- वाहन की टक्कर से घायल नीलगाय को अब तक नहीं मिला रेस्क्यू या उपचार, ग्रामीणों ने उठाई जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग
प्रिस कुमार की रिपोर्ट
अयोध्या /मिल्कीपुर! मिल्कीपुर क्षेत्र में एक लगभग डेढ़ वर्ष की नीलगाय (ब्लू बुल) पिछले तीन दिनों से सड़क किनारे घायल अवस्था में पड़ी हुई है, लेकिन अब तक किसी भी विभाग की ओर से उसकी सही चिकित्सा या रेस्क्यू की व्यवस्था नहीं की गई है।
जानकारी के अनुसार, 20 अक्टूबर 2025 को यह नीलगाय एक वाहन की टक्कर से गंभीर रूप से घायल हो गई। स्थानीय निवासी विकास प्रिंस शशांक(निवासी–उरुवा वैश्य, जमोलिया ब्लॉक, हैरिंग्टनगंज, तहसील मिल्कीपुर, अयोध्या।) ने जब इसकी सूचना पाई तो उन्होंने तुरंत 112 पुलि को कॉल किया। पुलिस मौके पर पहुंची, फोटो खींची और वन विभाग को सूचित किया। कुछ देर बाद वन विभाग का एक कर्मचारी बाइक से आया और डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने तीन इंजेक्शन लगाए और बताया कि पिछले पैरों में फ्रैक्चर है, जिसके कारण वह उठ नहीं पा रही है। लेकिन इलाज के बाद सभी अधिकारी मात्र आधे घंटे में वहां से चले गए और कोई रेस्क्यू व्यवस्था नहीं की।विकास यादव ने इसके बाद 1962 पशु हेल्पलाइन पर कॉल किया, जहां से मेडिकल एम्बुलेंस आई। टीम ने दो इंजेक्शन और एक दवा दी, लेकिन जब विकास ने बार-बार कहा कि जानवर को फ्रैक्चर है, तो उन्होंने कहा कि "वन विभाग से संपर्क करें" और वहां से चले गए।
इसके बाद विकास ने PETA संस्था से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें DRO नंबर और रेंजर का नंबर दिया। रेंजर ने उन्हें वन विभाग के कर्मचारी मुन्नी लाल से बात कराई — वही व्यक्ति जो पहले पुलिस के साथ आया था। मुन्नी लाल ने बताया कि उनके पास कोई सरकारी वाहन नहीं है और केवल लोगों की मदद से ही कुछ कर सकते हैं।
21 अक्टूबर 2025 को दोपहर करीब 2 बजे, डॉ. विनोद तिवारी और मुन्नी लाल दोबारा मौके पर पहुंचे। डॉक्टर ने पहले कहा कि कोई फ्रैक्चर नहीं है, शायद कोई बीमारी या पैरालिसिस है। लेकिन साफ़ दिखाई दे रहा था कि नीलगाय अपने पिछले पैरों पर खड़ी तक नहीं हो पा रही थी। डॉक्टर ने विकास से कहा कि वह खुद वाहन की व्यवस्था करके कुमारगंज (लगभग 15–20 किलोमीटर दूर) लेकर आएं।
जब विकास ने वन विभाग से वाहन की मदद मांगी तो मुन्नी लाल ने बोला कि वो ₹500 की मदद कर देगा यदि विकास खुद उसे कुमारगंज अपने साधन से पहुंचवा देगा। इस पूरे घटनाक्रम के वीडियो, फोटो और ऑडियो रिकॉर्डिंग्स सबूत के रूप में सुरक्षित रखे हैं।
इस बीच, नीलगाय अब भी उसी जगह पड़ी है — भूखी, दर्द में कराहती हुई, और किसी भी पल उसकी जान जाने का खतरा बना हुआ है। यह घटना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का स्पष्ट उल्लंघन है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर समय रहते सही उपचार और ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था की जाए, तो नीलगाय की जान बचाई जा सकती है।
अयोध्या की पशु अधिकार कार्यकर्ता प्रज्ञा से संपर्क किया। प्रज्ञा ने तत्काल डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर प्रखर गुप्त,जिला प्रशासन, और PETA India से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप कर रेस्क्यू और इलाज की व्यवस्था करने की मांग की है, साथ ही संबंधित अधिकारियों की लापरवाही की जांच की भी अपील की है।
