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लखनऊ: जंगल के राजा एवं प्रवासी पछियों के साथ-साथ अन्य वन्य-जीवों का दीदार कर रोमांचित हुए सैलानी


लखनऊ । लखीमपुर खीरी में स्थित दुधवा नेशनल पार्क में इन दिनों जंगल के राजा का दीदार सैलानियों को बराबर एवं बहुतायद मे हो रहा है । इसमें सबसे ज्यादा सैलानियों को किशनपुर रेंज में साइबेरियन पक्षियों के साथ-साथ बाघ, भालू , हाथी हिरण इत्यादि वन्य जीव देखने को मिल रहे हैं।

इसी के चलते यहां सैलानियों की आमद लगातार बढ़ रही है सुबह की जंगल सफारी के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे सैलानियों को भ्रमण के दौरान विदेशी पक्षियों के साथ-साथ साइबेरियन पक्षियों का भी दीदार हो रहा है। क्योंकि यहां की आओ हवा मेहमान परिंदों को खूब भा रही है अबकी यह देखने में आया है कि अब तक प्रवासी पक्षियों की 231 प्रजातियां यहां आ चुकी हैं । इनमें से 110 प्रजातियों के पक्षी साइबेरिया व अन्य ठंडे देशों से आए हैं।

प्रवासी पक्षी नवंबर माह में ही यहां आने लगते हैं। इन पक्षियों की जनगणना के लिए विशेष अभियान चलाया गया था। जनवरी माह तक दुधवा के फील्ड स्टाफ एवं नेचर गाइड , बायोलॉजीसट , डब्ल्यू डब्ल्यू एफ , की टीम की मदद से 60 से ज्यादा जलाशयो पर जाकर प्रवासी पक्षीयो की गणना की गई इसके लिए कैमरे , रेंज फाइनडर ,दूरबीन आदि का इस्तेमाल किया गया।

सैलानियों ने बताया जब वह किशनपुर रेंज में जंगल भ्रमण पर थे तभी उनकी जिप्सी के आगे आगे जंगल के राजा चहल कदमी करते हुए चल रहे थे इतने करीब से जंगल के राजा का दीदार होना सैलानियों को बहुत रोमांचित कर दे रहा है ।वह बार-बार यहां भ्रमण के लिए आना चाहते हैं।

इधर मौसम में काफी बदलाव हो रहा है हल्की-हल्की ठंड के साथ गुनगुनी धूप होने से वन्य जीव अक्सर जंगल के बाहर बस्तियों में आज रहे हैं। जिससे वह मानव एवं मवेशियों पर हमला कर दे रहे हैं ।इस समय विशेष सतर्क रहने की आवश्यकता है।

दुधवा से लगे बहराइच वन क्षेत्र के कर्तनीयाघाट वन क्षेत्र में प्रकृति की अद्भुत मनमोहन प्राकृतिक दुर्लभ जीव जंतुओं से परिपूर्ण होने के कारण देश हीं नही विदेशों से भी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

विगत वर्षों से वन्य जीवों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है इससे वन्य जीव प्रेमी काफी रोमांचित है। इस वन क्षेत्र में बाघों की आकस्मिक मृत्यु भी चिंता का कारण है । बाघ का शब गेरुआ नदी के किनारे मृत मिला हैं ।इस घटनाक्रम से यहां के निवासियों एवं वन्य जीव प्रेमियों में काफी रोश भी है ।

जंगल के अंदर अवैध शिकारियों की मछली या अन्य वन्य जीवों को पकड़ने के लिए अक्सर जाल लगा देते हैं । जिसमें फंसकर वन्य जीवो की मृत्यु हो जा रही है। कई बार वन विभाग द्वारा ईन लोगो को पकङा भी जाता है।जबकि वन विभाग वृहद स्तर पर गस्त करता है और निगरानी रखता है ।क्योंकि इतना बड़ा जंगल का भूभाग होने के कारण इसमें अवैध शिकारियों पर पूर्णतया अंकुश नहीं लगाया जा पा रहा है। इस वन्य जीव एवं वन संपदा को बचाए रखने के लिए वन्य जीव संरक्षण कानून को और पुख्ता करने के साथ-साथ जनमानस को सचेत करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

किसी भी देश का राष्ट्रीय पशु सुनिश्चित करने के लिए कई प्रकार के मापदंड के अनुसार किया जाता है। हमें अपनी इस विरासत पर गर्व होना चाहिए की सन 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत भारत सरकार द्वारा की गई थी। ’।इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत भारत सरकार ने रॉयल बंगाल टाइगर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया था ।

सन 1973 में जब टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था उस समय पूरे भारतवर्ष में केवल 9 टाइगर प्रोजेक्ट रिजर्व ही थे लेकिन बाघों की घटती संख्या की वजह से इनकी संख्या को बढ़ाया गया और पूरे भारत में लगभग आज के तारीख मे लगभग 53 टाइगर रिजर्व है । इससे बाघो की सख्या मे काफी इजाफा हुआ है।

बाघ की आयु लगभग 19 वर्ष होती है यह तीन सप्ताह तक बिना भोजन के रह सकता है और मादा बाघ एक बार में एक से पांच बच्चों को जन्म देती है।

बाघों की गणना के लिए बनी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण छ.ज्.ब्.।.के अनुसार पिछले 10 वर्षों में बाघों की संख्या भारत ने लगभग 2 गुना कर लिया है।

2010 में बाघों की संख्या भारत मे लगभग 1706 थी। जो 2022 में बढ़कर लगभग 3682 हो गई है। इसके अलावा भारत में अब दुनिया के सबसे अधिक 75 फीसदी बाघों का बसेरा है। यह उपलब्धि अवैध शिकार पर रोक एवं बाघों के आवासो की सुरक्षा एवं पर्याप्त शिकारगाह को सुनिश्चित करने मे मानव एवं वन्य जीव संघर्ष को कम करने तथा स्थानीय निवासियों के जीवन स्तर में सुधार के जरिए भारत सरकार , राज्य सरकारो के साथ-साथ वन विभाग के अथक प्रयासो से रात और दिन की विशेष निगरानी से ही सम्भव हो पाया है।

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