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आजम खान के बेटे अब्दुल्लाह को नहीं मिली राहत


समाजवादी पार्टी नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्लाह आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. पासपोर्ट हासिल करने के लिए फर्जी कागजात के इस्तेमाल का मामला रद्द करने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. अब्दुल्लाह ने एफआईआर निरस्त करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में दखल नहीं देगा.

जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है. बेंच ने कहा, 'हम हस्तक्षेप क्यों करें? आप अपनी दलीलें ट्रायल कोर्ट में रख चुके हैं. अब उस कोर्ट को तय करने दें. आपको कोर्ट पर विश्वास रखना चाहिए.'

मामला उत्तर प्रदेश के रामपुर के सिविल लाइंस थाने में दर्ज एक एफआईआर का है. मुकदमा रामपुर के विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट में लंबित है. अब्दुल्लाह आजम खान पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए गलत जन्म तिथि बताने और पासपोर्ट हासिल करने का आरोप है. उन पर आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 लगाई गई हैं. ये धाराएं धोखाधड़ी, फर्जी कागजात बनाने और उनका इस्तेमाल करने के लिए लगाई जाती हैं. इनमें से कुछ धाराओं में 7 साल और कुछ में 10 साल तक की सजा का प्रावधान है.

एफआईआर के मुताबिक अब्दुल्लाह के स्कूल रिकॉर्ड में उनकी जन्मतिथि 01 जनवरी, 1993 है, लेकिन उन्होंने पासपोर्ट के आवेदन में अपनी जन्मतिथि 30 सितंबर, 1990 बताई. इसके लिए जाली दस्तावेज (जन्म प्रमाण पत्र) पेश किया. इस मामले में 09 सितंबर, 2021 को निचली अदालत में आरोप तय किए गए थे.

इस साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्लाह और उनके पिता आजम खान की एक मिलती-जुलती याचिका को खारिज किया था. वह याचिका पैन कार्ड के लिए कथित तौर पर जाली जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग करने से जुड़ा था. आरोप है कि अब्दुल्लाह ने विधानसभा चुनाव का नामांकन दाखिल करने के लिए इस पैन कार्ड और नकली जन्म प्रमाणपत्र का इस्तेमाल किया.

पासपोर्ट के लिए जाली दस्तावेज के इस्तेमाल के मामले में अब्दुल्लाह ने हाई कोर्ट में दलील दी थी कि ये दस्तावेज वही हैं, जिनका इस्तेमाल पैन कार्ड हासिल करने के लिए किया गया. एक ही दस्तावेज के लिए 2 मुकदमे नहीं चलने चाहिए, लेकिन हाई कोर्ट ने कार्यवाही को रद्द करने से मना कर दिया था.

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, 'पैन कार्ड और पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए कथित तौर पर एक ही जाली जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग किया गया. फिर भी दोनों अपराध अलग हैं.' हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि आरोपी यह दलील पहले भी दे सकता था, लेकिन उसने जान-बूझकर याचिका दायर करने में देरी की.

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