- जनसेवा दल ने जगाई वंचितों में सत्ता की उम्मीद/भूख
यूं तो विनेश ठाकुर वह नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नहीं। सरकार से बेसुध रही उन वंचित जातियों को सत्ता में हिस्सेदारी दिलाने का बीड़ा उठाने के साथ संविधान को ग्रंथ व लोकसभा, विधानसभा को मंदिर एवं अपनी मां को भगवान मानने वाले विनेश ठाकुर से विनेश भैया बने जनसेवा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के संघर्ष की हम कुछ बातें बताना चाहते हैं। 10 नवंबर 1966 को जनपद बिजनौर की तहसील नजीबाबाद के छोटे से अति पिछड़े गांव भरेकी जहाँ सदा जाट पंडित बाहुल्य जातियों का दबदबा रहा। यहीं के गरीब चंद्रपाल ठाकुर के घर जन्मे विनेश भैया का पूरा जीवन संघर्ष और परिश्रम की जिंदा मिसाल रहा है। सभी को पता है कि जनसेवा दल का गठन विनेश भैया द्वारा क्यों किया गया। आजादी के पहले से आज तक किस तरह सैन सविता नंद सहित हर 5 साल में सरकार बनाने में अहम योगदान देने वाली सत्ता से वंचित 40 फीसद से अधिक अति पिछड़ी जातियों को एक षड्यंत्र के तहत शैक्षिक आर्थिक और सामाजिक सम्मान से दूर रखा गया। महापुरुष तो बहुत हुए लेकिन समाज की पीड़ा को समझने का काम किसी ने नहीं किया। 2027 तक अति पिछड़े समाज को सत्ता सरकार में पर्याप्त हिस्सेदारी दिलाने के साथ साथ समाज के बड़े-बड़े ठेकेदारों से चुनौतियां कबूल कर इन्हीं विनेश भैया ने यह कदम उठाया और जनसेवा दल का गठन कर डाला। अब सवाल उठता है कि पत्रकारिता क्षेत्र में नाम कमाने के साथ-साथ आज राजनीति मैं कदम क्यों रखना पड़ा। विनेश भैया ने जो भी आज तक हासिल किया है अपने संघर्ष और बड़ी सोच के कारण किया है। गरीब पिता की मौत के बाद और उससे पहले पूरे परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी के साथ-साथ अपने 6 भाई बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाकर प्रण लिया था कि भाइयों को जिल्लत की जिंदगी से दूर रख सम्मान की जिंदगी जीना सिखाते हुए कलम पकड़वाऊंगा। विनेश भैया के संघर्ष का ही नतीजा है आज तीन भाई पत्रकारिता क्षेत्र में है एक भाई बड़ा ठेकेदार है। बात राजनीति और पत्रकारिता क्षेत्र में आने की करें तो सन 1995 में बसपा ज्वाइन की थी और मंडल कोऑर्डिनेटर तक का सफर तय किया। लेकिन अपनों की पीड़ा को दूर करना यहां दूर की कौड़ी लगा क्योंकि हमेशा से चाह यही थी कि किराएदार बनकर नहीं अपना घर बनाकर समाज को आर्थिक शैक्षिक और सामाजिक सम्मान दिलाने का काम करूंगा। सबसे पहले बसपा सुप्रीमों बहन मायावती जी द्वारा जिले का मीडिया प्रभारी बनाया गया तो खबर लेकर अखबारों के दफ्तर में जाना पड़ता था की भैया हमारी खबर छाप देना। लेकिन एक नाई के बेटे द्वारा बसपा की खबर लेकर आना बड़े अखबारों के दफ्तर में कलम पकड़े बैठे अगड़ी जातियों के तुच्छ सोच रखने वाले खबरचियों को चुभता था। एक पंडित पत्रकार ने तो यह कहकर विज्ञप्ति फेंक कर मार दी थी रोज-रोज तुम्हारा यही काम रह गया है। उस दिन विनेश ठाकुर ने यह प्रण लिया था कि तेरे जैसे हजारों पत्रकार बनाऊंगा और तूझ जैसे पत्रकार मेरे सामने काम के लिए गिड़गिड़ाएंगे। उसी दिन संविधान रचयिता बाबा साहब बीआर अंबेडकर के नाम से अंबेडकर ज्योति नामक समाचार पत्र का रजिस्ट्रेशन कराकर अखबार की दुनिया में कदम रखा। कुछ दिन अंबेडकर ज्योति में अपनी कलम का जादू दिखाया लेकिन उस समय लोगों को लगा कि साप्ताहिक अखबार चलाकर विनेश ठाकुर क्या बिगाड़ लेगा। उन्हें नहीं पता था कि विनेश ठाकुर उस क्रांति का नाम है जो एक बार ठान लेता है करके छोड़ता है। 4 साल अंबेडकर ज्योति चलाने के बाद लखनऊ के एक बड़े अखबार राष्ट्रीय स्वरूप मैं काम किया। लेकिन यहां भी यह सोचकर अखबार छोड़ दिया कि विनेश ठाकुर तुझे तो अपना घर बनाना है। अब किराए के मकान में नहीं रहना। यही सोच कर विधान केसरी का रजिस्ट्रेशन कराकर दैनिक अखबार से संबंधित बहुत कम समय में सारी प्रक्रिया पूरी कर डाली। आज विधान केसरी के कई एडिशन हैं। और जिस पत्रकार ने खबर छापने से मना किया था उसके जैसे 1000 से ज्यादा पत्रकार विधान केसरी में खबर लिखने का काम कर रहे हैं। लेकिन राजनीती के बिना सामाजिक पीड़ा को दूर करना कठिन ही नहीं नामुमकिन लगा। विनेश भैया का सदा सत्ताधारी सहित तमाम पार्टियों में दखल रहा। विपक्षी दलों में भी खासी साठ गांठ होने के बावजूद उन्हें लगा कि मेरी जाति के 3प्रतिशत सहित 45 फीसदी अति पिछड़ी जातियों के लोग आज भी सत्ता सरकार से कोसो दूर हैं। इन पार्टियों ने हमारा वोट तो लिया लेकिन किसी ने एमपीध्एमएलए तो दूर जिला व नगर पंचायत अध्यक्ष भी छोड़िये प्रधान तक बनाने का काम नहीं किया। यही सोचकर विनेश भैया ने जन सेवा दल का गठन किया। साथियों इसी दौरान संघर्षशील इस क्रांतिकारी को किसी की नजर लग गई और लीवर डैमेज हो गया। विरोधियों को लगा कि अब विनेश का काम तमाम हो जाएगा लेकिन यहां यह भी सनद रहे कि
फानूस बनके जिसकी हिफाजत हवा करे, वह शमा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करें
पांच भाई और दो बेटे और बेटी का लिवर मैच नहीं हुआ तो भाई संजीव ने अपने बेटे जतिन का कलेजा निकाल कर रख दिया कि कुछ हो जाए हम सभी भाई भतीजे मिलकर भैया का बाल भी बांका नहीं होने देंगे।
लिवर ट्रांसप्लांट जैसा बड़ा ऑपरेशन होने के बाद भैया की हिम्मत ने साथ नहीं छोड़ा। उस समय जो जनसेवा दल केवल रेंग रहा था आज तेजी से दौड़ लगा रहा है। अब तक एटा चित्रकूट एवं लोनी में तीन बड़ी रैली हेलीकॉप्टर द्वारा की जा चुकी है व लगातार हर जिले में और विधानसभा में मीटिंगों का दौर जारी है।सुबह शाम सिर्फ एक ही जिद है की किस तरह सैन सहित अति पिछड़ी जातियों को सत्ता में हिस्सेदारी मिले। जगह-जगह उत्पीड़न का शिकार हो रहे अपने लोग सीना तानकर कह सके की हम भी सरकार का हिस्सा हैं। विनेश भैया ने हमारा कद इतना ऊंचा कर दिया है कि अब हमारा उत्पीड़न करने की किसी के बस की बात नहीं। यहां यह कहने में कतई संकोच नहीं है। अगर 2027 तक विनेश भईया ने वंचित समाज को सरकार में हिस्सेदारी का प्रण लिया है तो उनकी गारंटी को भगवान भी नहीं काट सकता। कवि दुष्यंत कुमार ने कहा था कि
कौन कहता है आसमान में सुराग नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
साथियों एकजुट होकर हमें विनेश भैया के हाथों को मजबूत करना है और प्रण लेकर जाना है कि हम उनके पावर प्रोजेक्ट सत्ता में हिस्सेदारी विजन को कामयाब बना कर रहेंगे। बाबा साहब ने नारा दिया था शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो। मानसिक गुलामी की जंजीरो को तोड़कर आगे बढ़ जाओ कोई माई का लाल हमें सत्ता में हिस्सेदारी पाने से रोक नहीं पाएगा।
संविधान मेरा ग्रंथ लोकसभा विधानसभा मेरा मंदिर माँ मेरा भगवान
आज स्वार्थ में डूबे टूटते बिखरते परिवार तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन परिवार को एक माला में पिरो कर रखना किसी सपने के बराबर नहीं है। विनेश भैया के परिवार की यही जीत है समस्या कितनी भी बड़ी हो उसका आसानी से समाधान हो जाता है। यहीं कारण है कि करोड़ों में शुभचिंतक होने के बाद कुछ विरोधी भी सामने आ जाते हैं जो प्रगति में रोड़ा नहीं आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। खास बात यह है कि विनेश भैया जहां अपनी मां को भगवान का दर्जा देते हैं वही संविधान को ग्रंथ व लोकसभा विधानसभा को मंदिर मानना ही उनकी आस्था है। विनेश भईया ने 2005 में विधान केसरी की शुरुआत बिजनौर के आवास विकास कॉलोनी स्तिथ अपने आवास से 2013 में मुरादाबाद व 2016 में लखनऊ से की। तीनों ही जगह खास बात यह रही कि यहां अपच तो खूब आए अधिकारी भी सैकड़ो की संख्या में रहे लेकिन यूनिट का उद्घाटन अपनी माताजी के द्वारा कराया। उनका मानना है कि मां-बाप के अलावा दूसरा भगवान धरती पर नहीं है वही न्याय दिलाने वाला लोकसभा विधानसभा के सिवा दूसरा मंदिर नहीं है तथा जो बराबरी का दर्जा दे संविधान से बड़ा ग्रंथ कोई नहीं है।
मंजेश ठाकुर -उप संपादक विधान केसरी