धर्मनिरपेक्ष शब्द मूल रूप से संविधान में नहीं था, इसे बाद में जोड़ा गया-शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
July 03, 2025
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने संविधान में सेक्युलर शब्द पर जारी बहस के बीच पहली प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि यह शब्द मूलरूप से संविधान में था ही नहीं.
उन्होंने कहा कि 'धर्मनिरपेक्ष शब्द मूल रूप से संविधान में नहीं था, इसे बाद में जोड़ा गया. इसलिए यह भारतीय संविधान की प्रकृति से मेल नहीं खाता और यह मुद्दा बार-बार उठाया जाता है. धर्म का मतलब है सही और गलत के बारे में सोचना और सही को अपनाना और गलत को अस्वीकार करना.'
शंकराचार्य ने कहा 'धर्मनिरपेक्ष बनने का मतलब है कि हमें सही या गलत से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसा किसी के जीवन में नहीं हो सकता. इसलिए यह शब्द भी सही नहीं है.'
बता दें आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में शामिल 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द को बरकरार रखने पर फिर से चर्चा करने की बात कही थी.
आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने हाल ही में बयान दिया था कि संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े गए. दोनों शब्द संसद में बिना चर्चा या सहमति के जोड़े गए थे. इन दोनों शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में बरकरार रखना है या नहीं इस पर देश में खुली बहस होनी चाहिए.दत्तात्रेय होसबोले के इस बयान का कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया है.आपातकाल के दौरान संविधान में बड़े बदलाव किए गए थे.
उन्होंने कहा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में 42वां संशोधन करवाया था और प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष', 'एकता और अखंडता' शब्द को जोड़ा था. यह बदलाव संसद में बिना किसी चर्चा के ऐसे समय में हुआ जब विपक्ष के अधिकांश बड़े नेता जेल में थे.संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान में संशोधन को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण रखा था. उन्होंने संविधान को पत्थर की लकीर नहीं माना था और जरूरत के मुताबिक बदलाव की बात भी कही थी. लेकिन, उन्होंने यह भी कहा था कि संशोधन किसी भी सरकार के फायदे के लिए नहीं होना चाहिए.