प्रतापगढ़: मंदिर की घंटी,अध्यात्म व विज्ञान का अद्भुत समन्वय - शांडिल्य दुर्गेश
May 23, 2025
प्रतापगढ/प्रयागराज। सनातन धर्म में आस्था,विश्वास तथा गूढ़ व विज्ञान सम्मत जानकारी रखने वाले शांडिल्य दुर्गेश ने मंदिर की घण्टी व वर्तमान के साउंड थेरेपी में प्रभावी साम्य स्थापित करने का एक स्पष्ट प्रयास किया है।शांडिल्य दुर्गेश के अनुसार मंदिर की घंटी की मधुर ध्वनि जहाँ धार्मिक अनुष्ठानों में भक्ति भाव का जागरण करके एकाग्रता को बढ़ाता है,वहीं यह साउंड थेरेपी का एक शक्तिशाली उपकरण है,जो आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक,और वैज्ञानिक स्तर पर मानव जीवन को समृद्ध करती है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर वातावरण को शुद्ध करती है और मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है।आध्यात्मिक दृष्टि से,घंटी की ध्वनि श्शब्द ब्रह्मश् का प्रतीक है,जो ॐ की गूंज के समान है।यह शरीर के सात चक्रों अर्थात् मूलाधार से सहस्रार तक को संतुलित करती है। विशेष रूप से,432 हर्ट्ज की आवृत्ति आज्ञा और सहस्रार चक्रों को सक्रिय करती है,जो अंतर्ज्ञान और आध्यात्मिक चेतना को जागृत करते हैं।यह भक्तों का ध्यान भगवान की ओर केंद्रित करती है।मनोवैज्ञानिक रूप से,घंटी की लयबद्ध ध्वनि तनाव और चिंता को कम करती है।यह मस्तिष्क की अल्फा और थीटा तरंगों को प्रोत्साहित करती है,जो ध्यान और विश्राम से जुड़ी हैं (शोध प्रकाशित-जर्नल ऑफ एडवांसड नर्सिंग)।यदि वैज्ञानिक रूप से देखें तो यह वैगस तंत्रिका को उत्तेजित करती है,हृदय गति को नियंत्रित करती है और कोर्टिसोल स्तर को कम कर सकती है(शोध प्रकाशित-फ्रंटीयर्स इन न्यूरोसाइंस)।यह जैव-क्षेत्र में सामंजस्य पैदा करती है,डीएनए मरम्मत और सेलुलर संचार को बढ़ाती है (शोध प्रकाशित-जर्नल ऑफ बायोफोटोनिक्स)।भौतिक विज्ञान के अनुसार,इसके रेजोनेंस और हार्मोनिक्स ऊर्जा हस्तांतरण को प्रोत्साहित करते हैं।पर्यावरणीय रूप से,यह उच्च-आवृत्ति ध्वनियों के माध्यम से बैक्टीरिया को प्रभावित करती है और वायु गुणवत्ता में सुधार करती है।ध्यान,योग और साउंड थेरेपी में घंटी की ध्वनि का उपयोग मानसिक शांति व एकाग्रता,भावनात्मक स्थिरता और शारीरिक स्वास्थ्य के दृष्टिगत लाभकारी है।यह हमारी आध्यात्मिक-सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत का अमूल्य व अभिन्न हिस्सा है,जो आधुनिक जीवन में शांति का स्रोत है।आज विश्व के अनेक देशों में मानसिक स्वास्थ्य हेतु साउंड थेरेपी का उपयोग करके उपचार देने का प्रचलन बढ़ा है,जो हमारी सनातन परम्परा के वैज्ञानिकता को प्रमाणित करता है।