बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ अत्याचार का मसला उठाने वाली याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यह दूसरे देश का मामला है. याचिका में केंद्र सरकार से दखल के लिए कहने की मांग की गई थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि वह विदेश नीति के मामलों में सरकार को निर्देश नहीं देता.
लुधियाना के रहने वाले उद्योगपति राजेश ढांडा ने वकील मनोहर प्रताप के जरिए यह याचिका दाखिल की थी. याचिका की पैरवी के लिए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी पेश हुए, लेकिन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामला सुनने में असमर्थता जताई. इसके बाद रोहतगी ने याचिका वापस ले ली.
सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने बताया कि याचिकाकर्ता इस्कॉन से जुड़े हैं, वह गौशाला चलाने समेत कई कल्याण कार्य करते हैं. वह बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति देख कर चिंतित हैं. याचिका में यह मांग भी की गई थी कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के तहत 2014 की जो कट ऑफ तारीख रखी गई है, उसे बंगलादेश से आने वाले हिंदुओं के लिए आगे बढ़ा दिया जाए.
याचिका में कुछ उदाहरण दिए गए थे, जहां किसी देश की सरकार ने दूसरे देश के मामले पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का दरवाजा खटखटाया था. याचिकाकर्ता ने विदेश मंत्रालय के अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) को भी पक्ष बनाते हुए उनसे जवाब मांगने का भी अनुरोध किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट सुनवाई पर सहमत नहीं हुआ.