मुर्शिदाबाद हिंसा पर याचिकाओं को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने किया मना
April 21, 2025
मुर्शिदाबाद हिंसा को लेकर दाखिल 2 याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से मना कर दिया है. कोर्ट ने याचिकाओं को बिना उचित तैयारी के दाखिल बताया. जजों ने याचिकाकर्ताओं को संशोधित याचिका दाखिल करने की अनुमति दी है.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन कानून को लेकर हुई हिंसा में 3 लोगों की मौत हो गई थी. बड़ी संख्या में हिंदू परिवारों को पलायन करना पड़ा था. इसे लेकर 2 वकीलों शशांक शेखर झा और विशाल तिवारी ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की थीं. इन याचिकाओं में हिंसा की निष्पक्ष जांच और लोगों की सुरक्षा की मांग की गई थी.
मामला जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच में सुनवाई के लिए लगा था. सुनवाई की शुरुआत में ही वकील विशाल तिवारी ने नए तथ्यों के साथ संशोधित याचिका दाखिल करने की अनुमति मांग ली. इसके बाद शशांक शेखर झा की बारी आई. शंशाक झा ने कहा कि राज्य की हिंसा को लेकर मंगलवार को एक मामला जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली बेंच में लगा है. उनकी याचिका को वहां भेज दिया जाए.
जस्टिस सूर्य कांत ने ऐसा करने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि किसी और बेंच को मामला भेजने का अधिकार उन्हें नहीं है. जस्टिस कांत ने झा से पूछा कि वह इतनी हड़बड़ी में क्यों हैं? क्या बाहर जाकर मीडिया से बात करने की जल्दी है? वकील ने इस बात से मना किया कि वह किसी जल्दी में हैं. इस पर जज ने कहा कि आपकी याचिका को देख कर लग रहा है कि इसे जल्दी में तैयार किया गया है.
कोर्ट ने कहा कि याचिका में ज्यादातर बातें मीडिया रिपोर्ट के हवाले से लिखी गई हैं. याचिकाकर्ता ने कई लोगों की भूमिका पर सवाल उठाया है, लेकिन उन्हें पक्ष नहीं बनाया है. क्या उनकी बात सुने बिना कोई आदेश दिया जा सकता है? जज का कहना था कि याचिका पीड़ितों के हित की बात कहती है. लेकिन अगर कोर्ट कोई राहत देना भी चाहे, तो ऐसी याचिका के चलते यह संभव नहीं. इस पर वकील ने बेहतर याचिका दाखिल करने की अनुमति मांगी. कोर्ट ने उन्हें अनुमति दे दी.
ध्यान रहे कि पश्चिम बंगाल हिंसा को लेकर मंगलवार, 22 अप्रैल को भी एक याचिका सुनवाई के लिए लगी है. 2021 में हुई हिंसा की घटनाओं के बाद दाखिल रंजना अग्निहोत्री की यह याचिका अभी तक लंबित है. उसी याचिका में उनके वकील विष्णु शंकर जैन ने नया आवेदन दाखिल किया है. इस आवेदन में हिंसा की नई घटनाओं का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति शासन की ज़रूरत बताई गई है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि वह केंद्र को राज्यपाल से अनुच्छेद 355 के तहत रिपोर्ट मांगने का निर्देश दे.