बच्चों की जान बचाने के लिए भीषण आग से खेल गए भारतीय प्रवासी, सरकार ने किया सम्मानित
April 12, 2025
सिंगापुर की एक सरकारी इमारत में लगी भीषण आग में फंसे बच्चों की जान बचाने के लिए प्रवासी भारतीयों ने अपनी ही जान को जोखिम में डाल दिया और आग से खेल गए। भारतीयों ने इस बिल्डिंग में फायर ब्रिग्रेड के पहुंचने के पहले कम से कम 10 बच्चों को जीवित बाहर निकाल लिया। जीवित बचाए गए बच्चों में आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण का आठ वर्षीय पुत्र मार्क शंकर पवनोविच भी शामिल था। यह घटना अभी चार दिनों पहले की है। अब सिंगापुर सरकार ने इतना साहसिक कार्य कर बच्चों की जान बचाने वाले भारतीय प्रवासियों को सम्मानित किया है।
बता दें कि आग लगने की घटना गत 8 अप्रैल की है। सरकार ने एक इमारत में लगी आग से बच्चों और वयस्कों को बचाने में वीरतापूर्ण कार्य के लिए चार भारतीय प्रवासी श्रमिकों को सम्मानित किया है। इस इमारत में 16 नाबालिग और छह वयस्क फंसे गए थे। आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण का आठ वर्षीय पुत्र मार्क शंकर पवनोविच आठ अप्रैल को लगी आग की घटना से बचाए गए लोगों में शामिल था। इमारत से निकाली गई 10 वर्षीय आस्ट्रेलियाई लड़की की बाद में अस्पताल में मौत हो गई।
मानव शक्ति मंत्रालय के ‘एश्योरेंस, केयर एंड एंगेजमेंट’ (एसीई) समूह ने आग में फंसे लोगों को बचाने के लिए इंद्रजीत सिंह, सुब्रमण्यम सरनराज, नागराजन अनबरसन और शिवसामी विजयराज को ‘फ्रेंड्स ऑफ एसीई’ सिक्के प्रदान किए। साप्ताहिक पत्रिका 'तबला' ने शुक्रवार को मंत्रालय के हवाले से कहा, ‘‘उनकी सूझबझ और बहादुरी ने सब कुछ बदल दिया। ज़रूरत के समय हमें समुदाय की ताकत याद दिलाने के लिए धन्यवाद।” बच्चों की चीखें सुनकर और तीसरी मंजिल पर स्थित इमारत की खिड़की से घना धुआं निकलता देखकर, प्रवासी मजदूरों ने बिना समय गंवाए घटनास्थल के ठीक सामने स्थित अपने कार्यस्थल से एक ‘स्केफोल्ड’ उठाया।
भारतीय प्रवासियों ने इमारत में बच्चों तक पहुंचने के लिए ‘स्केफोल्ड’ और सीढ़ी का उपयोग किया। उनके साथ अन्य प्रवासी श्रमिक भी आ गए जो इमारत के पास रिवर वैली रोड पर काम कर रहे थे। सिंगापुर नागरिक सुरक्षा बल (एससीडीएफ) के पहुंचने से पहले 10 मिनट में प्रवासी श्रमिकों ने 10 बच्चों को इमारत से निकाल लिया था। सुब्रमण्यम सरनराज (34) ने कहा कि वह उन बच्चों का दृश्य कभी नहीं भूल पाएंगे जिनके चेहरों पर कालिख के निशान थे, वे खांस रहे थे और सांस लेने में परेशानी महसूस कर रहे थे तथा मदद के लिए चिल्ला रहे थे। तमिलनाडु के रहने वाले सरनराज ने कहा, " धुएं के बीच से देखा कि एक पुरुष शिक्षक और बच्चे खिड़की से बाहर देख रहे थे और मदद के लिए चिल्ला रहे थे। धुआं बढ़ता जा रहा था और हमारे पास ज़्यादा समय नहीं था।" उन्होंने कहा, "हमारे भी बच्चे हैं। अगर ये हमारे बच्चे होते, तो क्या हम चुपचाप खड़े होकर कुछ नहीं करते?
यही बात उनके सहकर्मी नागराजन अनबरसन (37) ने भी कही। उन्होंने कहा, "जब हमने बच्चों को संकट में देखा, तो हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सके।" सरनराज ने कहा, "हमारे पास धुएं से बचने के लिए कोई सुरक्षात्मक उपकरण नहीं था। हम इमारत से भी परिचित नहीं थे और हमें नहीं पता था कि सीढ़ियां कहां हैं। इसलिए हमने खिड़कियों से जाने का फैसला किया।" घटना के 22 हताहतों में से 16 बच्चे थे जिनकी उम्र छह से 10 वर्ष के बीच थी। अन्य छह वयस्क थे जिनकी उम्र 23 से 55 वर्ष के बीच थी। इमारत में अग्नि सुरक्षा नियमों का उल्लंघन पाया गया।