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8 साल बाद इराक में फिर से खुली ये मस्जिद, आतंकियों ने धमाके में उड़ा दी थी


इराक के मोसुल शहर में सोमवार को उस समय एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला जब प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने मोसुल में 850 साल पुरानी अल-नूरी मस्जिद का पुनर्निर्माण के बाद उद्घाटन किया। इसके साथ ही दुनियाभर में मशहूर इसकी झुकी हुई मीनार भी जनता के लिए खोल दी गई। बता दें कि यह मस्जिद 2017 में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों द्वारा बम विस्फोट से तबाह कर दी गई थी। 8 साल बाद, यूनेस्को की मदद से पारंपरिक तरीकों और बचे हुए मलबे से सामग्री का इस्तेमाल कर इसे दोबारा बनाया गया है। इस पुनर्निर्माण के लिए 115 मिलियन डॉलर की रकम जुटाई गई थी, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात और यूरोपीय संघ ने बड़ा योगदान दिया था।

अल-नूरी मस्जिद और इसकी झुकी हुई मीनार मोसुल के पुराने शहर का दिल माना जाता है। यह मस्जिद 12वीं शताब्दी के अंत में बनवाई गई थी, और इसका नाम नूर अल-दिन महमूद जांगी के नाम पर रखा गया। जांगी मोसुल तथा अलेपो के शासक थे, जिन्होंने अपनी मौत से 2 साल पहले इस मस्जिद को बनवाने का आदेश दिया था। इस मस्जिद की मीनार, जिसे स्थानीय लोग प्यार से 'हब्बा' (कुबड़ा) कहते हैं, अपनी अनोखी बनावट के लिए मशहूर थी। 2014 में इस्लामिक स्टेट के सरगना अबू बकर अल-बगदादी ने यहीं से अपने तथाकथित 'खिलाफत' का ऐलान किया था। यह मस्जिद न केवल धार्मिक, बल्कि इराक की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।

प्रधानमंत्री अल-सुदानी ने उद्घाटन के मौके पर कहा, 'इस मस्जिद का पुनर्निर्माण इराकियों की बहादुरी और उनकी जमीन की हिफाजत करने की हिम्मत का सबूत है। यह एक मील का पत्थर है, जो दुश्मनों को हमेशा हमारी ताकत और सच्चाई की याद दिलाएगा। हम संस्कृति और इराकी पुरातन वस्तुओं को बढ़ावा देने के लिए तत्पर हैं। यह हमारे मुल्क का दुनिया के लिए दरवाजा है, जो नौजवानों के लिए नई राहें खोलेगा।' यह प्रोजेक्ट पड़ोसी देश सीरिया जैसे युद्धग्रस्त क्षेत्रों में सांस्कृतिक स्थलों की बहाली के लिए एक मिसाल बन सकता है, जहां 14 साल के गृहयुद्ध के बाद अब पुनर्निर्माण की शुरुआत हो रही है।

इस्लामिक स्टेट ने अपने चरम समय में इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा किया था और यजीदी समुदाय की महिलाओं के साथ रेप, किडनैपिंग और टॉर्चर जैसे जघन्य अपराध किए थे। उन्होंने ईसाई समुदाय को भी निशाना बनाया था, जिसमें उनकी संपत्ति छीनना, जबरन धर्म परिवर्तन और सांस्कृतिक स्थलों को नष्ट करना शामिल था। 2003 में मोसुल में 50,000 ईसाई थे, लेकिन अब केवल 20 परिवार ही बचे हैं। इस प्रोजेक्ट में मस्जिद के साथ-साथ युद्ध में क्षतिग्रस्त चर्चों को भी बहाल किया गया है, ताकि शहर की सिकुड़ती ईसाई आबादी की धरोहर को बचाया जा सके।

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