Type Here to Get Search Results !
BREAKING NEWS

अमेठीः महर्षि च्यवन मुनि की तपोस्थली ही वर्तमान में मां कालिका धाम के नाम से हैं प्रसिद्ध: धार्मिक स्थलों में अपना अलग ही महत्व रखता है महर्षि च्यवन मुनि की तपोस्थली


अमेठी। श्री कालिका धाम अमेठी मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर संग्रामपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है। जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश को धार्मिक दिशा देती रहती है।महर्षि चमन मुनि ब्रह्मा जी के पौत्र भृगु जी के पुत्र महान ऋषि ऋचिक के भाई,, अंगिरा जी के भतीजे,, देव गुरु बृहस्पति के चचेरे भाई के रूप में धरा धाम पर प्रगट होकर लोकहित,, ज्ञान विज्ञान से युक्त अनेक दिव्य कार्यों के कारण आपकी चर्चा वेदों पुराणों में वर्णित है। महर्षि भृगु जी का विवाह हिरण्यकश्यपु की पुत्री दिव्या से एवं दानव राज पुलो मन की पुत्री पुलोमा से हुआ था। पुराणाख्यान के अनुसार एक बार भृगु ऋषि तपस्या के लिए बाहर चले गये। उस समय माता पुलोमा जी गर्भवती थी। माताजी के अपूर्व सौंदर्य को देखकर के प्रलोमा दैत्य मोहित हो गया। माता रानी के सतीत्व को भंग करने की पुरजोर कोशिश करने लगा । गर्भ में पल रहे चमन मुनि से रहा नहीं गया। ओंकार की हुंकार भरते हुए 8 माह का बालक गर्भ से बाहर हो गया। मुनि श्रेष्ठ की दृष्टि पडते ही प्रलोमा दैत्य खाक हो गया। गर्भ से चूत होने के कारण आपका नाम महर्षि च्यवन पड़ा। अकल्पनीय तपस्या साधना के धनी लोकोपकारी महामुनी चमन जी का बड़ा विस्तृत इतिहास है। जिन्होंने श्री कालिका धाम को अपनी तपस्थली बनाया । शक्ति उपासना करते हुए श्री कालिका जी को प्रकट किया । इसी भूमि पर अयोध्या नरेश शरयाती जी की सुपुत्री सुकन्या जी से पाणि ग्रहण संस्कार किया। अश्विनी कुमारों के द्वारा युवावस्था एवं नेत्र की ज्योति प्राप्त करके च्यवनस्मृति की रचना की,, अष्ट वर्गी चवनप्राश का निर्माण किया। तंत्र के विलक्षण प्रयोग भास्कर संहिता में वर्णित जीवन दान मंत्र को प्रकट किया। एक बार अयोध्या नरेश महाराज शरयाती आखेट करते हुए चमन मुनि की तपस्स्थली श्री कालिका धाम में विशाल सेना के साथ 4000 रानियों सहित अपनी सुपुत्री सुकन्या को लेकर रात्रि प्रवास किया। यद्यपि शास्त्र वचन,, राज नियम के अनुसार कोई भी राजा किसी भी महर्षि की तपोभूमि वाले वन क्षेत्र में शिकार नहीं कर सकता है। लेकिन अहंकारी राजा नियम का उल्लंघन करते हुए माता रानी के परिक्षेत्र में प्रवेश कर गया। चमन मुनि के शरीर दीमक से ढक गयी थी ,,केवल आंखों के सामने दो छिद्र खुला हुआ था। सुकन्या अपनी सहेलियों के साथ जंगल में भ्रमण करते हुए दीमक के टीले पर पहुंची और बिना विचार किये,, मिट्टी के भीतर प्रकाश को देखकर किसी नुकीले कांटे से दोनों आंखों को फोड़ दिया। जिससे करा के साथ रुधिर की धार बहने लगी। मुनि के कोफ के कारण,, देखते ही देखते पूरी सेना अचेत होने लगी और सब का मल मूत्र अवरुद्ध हो गया। सेना में हाहाकार मच गया। राजा शरयाती समाचार पाकर ऋषि श्रेष्ठ के चरणों में गिर पड़े,, दयालु मुनि ने क्षमा कर दिया। मातारानी सुकन्या का हृदय परिवर्तन हुआ,, पति रूप में चमन मुनि को वरण किया। एक बार देव बैद्य अश्वनी कुमार माता जी के आश्रम में पधारे। माताजी ने भरपूर आतिथ्य किया । जिससे प्रसन्न होकर दिव्य रसायन तैयार किया,, तथा दिव्य सरोवर में स्नान कराकर के चक्षुशी विद्या का आश्रय लेकर नेत्र की ज्योति एवं युवा अवस्था चमन मुनि को प्रदान कर दी। अश्विनी कुमारों ने आग्रह पूर्वक बताया कि मुनि श्रेष्ठ,, मुझे इंद्र यज्ञ में स्थान नहीं दे रहा है। करुणानिधान यज्ञ भाग मुझे नहीं प्राप्त हो रहा है। कृपा करके यज्ञ में हमें उचित स्थान प्रदान करने की कृपा करें। बाद में महाराज शरयाती ने यज्ञ करवाया और उसमें चमन मुनि ने दोनों वैद्यों को सोमरस पान कराया। कुपित होकर देवराज इंद्र ने वज्र का प्रयोग किया,, स्तंभन मंत्र का प्रयोग करके इंद्र के हाथ एवं वज्र के तेज को निष्प्रभावी कर दिया। तथा भयंकर दैत्य उत्पन्न करके देवराज इंद्र को निगल जाने का आदेश दिया ।लेकिन देवराज की प्रार्थना एवं अनेक ऋषियों के आग्रह को मान कर दैत्य को भस्म कर दिया,, तथा देवराज इंद्र को अभय प्रदान करते हुए दोनों अश्वनी कुमारों को यज्ञभाग दिला दिया। कहा जाता है कि महर्षि चमन मुनि का प्रेम जलचरों से बहुत था। एक बार गंगा जी में समाधि लगाए हुए थे कुछ मछुआरे जाल डालकर मछलियों सहित चमन मुनि को फंसा कर बाहर निकाल लिए,, सूचना पाकर राजा नहुष आये,, चमन मुनि से क्षमा मांगा तब महर्षि ने कहा मछुआरों को मेरा और मेरे साथ रहने वाली मछलियों का मूल्य दे दो मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगा। राजा नहुष अपनी संपूर्ण संपत्ति को प्रदान करते हुए कहा कि जो कुछ मेरे पास है वह आपके और आपके मछलियों का मूल्य है। लेकिन चमन मुनि ने कहा दोनों के मूल्य के बराबर आपका राज्य कुछ नहीं है। उसी समय मुनि सिपीआये, और राजा नहुष से बोले,, चमन मुनि और मछलियों के बदले इन्हें एक अलंकृत गाय प्रदान करो। गाय और संत दोनों अनमोल हैं । इनका मोल हो ही नहीं सकता। इसलिए अनमोल के बदले अनमोल प्रदान करो तुम्हारा कल्याण होगा। गाय का दान पाकर महर्षि चमन गदगद हो गये। महर्षि चमन मुनि इसी पवित्र भूमि पर च्यवनप्राश जैसी दिव्य रसायन को तैयार किया। सतयुग के महात्मा अपनी पत्नी सुकन्या जी के साथ दीर्घकाल तक तप किया। माता रानी श्री कालिका जी को प्रसन्न किया। तथा शक्ति उपासना का अक्षय सुख प्राप्त करते हुए माता रानी को यहीं,, अपना सु स्थिर धाम बनाने की प्रार्थना की,, माता रानी देवराज इंद्र द्वारा प्रदत्त अमृत कलश पर अपना आसन लगाकर अमृत कुंड निवासिनी कहलायी। माता रानी श्री कालिका जी ने महर्षि चमन को अनेक दिव्य मंत्रों को प्रदान करते हुए दिव्य वर दिया। कि मेरे दिव्य धाम के नाम के साथ मुनि श्रेष्ठ आपका नाम सदा जुड़ा रहेगा ।आप सर्वदा भक्तों की आस्था के केंद्र बनकर पूजित होते रहेंगे । श्री कालिका धाम भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु है । कई जनपदों के लिए प्रेरणा पुंज भी है। यहां भक्तों का तांता माता रानी के दर्शन के लिए सदा लगा रहता है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Design by - Blogger Templates |