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संगठनों की भरमार, वंचितों का बंटाधार


  • महापुरुषों के नाम पर निजी स्वार्थों का खेला 
  • लोक मोर्चा नेता गुनहगार, किसकी बनाएंगे सरकार 

बाबा साहब द्वारा लिखे संविधान ने भले ही हम लोगोंको स्वतंत्रता से जीने का अधिकार और बेजुबानों को बोलने का अधिकार दिया हो लेकिन स्वतंत्रता की आड़ में ही  अलोकतांत्रिक तरीके बनें तमाम राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन ही नहीं अपने विकास के लिए सैकड़ों विधायकों सांसदों द्वारा वंचितों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने का खेल किसी से छिपा नहीं है और खेल खेलने वाले अपने स्वार्थ में कब महापुरुषों का नाम बेचने लगे कोई नहीं जानता।

कोई माने ना माने मुझ पर इस बात का फर्क नहीं पड़ता मैं तो  सिर्फ इतना  जानता हूं की 2006 से विधान केसरी का लगातार प्रकाशन करने के बाद मेरे द्वारा शासन सत्ता न्यायपालिका कार्यपालिका और मीडिया में वंचितों की गैरमौजूदगी ने मुझे झकझोर कर रख दिया है जिस कारण पहले तो डेढ़ दशक तक सम्पादकीय लिखकर शासन सत्ता में आवाज उठाने का काम किया लेकिन जब अतिपिछड़ों के अधिकारों की रखवाली का दावा करने वाले झूठों की योजना को नजदीक से देखा तो संगठनों के बाजार में जन सेवा दल के नाम से एक और राजनीति दल बना डाला जिस पर आठ माह में न सिर्फ तन मन धन बल्कि अपनी जान की बाजी लगाकर इतनी तेजी से जुटा कि नंद वंश के लोग मेरे साथ खड़े हो गए  लेकिन जातियों को इकठ्ठा कर सत्ता की योजना बना ही रहा था नेताओं के चक्कर में यह सोचकर फस गया कि बड़े बड़े नेताओं के साथ मिलकर एक झंडा और डंडा का रास्ता निकाल कर सत्ता की चाबी हासिल करेंगे लेकिन अब तक के अनुभव पर प्रकाश डाला तो पाया कि देश में भले ही घर घर में राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की भरमार हो रही हो उनकी स्थापना करनें वालों के लिए लाभ का सौदा बन रही हो लेकिन वंचितों के लिए न सिर्फ इनके झूठे दावों की पोल खोल रही है बल्कि अभिशाप भी बन रही है ,मैं पूछना चाहता हूं बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले ,ललई यादव, पेरियार स्वामी,बाबू जगदेव प्रसाद,जन नायक कर्पूरी ठाकुर, राममनोहर लोहियास महाराजा सुहेल देव, सम्राट अशोक, महापदम नंद, अहिल्याबाई होलकर, संत गुरु रविदास सहित तमाम महापुरुषों के फोटो मंच पर लगाकर या उनके चित्र पर माल्यार्पण करके समाज इकठ्ठा कर सरकार बनाने का दावा करने और अधिकार दिलाने का झूठा वायदा करने वालों से ,कि क्या आप लोग हजारों पार्टियां व संगठन बनाकर वंचितों को अधिकार दिला सकतें हों, क्या धन धरती शिक्षा सम्मान दिलाने लायक बन सकते हो, मैं गारंटी से कह सकता हूं कि आप लोग संगठनों की गलतफहमी में केवल उस बिल्ली को मजबूत करते रहे हों जो मौका मिलते ही आपका न सिर्फ दूध डकार जाती है बल्कि आपके लिए पानी भी नहीं छोड़ती मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं की संगठनों की आड़ में आप लोग केवल अपनी दुकान चला सकतें हों, सरकार नहीं बना सकते हद तो तब हो जाती है जब दस दस, बीस बीस साल पहले संगठन बनाने के बावजूद आज तक जीरो नजर आते हों और आप लोगों को जरा भी शर्म नहीं आती जिस कारण आप लोग एक झंडे के नीचे इकठ्ठा नहीं हो पाते हैं ।

शर्म आनी चाहिए जन संख्या अनुपात में हिस्सेदारी दिलाने का दावा करने वाले नेताओं को कि एक झंडे के नीचे इकठ्ठा हुए बिना आप लोग किसी की गुलामी में विधायक सांसद तो बन सकते हो लेकिन मुख्यमंत्री बनना आसमान से तारे तोड़ने का दावा करने के समान है बिना एक चुनाव निशान एक झंडा और डंडा के बिना वंचितों को सत्ता में ले जाने का दावा निराधार है मजाक तब लगती है जब सामाजिक संगठन चलाने वाले लोग सरकार बनाने की बात करने लगते हैं देश प्रदेश में मीटिंग के माध्यम से वंचितों को इकठ्ठा कर आप लोग सरकार बनाने के कितने भी दावे कर लें लेकिन मानसिकता आप लोगों की भी गुलामों से कम नहीं है और मजेदार बात तो यह कि निजी स्वार्थ आपके प्रत्येक सवाल जबाव आपके भाषणों में झलकता है जिसे सुनकर हर कोई आपके निजी स्वार्थ की नौटंकी को समझ जाता है मजेदार बात तो यह है कि वंचित जातियों में जन्मे नए नवेले नेता ही नहीं सरकारों में रहें खुद को बड़ा बड़ा मिशनरी समझने और शिक्षीत बनों संघर्ष करों का नारा लगाने वाले खुद ही बांटते नजर आते हैं कमाल तो यह है कि लम्बे चैड़े भाषण देकर महापुरुषों के रास्ते पर चलने की दुहाई देते हैं कहीं सामाजिक परिवर्तन का दावा करते हैं लेकिन खुद के घर वाले पांच बार अजान वालों से आगे निकल जाते हैं तथागत के रास्ते पर चलने का उपदेश देने वाले लोग पहले खुद को फिर परिवार और रिस्तेदारो को अपने पीछे चलाएं तब कहीं बाबासाहेब सहित अन्य महापुरुषों के अनुयाई बने, मुझे लिखते हुए शर्म आ रही है कि हम लोक मोर्चा के लोग ही दूसरों को अनुशासन विजन और मिशन का ही नहीं शैक्षिक बनों संगठित रहो संघर्ष करों शासक बनों की बात करते हैं और खुद अपनी अपनी पार्टियों को लोकतंत्र की हत्या कर अलग-अलग चुनाव चिन्ह पर सत्ता हासिल करने का झूठा वायदा करते हैं।

कहने को तो मैं भी प्रधानमंत्री बनने का दावा कर सकता हूं भाजपा हटाओ संविधान बचाओ कह सकता हूं पीडी/एनडीए या इंडिया गठबंधन को गठबंधन बता सकता हूं लेकिन आप लोगों को सही रास्ते पर लाना मेरे बस में नहीं है हां यदि आप लोग वंचितों को जन संख्या अनुपात में हिस्सेदारी दिलाने में एक झंडे के नीचे चलने को तैयार हों जातें हैं तो उत्तर प्रदेश ही नहीं उत्तराखंड का मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं लेकिन इसके लिए आप लोगों को आपस में चूहा बिल्ली का खेल बंद करना होगा ,

मजेदार बात तो यह है आज एक ही जाति के चार चार नेता इकठ्ठा होकर सत्ता की तरफ नहीं बल्कि एक दूसरे को हराने की योजना पर काम कर रहे हैं और आपके कार्यक्रमो की भीड़ में शामिल लोग वही है कौन नहीं जानता कि सिर्फ बैनर अलग-अलग हैं हालांकि अतिपिछड़ों में जन्म लेकर किसी ने भी अपनी पार्टी वंचितों को गुमराह न कर उनके उद्धार के लिए बनाई होगी लेकिन हजारों की संख्या में पहुंच चुकी संख्या को ध्यान में रख फेल होने के बावजूद आप लोगों का एक जुट न होना यह बताने को काफी है कि आप सत्ता पाकर वंचितों को अधिकार दिलाने नहीं बल्कि निजी स्वार्थ लेकर इनको डुबाने की योजना पर काम कर रहे। मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं जिन्हें आप लोग वंचितों के दुश्मन बताते घूम रहे हैं वह दुश्मन तो है लेकिन पीछे जाकर देखोगे तो आप ही उन्हें मजबूत करने के गुनहगार पाऐ जाओगे जब आप लोगों को टिकट नहीं मिला या पार्टी से अलग कर दिया गया तभी आप लोग सरकार बनाने का दावा करने लगे लेकिन फर्जी इगो व मैं बड़ा मै बड़ा की गलतफहमी में चार कदम नहीं चल सकें ध्यान रखें यदि आप लोग उनके साथ रहकर विधायक सांसद मंत्री बन भी जाते हैं तो खुद की पूंजी में वृद्धि करने के अलावा कुछ नहीं कर पाओगे मैं यह भी गारंटी के साथ कह सकता हूं कि वर्तमान में ऐसे कई नेता सत्ता चलाने वालों को दुश्मन साबित करते घूम रहे हैं जिन्होंने 2014 में भाजपा को केंद्र में बैठाया और 2017 में उत्तर प्रदेश उसके हवाले कर दिया और आज भी ऐसे नेताओं की हालत सिर्फ कार या सिम बेचने वाले डीलर की तरह हों गई है जैसे वह एक कार मुझे बेचने के बाद दूसरी कम्पनी ज्वाईन करके कहता है कि साहब क्यों घटिया कार चला रहे हों मेरी इस कम्पनी की कार खरीदकर चलाओ  भूल जाता है कि यह कार भी तो मैंने ही इन्हें बेची थी और इन्होंने मुझपर भरोसा कर खरीदी थी।

खैर जो भी हो मैं किसी को रोक तो नहीं सकता सिर्फ इतना कहना चाहता हूं ये आरक्षित वर्ग  के लोग इतने भोले हैं की अधिकारों का हनन करने वालों की तों छोड़िये सामाजिक और जातिगत अपमान करने वालों के साथ भी खड़े रहे हैं लेकिन 2027 के चुनाव में जो इन्हें उम्मीद जगी थी वह भी आप लोगों के द्वारा चकनाचूर की जा रही है और यदि इसी रास्ते पर चलते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब आधुनिक युग में संविधान और विज्ञान को ग्रंथ और लोकसभा विधानसभा को मंदिर मानकर तेजी से सत्ता की ओर दौड़ रहे इन वंचितों का आप लोगों से भरोसा उठ जाएगा, अच्छा होता कि आप लोग अपनी पार्टी को घूंटी पर टांगकर मात्र दस लोग मेरे या किसी एक के नेतृत्व में आरक्षित जातियों के वोट में विश्वास दिलाकर इन्हें धन धरती शिक्षा सम्मान में मजबूत कर मजबूर भारत नहीं बल्कि मजबूत भारत बनाने का काम करें। ध्यान रखें 2027 फिर आने वाला नहीं है।

          विनेश ठाकुर 

सम्पादक विधान केसरी लखनऊ 

 राष्ट्रीय अध्यक्ष जन सेवा दल


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