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उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में बड़ा उलटफेर! इन तीन पार्टियों ने इलेक्शन प्रक्रिया में भाग लेने से किया इनकार


भारतीय राजनीति में उपराष्ट्रपति चुनाव हमेशा से दिलचस्प रहा है. इस बार का चुनाव और भी खास हो गया है, क्योंकि तीन अहम दल – बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल (वारिस पंजाब दे) के सांसद सरबजीत सिंह खालसा और अमृतपाल सिंह ने उपराष्ट्रपति चुनाव के बहिष्कार करने का एलान किया है. इन दलों के पास कुल 14 सांसद हैं. इनकी अनुपस्थिति से कुल मतदाताओं की संख्या 781 से घटकर 767 रह गई है. यानी जीत के लिए अब केवल 384 वोट चाहिए. यह कदम सीधे तौर पर दोनों उम्मीदवारों एनडीए के सीपी राधाकृष्णन और इंडिया ब्लॉक के बी. सुदर्शन रेड्डी के वोटों के गणित को प्रभावित करेगा.

एनडीए के पास पहले से ही मजबूत संख्या है. लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर एनडीए के पास 425 सांसद हैं. इसके अलावा वाईएसआरसीपी ने भी एनडीए का समर्थन किया, जिससे यह संख्या 436 तक पहुंच गई. इसका मतलब साफ है कि राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है. विपक्ष को जो नुकसान हुआ है, वह उनके जीत के मार्जिन को और भी बड़ा बना देगा.

विपक्ष ने इस बार एक अलग दांव खेला. कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया ताकि एक गैर-राजनीतिक और निष्पक्ष चेहरा सामने आ सके. इस कदम से विपक्ष ने ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े नेताओं का समर्थन जरूर हासिल किया, लेकिन बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल को साथ नहीं ला पाने की कमजोरी साफ दिख रही है. खासकर इसलिए कि ये तीनों दल पहले भी कई बार केंद्र सरकार के करीबी रहे हैं और 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन दे चुके हैं.

उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 781 लोग भाग लेते हैं. हालांकि, अब बीजेडी, बीआरएस औऱ अकाली दल ने दूरी बनाने का फैसला लिया है, जिससे 14 सदस्यों की संख्या कम हो गई है. इस तरह से वोटिंग में भाग लेने वालों की संख्या 767 हो गई है. इस तरह से किसी एक उम्मीदवार को जीत के लिए कम से कम 384 वोटों दरकार पड़ेगी, लेकिन इसमें अकेले NDA के पास 436 वोट है, क्योंकि इतने ही उनके सदस्यों की संख्या है. दूसरी तरह इंडिया ब्लॉक और अन्य सहयोगियों की संख्या महज 324 है. इस आंकड़े से साफ मालूम पड़ता है कि जीत का अंतर 112 वोटो से होने वाले हैं.

हालांकि 7 निर्दलीय सांसद, जेडपीएम और आप की स्वाति मालीवाल ने अभी अपना रुख साफ नहीं किया है. उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी व्हिप लागू नहीं होता, इसलिए क्रॉस वोटिंग की संभावना भी रहती है. फिर भी, एनडीए के पास इतना मजबूत समर्थन है कि यह बदलाव नतीजे पर असर डालने की स्थिति में नहीं हैं.

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