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पीलीभीतः पीडीए पंचायतों से गूंज रही सामाजिक न्याय की आवाज! दिव्या गंगवार ने भाजपा सरकार की नीतियों पर बोला सीधा हमला


बीसलपुर। समाजवादी पार्टी का पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) अभियान बीसलपुर विधानसभा क्षेत्र में नई चेतना जगा रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर चल रहे इस कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्व प्रत्याशी एवं महिला सभा की राष्ट्रीय सचिव दिव्या पी. गंगवार गांव-गांव पहुंचकर पंचायतों और चैपालों का आयोजन कर रही हैं। नांद, धनगवां, मवैया, घुँघौरा, हर्रई और गुरगवां में आयोजित पंचायतों ने न सिर्फ ग्रामीणों की बड़ी भीड़ जुटाई, बल्कि भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ स्वर भी बुलंद किए।दिव्या गंगवार ने अपने संबोधन में कहा कि आज देश सामाजिक और आर्थिक असमानता की चपेट में है। किसानों की मेहनत का फल महंगाई निगल रही है, नौजवान बेरोजगारी से परेशान हैं और गांव-गांव में बंदरों का आतंक लोगों का जीना दूभर कर रहा है। लेकिन भाजपा सरकार जनता की पीड़ा सुनने के बजाय आंखें मूंदे बैठी है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा केवल चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे करती है और बाद में जनता से मुंह मोड़ लेती है। उन्होंने बाबा साहब अंबेडकर और डॉ. लोहिया के विचारों को जमीन पर उतारने की प्रतिबद्धता दोहराई और कहा कि समाजवादी पार्टी ही सामाजिक न्याय की सच्ची वाहक है।पूर्व जिला पंचायत सदस्य मलखान सिंह वर्मा ने भी अपने वक्तव्य में भाजपा सरकार को महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों ने आम आदमी की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है।इन पंचायतों में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण, महिलाएं और युवा शामिल हुए और समाजवादी पार्टी की नीतियों के प्रति समर्थन जताया। कार्यक्रम में चैधरी प्रदीप सिंह पटेल, रूप लाल महातिया, मनोज गंगवार, राम लखन मौर्य, रविंद्र कश्यप, शिव सरन मौर्य, अमर सिंह राजपूत सहित बड़ी संख्या में स्थानीय नेता व कार्यकर्ता मौजूद रहे।यह अभियान केवल राजनीतिक गतिविधि भर नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय और संविधानिक अधिकारों के लिए एक जनांदोलन का रूप लेता दिख रहा है। ग्रामीण इलाकों में उठ रही यह आवाज बताती है कि जनता बदलाव चाहती है और अपने अधिकारों के लिए संगठित हो रही है।

स्पष्ट है कि पीडीए पंचायतों ने सत्ता की नींद उड़ाने का काम किया है। सवाल यही है कि क्या यह अभियान गांव-गांव की चैपालों से निकलकर बड़े जनआंदोलन का रूप ले पाएगा?।

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