हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार यह तिथि 1 दिसंबर, सोमवार को पड़ रही है। इस दिन व्रती मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा सुनते हैं। मोक्षदा एकादशी पर भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप का पूजन किया जाता है। श्री हरि की कृपा से वह जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाता है। यहां पढ़िए मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा। इसके साथ ही पूजा का शुभ मुहूर्त और पारण समय भी जानिए।
मोक्षदा एकादशी मुहूर्त और पारण का समय
- मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि की शुरुआत- 30 नवंबर, रविवार, रात 9 बजकर 29 मिनट से
- मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी तिथि का समापन- 1 दिसंबर, सोमवार, शाम 7 बजकर 01 मिनट पर
- मोक्षदा एकादशी की पूजा का मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 56 मिनट से सुबह 8 बजकर 15 मिनट तक, सुबह 9 बजकर 33 मिनट से सुबह 10 बजकर 52 मिनट तक
- 2 दिसंबर, मंगलवार, सुबह 6 बजकर 57 मिनट से सुबह 9 बजकर 03 मिनट तक
- द्वादशी तिथि का समापन: 2 दिसंबर, दोपहर 3 बजकर 57 मिनट
मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा
इस कथा का संबंध महाभारत काल से बताया जाता है। एक बार पांडव पुत्र धर्म राज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी व्रत की विधि और इसके महत्व के बारे में पूछा। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें इस व्रत का महत्व बताते हुए कहा कि जो लोग मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पाप मिट जाते हैं और उन्हें मोक्ष मिलता है। इसी वजह से साधक को मोक्ष प्रदान करने वाला यह एकादशी व्रत मोक्षदा एकादशी नाम से जाना जाता है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, गोकुल नगर में वैखानस नाम का राजा था। एक रात्रि सोते हुए उसे स्वप्न में अपने स्वर्गीय पिता के दर्शन हुए। राजा ने देखा कि पिता को नरक नसीब हुआ और वे यमराज द्वारा दिए गए कष्टों को भोग रहे थे। सुबह जब नींद खुली तो राजा दुखी होने के साथ ही बहुत बेचैन भी था।
राजा ने विद्वानों और मंत्रियों के लिए बुलावा भिजवाया और अपने दरबार में उपस्थिति होने को कहा। इसके बाद राजा ने सभी को अपने सपने की बात बताई। राजा ने कहा कि उसके पिता का कहना है कि नरक के कष्टों से मुक्ति दिलाने का उपाय करो। राजा को खुद पर ग्लानि हुई और उसने कहा कि ऐसे जीवन का क्या मतलब है, अगर वह अपने पिता को ही नरक से मुक्ति न दिला सके। वैखानस ने दरबार के सभी लोगों से इसका उपाय पूछा।
राजा के दरबारियों ने बताया कि नगर से कुछ दूरी पर पर्वत ऋषि रहते हैं, वे ही इस समस्या का उपाय बता सकते हैं। राजा पर्वत ऋषि के पास गया और ऋषि को मन की व्यथा सुनाई। ऋषि पर्वत ने अपने तपोबल से राजा के पिता का पूरा जीवन देख लिया।
ऋषि ने राजा से कहा कि पूर्वजन्म में आपके पिता ने काम वासना के चलते एक पत्नी को रति दी, लेकिन उसके कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतु दान नहीं किया। इस पाप के कारण आपके पिता नरक के कष्ट भोग रहे हैं।
राजा द्वारा अपने पिता की मुक्ति का उपाय पूछने पर पर्वत ऋषि कहा कि मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी आ रही है। यह मोक्ष देने वाली एकादशी है, राजन आप विधिपूर्वक मोक्षदा एकादशी व्रत करो और व्रत के पुण्य को संकल्प करके अपने पिता को दान कर दो। उन्हें नारकीय कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
इसके बाद मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी पर राजा वैखानस ने मोक्षदा एकादशी व्रत रखा और विष्णु स्वरूप दामोदर का विधिपूर्वक पूजन किया। अगले दिन व्रत पारण के दौरान मोक्षदा एकादशी व्रत के पुण्य को पिता के नाम से संकल्प कराके दान कर दिया। श्री हरि विष्णु की कृपा से राजन के पिता ने नरक से मुक्ति पाकर स्वर्ग लोक को गमन किया।
