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स्कूल के बच्चों में क्यों बढ़ रहे हार्ट अटैक के मामले, डॉक्टर ने बताया क्या है इसकी वजह


पहले हार्ट अटैक को ज्यादातर मामले उम्र बढ़ने के बाद आते थे। 50-60 साल की उम्र में लोगों को दिल की बीमारियां होती थीं, लेकिन पिछले 10 सालों में युवाओं में हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कोविड के बाद तो हार्ट अटैक के मामलों में और भी उछाल देखने को मिला है। लेकिन इस सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात है कि अब बच्चों में हार्ट अटैक के मामले देखे जा रहे हैं। हाल ही में यूपी में एक 7 साल के बच्चे की हार्ट अटैक से मौत हो गई। ये बच्चा 1 जुलाई को स्कूल खुलने के बाद पहले दिन स्कूल जा रहा था, तभी दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे में ये चिंता का विषय बन गया है कि इतनी कम उम्र के बच्चों में हार्ट अटैक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं। डॉक्टर से जानते हैं बच्चों में हार्ट अटैक के क्या हैं कारण और ऐसे बचें?

vidhankesari.com ने इस बारे में डॉक्टर गजेंद्र कुमार गोयल, प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर (कार्डियोलॉजी, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल फरीदाबाद) से बात की तो उन्होंने बताया पिछले कुछ सालों में बच्चों की लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव आया है। अब खेलकूद की बजाय बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और टीवी से चिपके रहते हैं। घंटों स्क्रीन टाइम और फिजिकल एक्टिविटी की कमी से मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसे जोखिम बढ़ जाते हैं, जो हार्ट अटैक की जड़ में होते हैं।

डॉक्टर की मानें तो बाहर का फ्राइड खाना, कोल्ड ड्रिंक्स और शुगर से भरपूर चीजें बच्चों की डाइट का हिस्सा बन चुकी हैं। ये चीजें न सिर्फ वजन बढ़ाती हैं बल्कि इससे आर्टरी में फैट जमा होने लगता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है। वहीं अगर किसी के परिवार में पहले से हार्ट अटैक की हिस्ट्री रही है, तो बच्चों में भी उसके चांसेस बढ़ जाते हैं। जन्मजात हार्ट डिफेक्ट या कोलेस्ट्रॉल से जुड़ी जेनेटिक समस्याएं भी इसका कारण बन सकती हैं।

आज के समय में पढ़ाई का दबाव, प्रतियोगिता और सोशल मीडिया की वजह से बच्चे भी तनाव का सामना कर रहे हैं। यह मानसिक तनाव हॉर्मोनल बदलाव लाकर हार्ट पर नकारात्मक असर डाल सकता है।

बच्चों की दिनचर्या में संतुलित आहार, पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम को शामिल करना चाहिए। बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित करें और समय-समय पर हेल्थ चेकअप जरूर करवाएं। अगर बच्चे में थकान, सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ या ब्लैकआउट जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करें। बचपन में दिल से जुड़ी समस्याएं रेयर जरूर हैं, लेकिन बदलती लाइफस्टाइल इन्हें बढ़ावा दे रही है। इसलिए सतर्कता बरतें और समय-समय पर बच्चों की सेहत की भी जांच करवाएं। इससे हार्ट अटैक ही नहीं दूसरी बीमारियों के खतरे को भी कम किया जा सकता है।

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