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कोल्हापुरी चप्पल मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर


कोल्हापुरी चप्पल की डिजाइन कॉपी करने का मामला बॉम्बे हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है। इस मामले पर एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें नुकसान के लिए मुआवजे की मांग की गई है। इस याचिका जरिए प्राडा और कडुना केली से मुआवजे मांगा गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट में भारतीय पारंपरिक डिजाइनों की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भौगोलिक संकेत (GI) उत्पादों के उल्लंघन को रोकने के लिए याचिका दायर की गई है। जनहित याचिका में कहा गया कि प्राडा का "टो रिंग सैंडल" संग्रह मिलान (Milan) में भारत की कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित है। अधिवक्ता गणेश हिंगमिरे ने यह याचिका दायर की है।

अधिवक्ता गणेश हिंगमिरे ने वैश्विक फैशन ब्रांड्स की आलोचना करते हुए कहा कि ये ब्रांड ब्रोकेड, ब्लॉक प्रिंटिंग, बंधनी, शरारा और साड़ी जैसे पारंपरिक भारतीय डिजाइनों की नकल करते हैं। इस याचिका में कोर्ट की निगरानी के बिना प्राडा और शिल्पकार संगठनों के बीच सह-ब्रांडिंग, क्षमता निर्माण और सहयोग की मांग की गई है ताकि राजस्व एकत्र किया जा सके। जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि इस मामले में कानूनी आदेश अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय GI उत्पादों की नकल या पुनरुत्पादन से रोक सकेगा।

इटालियन लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा ने अपने स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवेयर कलेक्शन में कोल्हापुरी चप्पल जैसी सैंडल पेश की थी। प्राडा ने मिलान फैशन शो में इन सैंडल्स को प्रदर्शित किया। ये चप्पलें महाराष्ट्र और कर्नाटक के पारंपरिक हस्तनिर्मित कोल्हापुरी चप्पलों से हूबहू मिलती-जुलती थीं, लेकिन प्राडा ने भारत या इसके कारीगरों को डिजाइन का श्रेय नहीं दिया। इन सैंडल्स की कीमत 1-1.2 लाख रुपये रखी गई, जबकि स्थानीय कारीगर इन्हें 300-1500 रुपये में बेचते हैं। इसके बाद प्राडा का विरोध शुरू हुआ तो कंपनी ने 27 जून 2025 को महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स (MACCIA) को पत्र लिखकर स्वीकार किया कि उनकी सैंडल्स कोल्हापुरी चप्पल से प्रेरित हैं। प्राडा के कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी हेड लोरेंजो बर्टेली ने कहा कि वे भारतीय कारीगरों के साथ सहयोग के लिए तैयार हैं और डिजाइन अभी प्रारंभिक चरण में है।

कोल्हापुरी चप्पल का निर्माण 12वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। राजा बिज्जल और बसवन्ना ने इसे बढ़ावा दिया। छत्रपति शाहू महाराज के समय में इसका व्यवसायीकरण हुआ। यह चप्पल पूरी तरह से हाथ से ही बनाई जाती है। इसमें वनस्पति-टैन्ड चमड़े और प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है। इसमें कील या सिंथेटिक सामग्री का उपयोग नहीं होता। यह चप्पल मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा, सोलापुर और कर्नाटक के बेलगावी, बागलकोट, धारवाड़ जैसे क्षेत्रों में बनती है।

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