजबूत श्रेणी की 31 सीटों में भी जेडीयू का प्रदर्शन कमजोर रहा है. इनमें से सिर्फ चार से 5 सीटें ही उसके खाते में आईं.

हम अगर मध्यम सीटों की बात करें तो जेडीयू के पास लगभग 34 ऐसी सीटें हैं, जहां उसका प्रदर्शन न तो बहुत अच्छा रहा है और न ही बहुत खराब, लेकिन बड़ी चिंता की बात यह है कि पार्टी की 116 सीटें मुश्किल श्रेणी में आती हैं. यानी ऐसी सीटें, जहां जीत हासिल करना लगभग नामुमकिन रहा है. इन सीटों में से जेडीयू ने केवल एक या दो सीटें ही जीती हैं. कमजोर श्रेणी की 45 सीटों पर जेडीयू का खाता तक नहीं खुल पाया है.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) की स्थिति भी जेडीयू से बहुत अलग नहीं है. विश्लेषण के मुताबिक, भाजपा की 19 सीटें बहुत मजबूत मानी जाती हैं पर उनमें से केवल छह से सात पर ही जीत मिली है. 47 मजबूत सीटों में भी भाजपा केवल 4 से 5 पर ही जीत दर्ज कर पाई. जहां मध्यम श्रेणी की 44 सीटों में से पार्टी ने तीन जीतीं, वहीं मुश्किल सीटों पर उसकी स्थिति बेहद कमजोर रही. करीब 70 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद से नीचे रहा और 63 सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी को एक भी जीत नहीं मिली. इन आंकड़ों से यह साफ दिखता है कि भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक कई क्षेत्रों में खिसक रहा है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां गठबंधन की नीतियों को लेकर नाराजगी देखने को मिल रही है.

अगर किसी पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी पकड़ बनाए रखी है तो वह है राष्ट्रीय जनता दल (राजद). राजद के पास कुल 16 सीटें ऐसी हैं, जिन्हें मजबूत श्रेणी में रखा गया है और इनमें से 4 से 5 सीटों पर पार्टी लगातार जीत दर्ज करती आई है. मध्यम श्रेणी की सीटों पर भी राजद का प्रदर्शन संतुलित है, जिसमें 16 सीटों में से तीन पर जीत हासिल की गई. दिलचस्प बात यह है कि राजद की मुश्किल श्रेणी की 116 सीटों में से भी पार्टी ने एक से दो सीटें जीतने में कामयाबी पाई है. यह बताता है कि भले ही क्षेत्र कठिन हो, लेकिन लालू यादव का परंपरागत वोट बैंक आज भी कुछ इलाकों में प्रभावी है. हालांकि, कमजोर श्रेणी की 93 सीटों पर राजद का खाता अब तक नहीं खुला है.

कांग्रेस की स्थिति बिहार में सबसे कमजोर कही जा सकती है. उसके पास बहुत मजबूत श्रेणी में कोई सीट नहीं है. केवल 7 सीटें मध्यम श्रेणी में आती हैं और इनमें से 3 पर उसने जीत दर्ज की है. 44 मुश्किल सीटों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा — मुश्किल से एक या दो सीटें जीतीं. 189 कमजोर सीटों पर तो कांग्रेस का नाम तक नहीं दिखा. वहीं, वामदलों की बात करें तो भाकपा-माले और सीपीएम दोनों की स्थिति लगभग समान है. विश्लेषण बताता है कि वामदलों के पास कोई मजबूत या बहुत मजबूत सीट नहीं है. सीपीएम ने 11 मुश्किल सीटों में से केवल 1 या 2 पर जीत हासिल की है, जबकि कमजोर श्रेणी की 200 से अधिक सीटों पर वह जीत दर्ज करने में नाकाम रही है.

हम (हिंदुस्तान आवाम मोर्चा), रालोसपा, लोजपा और वीआईपी जैसे दलों की स्थिति इस चुनावी समीकरण में हाशिए पर है. इन पार्टियों के पास कोई बहुत मजबूत या मजबूत सीट नहीं है. लोजपा के पास 23 मध्यम श्रेणी की सीटें हैं, जिनमें से वह केवल तीन पर जीत पाई है. रालोसपा और हम के पास मुश्किल श्रेणी की कुछ सीटें हैं, जहां उनकी जीत सीमित रही है. वीआईपी पार्टी, जो कभी एनडीए के साथ थी और अब महागठबंधन में शामिल है. उसके पास 5 कठिन सीटें हैं और उनमें से केवल एक-दो पर जीत का रिकॉर्ड है. इससे साफ है कि छोटे दल अब बड़े गठबंधनों पर निर्भर होकर ही चुनावी अस्तित्व बनाए रख सकते हैं

अमिताभ तिवारी के विश्लेषण में बिहार को दो भागों उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार में बांटा गया है. उत्तर बिहार में जेडीयू की पकड़ दक्षिण की तुलना में अधिक दिखती है. यहां उसकी 12 बहुत मजबूत सीटें हैं, जिनमें से 6 से 7 पर उसने जीत हासिल की है. दक्षिण बिहार में उसकी 5 बहुत मजबूत सीटें हैं, जिनमें से उसने 7 में से 5 जीतीं. भाजपा की उत्तर बिहार में 15 मजबूत सीटें हैं, जिनमें उसका जीत अनुपात लगभग 6:7 है, जबकि दक्षिण बिहार में स्थिति थोड़ी कमजोर है. राजद की उत्तर बिहार में पकड़ स्थायी रही है. यहां उसने 16 में से छह से सात सीटों पर जीत दर्ज की है. दक्षिण बिहार में राजद का प्रभाव सीमित रहा है.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Design by - Blogger Templates |