प्रतापगढः प्रभु श्रीराम एक आदर्श प्रकृति संरक्षक-शांडिल्य दुर्गेश
April 06, 2025
प्रतापगढ़/प्रयागराज। रामनवमी के पवित्र तिथि पर प्रतापगढ़ के मूलनिवासी व सनातन के विषयों पर तार्किक व वैज्ञानिक समझ रखने वाले शांडिल्य दुर्गेश प्रभु श्रीराम के प्रकृति प्रेम को मानस के माध्यम से रेखांकित करते हैं।सनातन धर्मग्रंथों में वर्णित है कि त्रेता युग में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ था।भगवान श्रीराम न केवल एक आदर्श पुत्र,आदर्श भाई,आदर्श पति और आदर्श राजा के रूप में प्रतिष्ठित हैं,अपितु वे प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण के आदर्श प्रतीक भी हैं। उनका जीवन सनातन संस्कृति की उस परंपरा को दर्शाता है,जिसमें मानव और प्रकृति के मध्य गहरा सम्बन्ध है।गोस्वामी तुलसीदास जी एवं महर्षि वाल्मीकि जी ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रभु श्रीराम की संवेदनशीलता को रेखांकित किया है। रामराज्य पर्यावरण की दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न एवं स्वर्णिम काल था या यूँ कहें कि प्रकृति रामराज्य का आधार था।जो जन-जन के नायक हैं,सर्वोत्तम चेतना के शिखर हैं,जिन प्रभु श्रीराम में हमारी इतनी आस्था है,जिनका हम पूजन करते हैं,हम उन व्यक्तित्व से मिली सीख को अपने जीवन में हम नहीं उतार पाते।प्रभु ने प्रकृति के कण-कण की रक्षा के लिए मर्यादा को हमेशा सर्वोपरि रखा।ऋषि-मुनियों के यज्ञ-हवन के माध्यम से निकलने वाले ऑक्सीजन को अवरोध पहुँचाने वाले दैत्यों का वध करके प्रकृति की रक्षा किया।रामचरित मानस में हम पाते हैं कि विभिन्न प्राकृतिक अवयवों को मात्र उपभोग की वस्तु नहीं माना गया है बल्कि सभी जीवों तथा वनस्पतियों से प्रेम का सम्बन्ध स्थापित किया गया है।स्थान-स्थान पर प्रकृति के प्रति साहचर्य और अपूर्व आत्मीयता का प्रदर्शन है। प्रभु श्रीराम जी वन गमन के समय रास्ते में शृंगवेरपुर पहुँचने पर माँ गंगा आगे यमुना जी को श्रद्धा से प्रणाम करते हैं,माँ सीता के सामने सुरसरि की महिमा का बखान करते हैं।प्रकृति से अप्रतिम आत्मीयता तब प्रदर्शित होती है जब वे वन में कंद-मूल आदि का ही सेवन करते हैं,पंचवटी बनाते हैं तथा माँ सीता के हरण पर उन्हें ढूँढ़ते हुये प्रभु श्रीराम राह की वनस्पतियों से भी माँ सीता का पता पूछते हैं-ष्पूछत चले लता तरु पॉंतीष् और फिर विरह में विलाप करते हैं-ष्हे खग मृग मधुकर श्रेनी,तुम्ह देखी सीता मृगनयनी।ष्समुद्र को सुखाने की अद्भुत शक्ति प्रभु के बाण में है इसके बावजूद वे प्रकृति की मर्यादा के संरक्षण को ध्यान में रखते हुये सागर तट पर पहुँचकर उससे लंका तक पहुँचने का मार्ग माँगते हैं।गीधराज जैसे आमिष भोजी पक्षी से भेंट और उसके अंतिम क्षणों में उसके शरीर पर अपने हाथों के कोमल स्पर्श से स्नेह की वर्षा,लक्ष्मण जी के उपचार के लिये प्रभु हनुमान जी द्वारा सजीवन बूटी लाना सहित अनेकों उदाहरण हैं।अद्भुत है रामराज्य व समृद्ध प्रकृति -ष्फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन,रहहिं एक संग गज पंचाननष्।रामराज्य में प्रकृति और मानव में अटूट सम्बन्ध है और मानव प्रकृति के प्रति अगाध आदर का भाव रखता है।वर्तमान में पर्यावरण के संकट से निपटने के लिये प्रकृति के प्रति प्रभु श्रीराम का यही मर्यादित भाव ही एक रोल मॉडल है।