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बाराबंकीः सरयू तटवर्ती गांवों को जोड़ने वाला जीवनमार्ग बना मौत का रास्ता


रामनगर /बाराबंकी। सरयू नदी के किनारे बसे रामनगर तहसील के कई गांव इन दिनों दोहरी मार झेल रहे हैं ,एक ओर बाढ़ का खतरा तेजी से सिर उठाने लगा है, दूसरी ओर इन गांवों को संजय सेतु से जोड़ने वाला एकमात्र डामर सड़क मार्ग खतरनाक जर्जर हालत में पहुंच चुका है। यह एक किलोमीटर लंबा रास्ता अब गड्ढों से नहीं, बल्कि ग्रामीणों की बेबसी और उपेक्षा से भरा पड़ा है।सड़क पर जगह-जगह बने सैकड़ों छोटे-बड़े गड्ढे अब हादसों का न्यौता बन चुके हैं। प्रतिदिन स्कूली बच्चे, बुजुर्ग महिलाएं और बीमार लोगों को इस रास्ते से गुजरते समय किसी अनहोनी का डर सताता है। स्थानीय निवासी कमलेश कुमार यादव की आंखें भर आती हैं जब वे कहते हैं, इस सड़क से हर दिन गुजरते हैं, लेकिन हर बार लगता है कि शायद आज कोई हादसा न हो जाए। यह डर अब आदत बन गया है।ग्रामीणों का आरोप है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद न तो लोक निर्माण विभाग के अधिकारी और न ही प्रशासन ने इस मार्ग की सुध ली। शिक्षक अवधेश यादव कहते हैं, हमने तहसील दिवस से लेकर जनसुनवाई तक हर मंच पर अपनी बात रखी, लेकिन हमारी आवाज गड्ढों में कहीं खो गई।बाढ़ का सरयू नदी में नेपाल से छोड़े जा रहे पानी के चलते तेजी से बढ़ रहा है। फिलहाल जलस्तर तीन सेंटीमीटर प्रति घंटे की गति से चढ़ रहा है, और ऐसे में यही मार्ग आपदा के समय राहत पहुंचाने का प्रमुख सहारा था। लेकिन अब इस पर चलना खुद खतरे से खेलने के बराबर हो गया है।ग्रामीणों की मांग है कि सड़क की तत्काल मरम्मत कराई जाए और इसे गड्ढा मुक्त बनाया जाए। स्थानीय निवासी सुनील कुमार, सर्वेश, अखिलेश और दिनेश जैसे कई लोग अब सड़कों पर उतरने की चेतावनी दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर जल्द मरम्मत नहीं हुई तो हम इस मुद्दे को मुख्यमंत्री तक लेकर जाएंगे, क्योंकि अब चुप रहना हमारी मजबूरी नहीं, जरूरत बन गया है।इस संबंध में लोक निर्माण विभाग के अधिकारी डीके. चैधरी ने बताया कि संबंधित मार्ग की मरम्मत को लेकर शीघ्र कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि सड़क को अच्छी गुणवत्ता के साथ गड्ढा मुक्त बनाया जाएगा।लेकिन सवाल ये है कि क्या मरम्मत कार्य समय पर शुरू होगा? या फिर एक और बाढ़ में यह टूटता रास्ता ग्रामीणों की उम्मीदों के साथ बह जाएगा?

अब यह सरकार और विभागीय जिम्मेदारों की अग्निपरीक्षा है ,क्या वे इन आवाजों को सुन पाएंगे, या फिर यह आवाजें भी उन गड्ढों में गुम हो जाएंगी जो हर दिन किसी की हड्डी और किसी की उम्मीद तोड़ रहे हैं।

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