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कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा फिर हुई तेज


कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के 5 साल का कार्यकाल पूरा करने को लेकर सियासी हलकों में चर्चा जोरों पर है। इस बीच, सिद्धारमैया और उनके डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार एक बार फिर दिल्ली पहुंच गए हैं। सवाल यह है कि क्या सिद्धारमैया अपना कार्यकाल पूरा करेंगे या डीके शिवकुमार को मौका मिलेगा? यह सवाल कर्नाटक की सियासत में गूंज रहा है। सिद्धारमैया अपने दूसरे कार्यकाल में कर्नाटक के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता देवराज उर्स का रिकॉर्ड तोड़ने की कगार पर हैं। उर्स ने 7.6 साल (2,792 दिन) तक मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की थी। सिद्धारमैया 6 जनवरी 2026 तक इस रिकॉर्ड को तोड़ सकते हैं।

कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस में पावर शेयरिंग का एक कथित फॉर्मूला है, जिसके तहत डीके शिवकुमार को ढाई साल बाद मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। हालांकि, कांग्रेस ने इस फॉर्मूले की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। सिद्धारमैया और शिवकुमार गुरुवार को दिल्ली पहुंचे। जून से लेकर अब तक यह उनकी तीसरी दिल्ली यात्रा है। इस बार वे AICC के बैकवर्ड क्लास विंग के 'भागीदारी न्याय सम्मेलन' में हिस्सा लेंगे। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस दौरान दोनों नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व, खासकर राहुल गांधी से मुलाकात कर सकते हैं। पिछले दिल्ली दौरे में सिद्धारमैया को राहुल गांधी से मिलने का समय नहीं मिला था।

कर्नाटक में सियासी माहौल तनावपूर्ण है। सिद्धारमैया के समर्थक चाहते हैं कि वह 5 साल का कार्यकाल पूरा करें। दूसरी ओर, शिवकुमार के समर्थक उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी की मांग कर रहे हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद दोनों नेताओं के बीच सीएम पद के लिए कड़ा मुकाबला हुआ था। तब कांग्रेस आलाकमान ने शिवकुमार को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मामला सुलझाया था। उस समय कुछ खबरें आई थीं कि ढाई-ढाई साल के लिए सत्ता साझेदारी का फॉर्मूला तय हुआ है, लेकिन पार्टी ने इसकी पुष्टि नहीं की।

सिद्धारमैया ने हाल ही में दिल्ली में कहा था, 'मैं कर्नाटक का मुख्यमंत्री हूं। कोई वैकेंसी नहीं है।' उन्होंने यह भी कहा कि आलाकमान का फैसला अंतिम होगा। वहीं, शिवकुमार ने सावधानी से जवाब देते हुए कहा, 'मुख्यमंत्री जो कहते हैं, वही अंतिम है। मैं पार्टी और नेतृत्व के प्रति वफादार हूं।' पार्टी आलाकमान ने दोनों खेमों को चुप रहने का निर्देश दिया है, जिसके बाद कोई भी विधायक खुलकर बयान नहीं दे रहा। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सिद्धारमैया को हटाना आसान नहीं होगा। वह कर्नाटक में कांग्रेस के इकलौते OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) मुख्यमंत्री हैं और अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, एवं दलित समुदायों में उनकी मजबूत पकड़ है।

बिहार में होने वाले चुनावों में OBC वोट अहम हैं, इसलिए पार्टी सिद्धारमैया को हटाने का जोखिम शायद ही ले। सिद्धारमैया को हाल ही में AICC के OBC सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया गया है, जिसकी पहली बैठक उनकी अध्यक्षता में हुई। दूसरी तरफ शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय के बड़े नेता हैं और पुराने मैसूर क्षेत्र में कांग्रेस की जीत में उनकी भूमिका अहम रही। वह खुलकर कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन उनकी रणनीति और मठ-मंदिरों के दौरे बताते हैं कि वह चुपचाप अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'शिवकुमार धैर्य के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। वह पार्टी और गांधी परिवार के प्रति वफादारी का फायदा उठाना चाहते हैं।' कर्नाटक में कांग्रेस सरकार नवंबर में ढाई साल पूरे कर लेगी। अगर सत्ता साझेदारी का फॉर्मूला सही है, तो सिद्धारमैया जनवरी 2026 तक रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं और फिर शिवकुमार को मौका मिल सकता है। लेकिन, फिलहाल पार्टी आलाकमान इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। फिलहाल यह देखने के लिए इंतजार ही करना होगा कि कर्नाटक में कांग्रेस की सियासत कैसी करवट लेती है।

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