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बाराबंकीः भूमि विवाद में अन्याय का घूंट पी नहीं सके किसान पिया खरपतवार नाशक स्थित गम्भीर! एसडीएम ने कराई आदेश फाइलें सील, जांच शुरू


सिरौलीगौसपुर/बाराबंकी। जब खेत ही हाथ से फिसलता महसूस हुआ, किसान लल्लाराम वर्मा की हिम्मत टूट गई। तहसीलदार न्यायालय से विपक्ष के पक्ष में कथित तौर पर पूर्व-तारिख में जारी आदेश की खबर मिलते ही उन्होंने शुक्रवार रात घर में रखा खरपतवार नाशक पी लिया। हालत बिगड़ने पर परिजनों ने निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां कई घंटों के इलाज के बाद भी स्थिति गंभीर बनी हुई है। अब उन्हें दूसरे अस्पताल में शिफ्ट किया गया है।परसा (थाना सफदरगंज) निवासी लल्लाराम की भूमि का विवाद गूना उर्फ शीतलदेई (गुलवरिया, गोंडा) पक्ष से चल रहा था। 9 जुलाई को कार्यवाहक तहसीलदार महिमा मिश्रा ने सुनवाई पूरी कर 11 जुलाई को फैसला सुरक्षित किया और तारीख 14 जुलाई डालकर प्रतीक्षा नोटिस तामील कराया। लेकिन 11 जुलाई की शाम नई तहसीलदार की तैनाती वाले ही दिन महिमा मिश्रा ने विपक्ष के हक में अंतिम आदेश जारी कर दिया। इसी तरह के एक दूसरे वाद में भी 15 जुलाई की नियत तारीख से पहले आदेश पारित हो गया।

आदेश की भनक लगते ही लल्लाराम तनाव से बेहाल हो गए। रात में उन्होंने जहर पी लिया। पुत्र शमशेर वर्मा के मुताबिक, एक बाहरी महिला कूट-रचित दस्तावेज लेकर हमारे घर की सदस्य बन बैठी और हमारी जमीन ठिकाने लगाने पर उतारू है। पिता जी न्याय की आस लगाए थे, पर यह आदेश उन्हें तोड़ गया।

प्रशासन सक्रिय, फाइलें सील

घटना की सूचना मिलते ही एसडीएम सिरौलीगौसपुर प्रीति सिंह ने तहसीलदार बालेंदु भूषण वर्मा को किसान के घर भेजा, जहां पहले-दर्जे का इलाज करवा कर दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया गया। एसडीएम ने दोनों विवादों की फाइलें तत्काल तालाबंद (सील) कर जांच शुरू कर दी है।वहीं, पूर्व कार्यवाहक तहसीलदार महिमा मिश्रा ने सफाई दी, सभी कार्य नियमानुसार किए गए हैं। ऑनलाइन सिस्टम में तारीख कंप्यूटर ऑपरेटर की त्रुटि से गलत अपलोड हो गईं।

गांव में दहशत, तहसील में हड़कंप

किसान की नाजुक हालत ने गांव में सन्नाटा पसार दिया है। लोग पूछ रहे हैं,अगर अदालत जैसा लोकतांत्रिक मंच भी भरोसा तोड़ दे तो हम कहां जाएं?” तहसील परिसर में भी कर्मचारियों पर दबाव हैय जांच की आंच किस-किस तक पहुंचेगी, इसे लेकर खलबली मची हुई है। जमीन हमारी पहचान है, और जब पहचान ही खतरे में हो तो इंसान टूट जाता है। लल्लाराम की जिंदगी की जंग सिर्फ एक किसान की निजी त्रासदी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर सवाल है जो सच और तारीख के बीच की लकीर कभी-कभी धुंधली कर देती है। अब निगाहें प्रशासनिक जांच पर टिकी हैं । 

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