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प्रयागराजः ज्ञानी को ब्रह्म एवं भक्त को भगवान मिलते हैं - डॉ अनिरुद्ध जी


प्रयागराज। शबरी ने अपने आश्रम में भगवान राम को बताया कि अब आप आगे ऋष्य मूक पर्वत पर जाइए वहीं पर सुग्रीव मिलेंगे। सुग्रीव आपकी सहायता कर सकते हैं। वही पंपापुर भी है। प्रभु रामचंद्र जी लक्ष्मण जी के साथ ऋष्य मूक पर्वत की ओर बढ़े। वहां नारद जी से भेंट हुई। राम जी से नारद ने पूछा कि प्रभु आपके अनेक नाम है। सबसे अधिक प्रभावशाली नाम कौन सा है। आप आशीर्वाद दीजिए कि हमेशा मानव देह में निवास करेंगे। तब प्रभु राम ने बताया कि राम सकल नामन ते अधिका। अर्थात मेरा राम नाम मेरे सभी नमो में सबसे अधिक प्रभावी है। मैं हमेशा चाहता हूं मेरा भक्त दुनियावी माया मोह मे फंस। करउँ सदा तिन कर रखवारी,जिमि-बालक राखइं महतारी। भगवान राम ने नारद से बताया कि जो ज्ञानी है, साधक है उनको मैं ब्रह्म स्वरूप में मिलता हूं। मुझे उनका अधिक ध्यान नहीं रखना पड़ता किंतु जो भक्त है उनको अधिक ध्यान रखना पड़ता है। नारद जी वार्ता के पश्चात भगवान आगे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े।

गोस्वामी जी लिखते हैं आगे चले बहुरि रघुराई ऋष्यमूक पर्वत निप्राई। ऋष्यमूक पर्वत पर बालि के डर से निर्वासित राजा सुग्रीव रहता है। सुग्रीव ने दोनों भाई राम व लक्ष्मण को आता हुआ देखकर प्रभु हनुमान जी से कहा जाकर देखो यह कौन लोग हैं। इनको उधर ही रोको नहीं मानते हैं तो मुझे इशारा कर देना मैं यह स्थान छोड़कर अन्यत्र भाग जाऊंगा। भागउँ तुरत तजउँ यह शैला। हनुमान जी विप्ररूप धारण करके आगे जाकर उन दोनों लोगों (राम व लक्ष्मण) का परिचय पूंछा भगवान राम ने बताया कि हम राम लक्ष्मण नाम के दोनों भाई हैं। पिता दशरथ के आदेश से पत्नी सीता सहित वन की ओर चले आए हैं। यहां वन में राक्षसों ने पत्नी सीता का हरण कर लिया है। उन्हीं को खोजते हुए जंगल जंगल घूम रहे हैं। हनुमान जी राम जी का परिचय पाकर अत्यंत प्रसन्न हो गए और उन्हें सुग्रीव का परिचय बताकर अपने कंधे पर बैठाकर सुग्रीव के पास ले गए। वहां सुग्रीव एवं भगवान राम को एक दूसरे की समस्या संकट व समाधान से परिचय कराया। फिर दोनों ही लोगों ने अग्नि की शपथ लेकर एक दूसरे की सहायता करने का निर्णय लिया। सुग्रीव ने माता सीता द्वारा अपहरण के समय उस स्थान पर अपने वस्त्र और आभूषण गिराए थे भगवान राम को दिखाया। भगवान राम ने पहचान लिया कि यह सीता जी के ही वस्त्र आभूषण है। सुग्रीव के द्वारा सत ताड़ के वृक्षों को वेघ कर के भगवान ने अपनी क्षमता का परिचय दिया। भगवान राम ने सुग्रीव को बालि से लड़ने के लिए सुग्रीव को भेजा। उसी ताड़ के पेड़ की आड़ से भगवान ने बालि का वध कर डाला। बालि ने मरने से पहले अपने पुत्र अंगद का हाथ प्रभु राम के हाथ में देकर उसकी रक्षा सुरक्षा का आग्रह किया। फिर उसकी मृत्यु हो गई।

कार्यक्रम के अंत में श्री नव संवत्सर मानस समिति के संयोजक पंव सुशील पाठक मुख्य यजमान पंव कृष्ण कुमार पाठक,अनिल कुमार पाठक, कुंवर जी टंडन, आनंद जी टंडन, रतन जी टंडन, शिव बाबू त्रिपाठी, अनिल चैरसिया आदि भक्तों ने आरती किया एवं श्री वंश श्रीवास्तव एवं श्री अनिल चैरसिया ने प्रसाद वितरित किया।

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