बलिया। शहीद मंगल पांडेय का पैतृक गांव नगवां आजादी की लड़ाई की अलख जगाने में आगे तो था ही इसके साथ देश की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने में भी कहीं से पीछे नहीं है। जिसका जीता जागता उदाहरण मोहर्रम का त्यौहार है।
ज्ञात हो कि नगवां गांव में हिंदू मुस्लिम के अलावा कई जातियों की मिश्रित आबादी निवास करती है, जहां सभी लोग एक दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा लेते हैं। हिंदुओं के त्यौहार में मुसलमान और मुसलमान के त्यौहार में हिंदू बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी निभाते हैं।
इसी परम्परा के निर्वहन के क्रम में मंगल पांडेय के पैतृक गांव नगवा में लगभग 100 वर्षों से मोहर्रम पर हिंदू - मुस्लिम समाज के लोग आपस में मिलकर इस त्यौहार को उत्साह के साथ मनाते हैं। ताजिया को चैक पर स्थापित करने से लेकर उसे कर्बला में दफन तक हिंदू समाज के लोग अपने मुसलमान भाइयों के साथ उमंग उत्साह से सम्मिलित होते हैं। बलिया की धरती पर मोहर्रम का त्यौहार हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
वहीं दूसरी तरफ हिंदू त्यौहारों पर भी मुसलमान समाज बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। भाईचारे की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिलती है।
नगवा निवासी ताजिया कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल मजीद ने बताया कि हमारे गांव में ताजिया जुलूस में सर्व समाज व प्रत्येक घरों से लोग उत्साह व उमंग पूर्वक सम्मिलित होकर अपना करतब दिखलाते हैं। यह एकता और भाई चारे की मिसाल है, जो पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं। खास बात यह है कि यहां पर मुस्लिम त्यौहारों में सर्व समाज के युवा भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।