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देश में अदालतों की कोई जरूरत नहीं-मौलाना अरशद मदनी


जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की बैठक में अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने मौजूदा सरकार पर कई तीखे हमले किए हैं. मौलाना अरशद मदनी ने देश की वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि मुसलमानों की एक दो समस्याएं हो तो उन्हें बयान किया जाए, यहां तो समस्याओं का एक ढेर है. एक समस्या समाप्त नहीं होती कि दूसरी पैदा कर दी जाती है.

उन्होंने कहा कि एक विवाद ठंडा नहीं होता कि दूसरा विवाद खड़ा कर दिया जाता है. चारों ओर से मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं और यह सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है. ऐसा लगता है कि हिंदू मुसलमान करने के अलावा सरकार और सांप्रदायिकों के पास कोई अन्य मुद्दा ही नहीं रह गया है. इस समय देश की स्थिति जितनी चिंताजनक है.

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इसका अतीत में उदाहरण नहीं मिलता, सत्ता परिवर्तन के बाद एक के बाद एक जो घटनाएं हो रही हैं, उससे अब इसमें कोई आशंका नहीं रह गई है कि भारत फांसीवाद की चपेट में चला गया है. सांप्रदायकि और अराजकतावादी शक्तियों का बोलबाला हो गया है.

उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि जो समुदाय अपनी पहचान, संस्कृति और धर्म के साथ जिंदा रहना चाहता है, उसे बलिदान देना पड़ता है. आज देश ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां नफरत को देश-भक्ति कहा जा रहा है और अत्याचारियों को कानून की पकड़ से बचाया जा रहा है, बल्कि देश में सांप्रदायिकता की आग में केवल मुसलमान ही नहीं, देश का अस्तित्व झुलस रहा है.

इस सभा में जमीयत उलेमा ए हिंद के तमाम पदाधिकारी और राज्यों के प्रमुख भी शामिल हुए और इस सभा का एजेंडा था, 'देश में बढ़ती सांप्रदायिकता, कट्टरता, अशांति, अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मुसलमानों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव, पूजा-स्थल ऐक्ट के बावजूद मदरसों और मस्जिदों के खिलाफ सांप्रदायिकों की जारी मुहिम और खासतौर पर असम में जारी निष्कासन और पचास हजार से अधिक मुस्लिम परिवारों को केवल धर्म के आधार पर बुल्डोजर कार्रवाई और फिलिस्तीन में इजरायल के आक्रामक आतंक.'

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना मदनी ने कहा कि आजादी के बाद ही से सांप्रदायकि मानसिकता को खुला मैदान मिल गया, सरकार ने इस मानसिकता को समाप्त करने के लिए कभी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की. मौलाना मदनी ने कहा कि उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति या संगठन से नहीं, बल्कि सरकार से है, क्योंकि देश में प्रशासनिक स्थिति को बरकरार रखना और देश के हर नागरिक को सुरक्षा देना उसी की जिम्मेदारी है.

उन्होंने आगे कहा कि देश में जब-जब मुसलमानों के खिलाफ कोई समस्या खड़ी की जाती है, हम उसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने को प्राथमिकता देते हैं, जिसमें पक्ष सरकार ही होता है. देश की आजादी के बाद जब हमारे कुछ बड़ों ने अपनी समस्याएं लेकर सड़कों पर उतरने की बात कही तो कुछ लोगों ने इसका विरोध किया. उनका मत था कि हमें इस रणनीति को अपनाना चाहिए कि मुस्लिम आवाम का मुकाबला सांप्रदायिकों से नहीं, सरकार से हो.

मदनी के कहा कि अगर हम सड़कों पर उतरे तो टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है और यह बात हमारे लिए ही नहीं, देश के लिए भी हानिकारक हो सकती है. टकराव की राजनीति की जगह हम कानूनी तौर पर लड़ाई लड़ रहे हैं और इसमें हमें सफलता भी मिल रही है.

मौलाना मदनी ने आगे कहा कि असम में पिछले कुछ समय से मुस्लिम आबादियों को निशाना बनाकर उसमें रहने वालों को बेघर कर देने का योजनाबद्ध अभियान चलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा करके मुस्लिम बस्तियों को ही नहीं, असम में देश के संविधान और कानून को बुल्डोज किया जा रहा है. यह केवल राजनीति और धर्म के आधार पर की जाने वाली निंदनीय कार्रवाई है.

उन्होंने कहा कि मुसलमानों के साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार हो रहा है, मगर राज्य के मुख्यमंत्री को न संविधान और ना कानून की परवाह है और न ही न्यायालय का भय है. यही कारण है कि जब कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी तो दूसरी मुस्लिम बस्तियों को निशाना बनाया जा रहा है. यह अत्याचार ऐसा है, जिसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

मौलाना मदनी ने कहा कि यह मुसलमानों को बेघर करके उन्हें राज्य से बाहर कर देने की एक योजनाबद्ध साजिश है. वो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से यह अनुरोध भी करते हैं कि इस मामले का स्वयं नोटिस लें और जो लोग भी इस असंवैधानिक कार्रवाई में शामिल हैं, उनके खिलाफ कानूनी कदम उठाए.

उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री जिस तरह मुसलमानों के खिलाफ लगातार जहरीले बयान दे रहे हैं, उनके खिलाफ मुकदमा होना चाहिए, ताकि राज्य में शांति व्यवस्था का वर्चस्व बाकी रखा जा सके. सत्ता में बैठे हुए लोगों के नफरती बयानों पर रोक लग सके.

उन्होंने यह भी कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद किसी भी सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे का समर्थन नहीं करती है, लेकिन सच्चाई यह है कि जिन मुस्लिम बस्तियों को अवैध कहकर बुलडोजर किया जा रहा है, वो आज की नहीं, बहुत पुरानी बस्तियां हैं. अगर वो बस्तियां अवैध थीं तो इससे पहले की सरकारों ने वहां सार्वजनिक सुविधाएं क्यों उपलब्ध की.

मदनी ने कहा कि अफसोस कानून और न्याय को ताक पर रखकर केवल मुस्लिम बस्तियों को ही निशाना बनाया जा रहा है. वहां के मुख्यमंत्री ने अपने हालिया बयान में कहा कि हम केवल मियां मुस्लिम लोगों को निष्कासित कर रहे हैं, यह इस बात का खुला प्रमाण है कि यह कार्रवाई मुस्लिम दुश्मनी पर अधारित है और अवैध कार्रवाई है.

मौलाना ने कहा कि मुख्यमंत्री ये भी कहते हैं कि जिन लोगों को हटाया गया है, अब उनके नाम वोटर लिस्ट से काट दिए जाएंगे, यानि उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा. सवाल यह है कि क्या अब देश में कोई कानून नहीं रह गया? क्या किसी मुख्यमंत्री का फरमान ही अब कानून है, न्यायालय की अब कोई आवश्यकता नहीं रह गई, क्या एक मुख्यमंत्री किसी नागरिक को वोट के अधिकार से वंचित कर देने का अधिकार रखता है?

मौलाना मदनी ने आगे कहा कि जब देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ही मुसलमानों के खिलाफ गैर-जिम्मेदाराना बयान दें तो फिर दूसरे लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा ही. असम के मुख्यमंत्री की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि यह व्यक्ति जब से मुख्यमंत्री बना है, जहां जाता है जहरीला भाषण देता है, मुसलमानों को खुलेआम घुसपैठिया कहता है.

उन्होंने कहा कि वास्तव में ऐसा करके राज्य के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत की ऐसी खाड़ी पैदा कर रहे हैं, जिसे आसानी से पाटा न जा सके और यह बात संविधान के अपमान के समान है, जिसमें देश के सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार दिए गए हैं. यह व्यक्ति असम के लाखों मुसलमानों की नागरिकता छीन लेने का सपना देखता था.

मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि असम में 1951 की जनगणना को नागरिकता के आधार की मांग सामने आई थी, मगर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के समय पर कानूनी संघर्ष के कारण जो निर्णय आया, उसने सभी सांप्रदायिकों के नापाक इरादों पर पानी फेर दिया, जो इस उम्मीद में पागल हुए जा रहे थे कि धारा 6-ए के निरस्त होने के बाद विदेशी करार देकर करोड़ों लोगों को राज्य से बाहर निकाल देंगे.

उन्होंने कहा कि एन.आर.सी. के बाद घुसपैठ और विदेशी नागरिकों का मामला बिल्कुल स्पष्ट हो गया है. मगर सांप्रदायिक गोलबंदी के लिए सांप्रदायिक ताकतें राज्य में इस समस्या को दोबारा जीवित रखना चाहती हैं, मुसलमानों को बेघर कर देने का अभियान इसी योजना का एक हिस्सा है.

इस कार्यकारी समिति में गाजा में जारी नरसंहार और अमानवीय अत्याचारों की भी कड़ी निंदा की गई है. मौलाना मदनी ने कहा कि लगभग एक लाख मनुष्यों की हत्या और आम नागरिकों को भूख, प्यास से मारना आतंक की बदतरीन मिसाल है. इसके अतिरिक्त ग्रेटर इजरायल की अराजकता और गाजा पर पूर्ण कब्जे की घोषणा, फिलिस्तीनियों को मिटाने और बाकी बची भूमि हड़पने की बदतरीन साजिश है.

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