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प्रतापगढः मित्रता से भरे हैं श्रीमद्भागवत के उपदेश-आचार्य सन्तोष जी


लालगंज/प्रतापगढ़। लक्ष्मणपुर क्षेत्र के चन्दापुर ग्राम में हो रही श्रीमद्भागवत कथा में विश्राम दिवस में कथाव्यास आचार्य संतोष जी महाराज ने श्रीमद्भागवत् के उपदेशों को समझाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने जगत के मंगल के लिए ही अवतार लिया। उन्होनें बताया कि भगवान श्रीकृष्ण जी के द्वारिका पहुंचने और गोपिकाओं द्वारा रुक्मिणी की व्यथा कन्हैया तक पहुंचाने की कथा में यह संदेश निहित है कि जीवन में मित्रता की महत्ता सर्वोपरि है। आचार्य संतोष जी ने रुक्मिणी प्रसंग को बढ़ाते हुए कथा रूप में बताया कि रुक्मिणी भोज वंश के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। उन्होनें बताया कि उनके पांच बड़े भाई थे-रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश, और रुक्मनेत्र। रुक्मिणी के लिए कई रिश्ते आए, लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया था और कृष्ण को सात श्लोकों में एक प्रेमपत्र लिखा था। आचार्य संतोष जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि श्रीकृष्ण ने प्रेमपत्र पढ़कर उनसे विवाह का निश्चय कर लिया, फिर अपने बड़े भाई बलराम के साथ द्वारका से आए और रुक्मिणी को उनके स्वयंवर समारोह से उठा ले गए। इसीलिए रुक्मिणी को भाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है। मुख्य यजमान वीरेंद्र प्रसाद त्रिपाठी एवं मनोरमा त्रिपाठी ने व्यासपीठ का पूजन अर्चन किया। विश्राम दिवस पर लेखक एवं रचनाधर्मी पं. हेमन्त शुक्ल का आयोजन समिति की ओर से सम्मान भी हुआ। इस मौके पर राजेश शुक्ला, संतोष शुक्ला, कौशलेन्द्र शुक्ल, आशुतोष मिश्र, राजेन्द्र प्रसाद, सुरेन्द्र शुक्ल, डा. पुरूषोत्तम शुक्ल, शकुंतला पाण्डेय, मनोरमा त्रिपाठी, सुधा तिवारी, श्रीकांत शुक्ल, गौरव पाण्डेय, चंद्रधर ओझा, रामलगन तिवारी आदि रहे।

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