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मानसिक तनाव से जूझ रहे बच्चे हो सकते हैं डिप्रेशन के शिकार


बच्चे हमारे जीवन का सबसे कोमल और संवेदनशील हिस्सा होते हैं। लेकिन अक्सर वे अपने भावनात्मक और मानसिक अनुभवों को शब्दों में नहीं कह पाते। जब उन्हें किसी बात से दुख, डर या असहजता महसूस होती है, तो वे यह साफ तौर पर नहीं कह पाते। इसका कारण यह है कि बच्चों के पास उस स्तर की भाषाई समझ और शब्दावली नहीं होती जिससे वे अपने मानसिक तनाव को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकें। मानसिक तनाव की वजह से कई बार बच्चे डिप्रेशन की चपेट में आने लगते हैं। ऐसे में कॉन्टिनुआ किड्स की निदेशक, सह-संस्थापक और बाल रोग विशेषज्ञ, डॉ. पूजा कपूर बता रही हैं कि बच्चों की मेंटल हेल्थ कैसी है इसे जानने के लिए इन टिप्स को करें फॉलो।
मानसिक रूप से परेशान बच्चों में दिखते हैं ये लक्षण:

गुस्सा-चुप्पी और चिड़चिड़ापन हावी: जब बच्चों को मानसिक या भावनात्मक परेशानी होती है, तो वे कई बार इसे चिड़चिड़े व्यवहार, गुस्से, चुप्पी या अपने स्वाभाविक व्यवहार में बदलाव के ज़रिए दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो रोज़ एक ही समय पर भूख लगने पर खाना खा लेता है, आज अचानक बिना किसी स्पष्ट कारण के खाने से मना कर देता है। या वह खेल जिसे वह बहुत पसंद करता है, उसमें रुचि नहीं दिखाता। यह व्यवहार सिर्फ ‘नखरे’ नहीं हो सकते - यह मानसिक तनाव की अभिव्यक्ति भी हो सकती है।


बच्चे के स्वभाव में बदलाव : इसी तरह, जो बच्चा पहले बहुत मिलनसार था, हर किसी से बात करता था, उत्साहित रहता था, अगर अचानक वह शांत हो जाए, किसी से बात न करे, तो यह बदलाव चिंताजनक हो सकता है। वहीं, अगर कोई बच्चा जो पहले शांत था, अचानक बहुत बोलने लगे, तो यह भी एक संकेत हो सकता है कि वह अंदर से किसी दबाव में है।
कैसे करें बच्चों की मदद?

बच्चों के दोस्तों पर नज़र रखें: इस स्थिति में माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सबसे पहले, बच्चों के दोस्तों पर नज़र रखें - न टोकाटाकी करें, न हर बात में हस्तक्षेप, बल्कि बस इतना जानें कि वे किन लोगों के साथ समय बिता रहे हैं। उनके दोस्तों को समय-समय पर अपने घर बुलाएं। जब दोस्त घर आएंगे, तो आप यह भी जान पाएंगे कि वे किन बातों में रुचि रखते हैं और आपके बच्चे पर उनका क्या प्रभाव पड़ रहा है।


खाली समय में बच्चों से करें बात:
घर में डिनर का समय बहुत उपयोगी हो सकता है। यह वह समय है जब माता-पिता खुद अपने दिन के अनुभव साझा करें - जैसे, "आज ऑफिस में मेरे साथ ये हुआ, बच्चों को यह सीख मिलती है कि अपनी बातें कैसे साझा की जाती हैं, भावनाओं को कैसे व्यक्त किया जाता है।


बच्चों की बात सुने: जब बच्चा आपको कुछ बताने आए, तो उसकी बात सुनें, न कि तुरंत प्रतिक्रिया दें। अगर उसने कोई गलती की है तो उस पर चिल्लाने के बजाय शांत और समझदारी भरे शब्दों का इस्तेमाल करें। शब्दों के साथ-साथ आवाज़ की टोन भी सहयोगी और समझदार होनी चाहिए। जब आप बच्चे को खुलकर अभिव्यक्ति का अवसर देंगे, तो वह न केवल भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहेगा, बल्कि जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी मानसिक रूप से मज़बूत बन पाएगा।

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