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Sonebhadra: लखनऊ जांच टीम आने से पहले खनन माफियाओं को मिल जाता है सुराग खनन का काम रहा ठप जाते ही गड़गड़ाने लगी मशीन।

जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने वाली सरकार में माफिया क्यो दिन हो चाहे रात क्यो राजस्व को लगा रहे है चपत।

सोनभद्र।  प्रदेश सरकार भले ही पारदर्शिता और जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने का दावा करती हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे उलट दिखाई दे रही है। खनन विभाग और खननकर्ताओं के बीच की साठगांठ का ऐसा नेटवर्क तैयार है जो किसी भी जांच को शुरू होने से पहले ही विफल कर देता है। लखनऊ जांच टीम के सोनभद्र पहुंचने से पहले ही खनन क्षेत्र के कारोबारियों को इसकी जानकारी मिल जाती है। ऐसे में जांच का मकसद और पारदर्शिता दोनों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जांच से पहले ही गायब हो जाती हैं मशीनें और टीपर वैसे ही खदानों में लगी भारी मशीनें, जेसीबी और टीपर कुछ ही घंटों में गायब हो जाते हैं। अवैध खुदाई अस्थायी रूप से बंद कर दी जाती है ताकि जांच के दौरान सब कुछ मानक के अनुरूप दिख सके। यह खेल वर्षों से चलता आ रहा है और हर सरकार के दौर में खननकर्ताओं ने सिस्टम से नज़दीकी बनाकर नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं।
ओबरा क्षेत्र की दो खदानें खूब चर्चा में चल रही है उसी की शिकायत पर जांच टीम आई जांच करने। ओबरा तहसील के बिल्ली चढ़ाई क्षेत्र का बताया जा रहा है, जहां स्थित मेसर्स अजंता माइंस एंड मिनरल्स (ई-टेंडर) और राधे-राधे इंटरप्राइजेज के खनन पट्टों पर जांच टीम पहुंचने से पहले ही सारी मशीनें और वाहन हटा लिए गए। बताया जा रहा है कि दोनों खदानों के संचालक प्रभावशाली लोगों से करीबी संबंध रखते हैं, जिसके चलते स्थानीय स्तर पर इन पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाती। मानक से अधिक खनन का आरोप सूत्र बताते हैं कि मेसर्स अजंता माइंस एंड मिनरल्स की आराजी संख्या 4949 ख, रकबा 5.880 हेक्टेयर, तथा राधे-राधे इंटरप्राइजेज की आराजी संख्या 5006, रकबा 3.400 हेक्टेयर है। दोनों स्थलों पर मानक से कहीं अधिक खनन किए जाने के प्रमाण स्थानीय स्तर पर पूर्व में भी उठाए जा चुके हैं। इन्हीं शिकायतों के आधार पर टीम जांच के लिए रवाना हुई थी, लेकिन टीम पहुंचने से पहले ही खदानों से मशीनें और वाहन हटाए जा चुके थे।अब बड़ा सवाल यह है कि जांच से पूर्व ही खननकर्ताओं को सूचना आखिर कैसे मिल जाती है। विभाग के भीतर कौन है वह खबरीलाल जो सरकारी कार्रवाई की खबर बाहर पहुंचा देता है? यदि ऐसा ही चलता रहा तो पारदर्शिता और जीरो टॉलरेंस सिर्फ नारे बनकर रह जाएंगे। देखना यह होगा कि इस बार जांच टीम वास्तव में क्या कार्रवाई करती है, या फिर यह जांच भी कागज़ी खानापूर्ति बनकर रह जाएगी।

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